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Tuesday, June 30, 2015

उत्तराखंड में केसर- खेती से मोटी कमाई की सम्भांवनाएं

Potentiality for  Saffron Farming in Garhwal, Kumaon;  
                                        उत्तराखंड में केसर- खेती से मोटी  कमाई की सम्भांवनाएं

                                                   डॉ. बलबीर सिंह रावत  (देहरादून)  
                                                                                     
केसर , लाल सोना, १ ग्राम का खरीद मूल्य लगभग ३०० रुपये, १ किलो २,००,००० रुपये में, अमीरों का शौक केसर जो अपने विशिष्ठ रंग और स्वाद के लिए अपने में ही उदाहरण है , सदियों से दुनिया के ठन्डे इलाकों में उगाया जा रहा है।  पूरे विश्व की मांग का ९५ % अकेला ईरान उगाता है और बाकी का ५ % भारत, स्पेन  मोरोक्को, इटली और अजरबेजान से आता है. अब चीन और कनाडा भी केसर उगाने लगे हैं। अमेरिका केसर का सब से बड़ा ग्राहक है। अकेला ऑस्ट्रेलिया साल में ३,००० किलो केसर खपाता है। 

इधर उत्तराखंड में भी केसर की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है।  केसर उगाने के लिए जलवाय शीतल, नम और धूपदार होनी चाहिए , जैसे ३२ और ४० डिग्री उत्तरी अक्षांश में होती है।  मिट्टी महीन दोमट और क्षारीय ( पीएच ६ से ८) उपयुक्त मानी जाती है इसको बोने के जमीन को मिट्टी पलट हल से ८-९ इंच ( २० -२२ सेंटीमीटर ) गहरा जोता जाता है,जुताई के समय कम्पोस्ट या गोबर की खूब तैयार खाद भी मिलाई जाती है। 
चूंकि केसर के पौधे बीज नहीं बनाते तो इसकी  गँठियाँ ( बल्ब ) खेत में लगानी होती है।  ये गांठिया केसर के खेतों में लगी फसल से चार साल बाद ली जाती हैं तो इनकी उपलब्धि इतनी आम नहीं है। या तो बड़े किसानों से  बड़ी मात्रा खरीदनी होती है,  या दाम अधिक होने से, छोटी मात्रा में खरीद कर अपने हो खेतों में उगा कर धीरे धीरे क्षेत्र बढ़ाना होता है।  

बुवाई के लिए जून से सितमबर तक का समय ठीक रहता है। इसकी क्यारी जमीन से ७-८ इंच ऊंची होनी चाहिए ताकि पानी का ठहराव न हो। गँठियों को ८ सेंटीमीटर गहराई पर, एक से दूसरे को १० सेंटीमीटर दूर और कतारों  के बीच १०-१५ सेंटीमीटर का अंतर रखना होता है।  अगर नत्रजन का फर्टिलाइजर डालना हो तो लगाई के साथ साथ डालना चाहिए। अगर मिट्टी  में प्रयाप्त नमी है तो पानी देने की जरूरत नहीं होती।   अक्टूबर में फूल आते हैं जो पूरे महीने चलते हैं।  इस बीच अगर जमीन में खुश्की आ गयी हो तो सिंचाई, हफ्ते में एक बार, करनी चाहिए . नए लगाये पौधों में एक पौधे पर एक ही फूल आता है, दो साल बाद  प्रति पौधे दो दो फूल आते हैं। एक फूल पर stigma के  तीन filament,( धागे ) लगते हैं।  छोटे किसान इसे पौधे से ही हाथ से तोड़ते हैं , बड़े किसान फूल चुन कर लाते है और एक जगह पर इन फिलमेंटों को तोड़ते है। १५० फूलों से 

१ ग्राम सूखी केसर मिलती है, एक एकड़ जमीन से, अच्छी पैदावार हो तो, ५०० ग्राम बिक्री योग्य केसर का उत्पादन होता है। केसर की खेती के लिये मानव श्रम की अधिक आवश्यकता होती है क्यों कि  खेत जोतने के अलावा प्रायः हर काम हाथों से ही करना होता है।     

कैसर की गंठियो को जंगली चूहे खोद कर चाव से खा जाते हैं, इन गंठियों में फंगस भी लगने का खतरा होता है। पौधों के उगने पर इनकी पत्तियों और फूलों को खरगोश  चर जाते हैं।   इन बीमारियों और जानवरों से बचाव के उपाय करना परम आवश्यक होता है। 

चूंकि केसर उत्पादन उत्तखण्ड में नया व्यवसाय है तो शुरू करने से पाहिले इसके हर पहलू पर पूरा  विचार करके, लागत, प्राप्ति का हिसाब तीन प्रकार से करके, १. जब सब कुछ साधारण तरीके से हो रहा हो, २. जब हर काम में आसानी से सफलता मिल सकती हो और ३. जब कुछ भी सही नहीं हो।   और तब इनके औसत को ध्यान  कर धंदा शुरू करने का निर्णय लेना चाहिए.  अधिक जान कारी और सहायता के लिए निम्न  पते से सम्पर्क करके पण प्लान को मूर्तरूप देना चाहिए                  
Department of Horticulture & FOOD Processing, Circuit House, Dehradun (Uttarakhand) INDIA   Horticulture Mission for North East & Himalayan States, Uttarakhand   E-mail: missionhortiuk@gmail.com   Ph: 0135-2754961 For further details contact: Dr. I.A. Khan, Joint Director   E-mail:imtiaz05@rediffmail.com
अध्यापक श्री जगमोहन सिंह बिष्ट केसर की केटी विकास में संलग्न है उन्हें - 9410328161 पर संपर्क किया जा सकता है

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