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Tuesday, June 23, 2015

हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में कुणिंद /कुलिंद भूमि

Kuninda /Kulinda Kingdom reference to Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,  History Saharanpur  
               
                     हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  संदर्भ में कुणिंद /कुलिंद भूमि  

                       Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,  History Saharanpur  Part  -
  
125 
                     
                                                हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -    125                   

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
   काद की मुद्राएं अशोककालीन लिपि में हैं।  इतिहासकार एलन ने इस जनपद का काल 225 से 175 BC माना है। महाभारत में कुलिंद /कुणिंद जनपद का कई बार उल्लेख आया है आयने मौर्य शासन के बाद भी कुलिंद /कुणिंद जनपद एक महत्वपूर्ण जनपद था। इतिहासकार अन्य सहित्य की विवेचना कर मानते हैं कि काद कुणिंद जनपद  महत्वपूर्ण उपजनपद /रजवाड़ा रहा होगा और उसके आस पास के निकटवर्ती राज्यों ने उसके सिककनों को अपनाया होगा।  आगे की यौधेय मुद्राओं में द्वि , वि , त्रि अंकन भी यही इंगित करता है। 
आगे जाकर इन मुद्राओं में 'कुणिंद ' भी अंकित किया गया है। 
                         कुलिंद /कुणिंद भूमि 
        ताल्मी (87 -165 AD ) ने  व्यास , सतलज , यमुना और गंगा जी के स्रोत्र प्रदेशों की ढालों कुलिन्द्जनो के प्रचार प्रसार का उल्लेख किया है।  याने कि 200 BC के करीब भी कुलिंद जनपद एक महत्वपूर्ण जनपद था।  कुलीन मुद्राओं का वर्णन है वे मुद्राएं यमुना के पूर्वी और पश्चिम तक मिले हैं।  दक्षिण में सहारनपुर के बेहट में मिले हैं।  अन्य कुलिंद मुद्राएं जो अम्बाला , सहारनपुर , देहरादून और गढ़वाल में मिलीं हैं उनमे अमोघभूति की मूर्तियां अंकित हैं।  याने इस तरह कहा जा सकता है कि यौधेय नरेशों की मूर्तियां हैं।  संभवतया कालसी कुलिंद /कुणिंद जनपद का मुख्यालय था  हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर व हिमाचल की ढालों में कुलिंद /कुणिंद जनपद विद्यमान था।  कुणिंद /कुलिंद याने काद की मुद्राएं ब्राह्मी में हैं तो अमोध्भूति की मुद्राएं खरोष्ठी व ब्राह्मी दोनों में मिलती हैं।  यमुना पश्चिम में ब्राह्मी का प्रचार कम था व खरोष्ठी का अधिक। 
                समकालीन कुलिंद की आर्थिकदशा 
 
 कृषि -पशुपालन मुख्य व्यवसाय थे और अदला बदली ही मुख्य एक्सचेंज का साधन था ताम्बे की मुद्राओं की क्या आवश्यकता पड़ी ? इसका अर्ह है कि अवश्य ही निर्यात -आयात होता था  कुलिंद एक साधन सम्पन जनपद था। कुलिंद की कोई चांदी की मुद्राएं नही मिली है और इसका अर्थ लगाया जाता है कि छोटे जनपदों के लिए चांदी की मुद्राएं ढालना संभव नही था।  छोटे जनपद मौर्य -शुंग नरेशों की चांदी सिक्कों से काम चलाते थे। 
                      धार्मिक मान्यताएं 
         
उस समय धार्मिक मान्यताओं पर विशेस जोर दिया जाता था। वृक्ष  शिलाओं को देव रूप माना जाता था। वौद्धमतीय  वोधिवृक्ष , स्तूप , त्रिरत्न , की पूजा की जाती थी।  साथ साथ सूर्य  कार्तिकेय की पूजा भी की जाती थी। कार्तिकेय का अंकन कुलिंद व बाद में यौधेय मुद्राओं में मिलने का अर्थ है कि कार्तिकेय विशेष देव थे व कुलिंद वंशियों के राजवंशीय आराध्य देव भी थे। 
     स्वास्तिक चिन्ह को भी शुभ माना  जाता था। 
                         राजनैतिक दशा 
    कुलिंद मुद्राएं साक्षी हैं कि कुलिंद राज्य किसी अन्य के अधीन जनपद नही था। 
चतुर्वर्ग अर्थ , धर्म , काम व मोक्ष को मान्यता मिल चुकी थी।  
 मुद्रा ढालने की तकनीक विकसित हो ही रही थी।  तोल व अंकन में विविधता थी। 
              अवधि

इसके पश्चात की मुद्राओं में अगरजस अंकित हैं और इस राजा के शिलालेख भी मिले हैं।  संभवतया अशोक के बाद आधी शति तक इन मुद्राओं का प्रचार था।   


** संदर्भ - ---

डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -
 मध्यएशिया का इतिहास
Harshacharit
Mahabhashya
Therivali of Merutunga a jain Writer 
Mlavaikagnimitram of Kalidas
Ray Chaudhari, Political History of Ancient  India 
Cunningham Coins of Ancient India 



Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India 20/6/2105 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -
126


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