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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, June 23, 2015

ढोल सागर का अगला भाग (2 ) जिसमे वेदों का वर्णन है

स्तुति -भीष्म कुकरेती 
अरे आवजी आवजी कथु उपजोगी चार खाने चार बान कथु उपजोगे बलं कथु उपजोगे पंच शब्द कथं उपजोगे ढोलँ।। ईश्वरोवाच ।। अरे गुनीजन सतयुग उपजोगी चार खाने चार बाने आरम्भयुग उपजोगी ढोलम गुरुमुख उपजिगो पंचशब्द बारा जग उपजिगो ढोलम ।। पार्वत्युवाच ।। ऊँ प्रथम कनिकत्र राजा इंद्र को उदीम दास ढोली अमृतं को ढोलँ अब क्या सुने शब्द तहाँ नामिक नमोनम: इति युग को ढोल बजयिते। द्वापर युग मधे मानदाता राजा मानदाता राजा की बामादास ढोली गगन को ढोलम।  अविकाराम तम सुनी शब्दम तच्च नामिक नमो नमः।। त्रेता युगे मध्ये महेंद्र नाम राजा महेंद्र त नाम राजा को बिदिपाल दास ढोली काष्ट को ढोलम अविकार ।। कलयुग मध्ये बीर विक्रमजीत राजा बीर विक्रम अगवान दास ढोली अस तत्र को ढोल वस्त्र को शब्दम तच्च नामिक नमो नमः ।। इति चार युग को ढोल बजायते।  अथ चार वेद बजायते।   प्रथम ऋषि वेदम च ऋषि राजा च ब्राह्मण उतपते ऋषि वेद च वंश निर्माता रिषि।  रिषि च पढ़ते वेदं पूर्व दिशा रिषि वेदं हन्स तथा प्रथमं च रिषि वेद बजायते ।। द्वितीये याजुर वेदा।  दक्षिणे च थ भवेतु  भूत प्रति हरता तेजस्य विष्णु वेद च युजुर वेद भवेत् ब्राह्मण यजुर्वेद सदैव यजुर्वेद बजायते दक्षिण दिशा नमोस्तुते ।। तृतीया सामवेद च श्याम रूपी नारायण पश्चिम दिशा जित बजन्ता ता ता नन्ता तच्च बजायते तृतीये वेद सर्व श्याम रूद्र नाम बजायते। चतुर्थ अथरवण वेद च उत्तर श्रये काम्पितो उत्तरै पंचदेवता पंचनाम परमेश्वर सुमंगल बमन च उल्ति पुलती तक तालिका घंटा घुंघुर च वेद बाजितै इंद्र।। इति चार वेद बजायते।  
-- (ब्रह्मा नन्द थपलियाल द्वारा संपादित ) 
ढोल सागर का अगला खंड  भाग -३ म पढिए

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