Garhwali Prose of Nineteenth Century from Garhwal
खोज कार्य
जसपुर के बहुगुणाओं का संस्कृत से गढ़वाली टीका साहित्य में योगदान
गढ़वाली का उनीसवीं सदी का गद्य -१
-भीष्म कुकरेती
(आभार ------------जसपुर के समस्त बहुगुणा परिवार विशेषतः श्री शत्रुघ्न प्रसाद पुत्र स्व पंडित खिमानन्द बहुगुणा )
गढ़वाली साहित्य इतिहासकार अबोध बंधु बहुगुणा ने 'गाड म्यटेकी गंगा' पुस्तक में संस्कृत ज्योतिष /कर्मकांड साहित्य का गढ़वाली में टीका का उल्लेख किया है। अबोध बंधु ने 1925 का धोरा खोळा , कटळस्यूं निवासी पंडित रतनमणि घिल्डियाल द्वारा ज्योतिष गणित का गढ़वाली टीका (Interpretation ) का जिक्र किया है ('गाड म्यटेकी गंगा' पृष्ठ 59 ) । उसके बाद के गढ़वाली साहित्य इतिहासकारों ने इस दिशा में कोई खोजपूर्ण कार्य नही किया। मेरा मानना था कि सन 1890 से पहले जब कोई स्कूल नही थे और हिंदी का कोई स्थान गढ़वाल में नही था तो कर्मकांडी पंडित अवश्य ही अपने शिष्य (पुत्र , पौत्र , भतीजे , भ्राता आदि ) को संस्कृत श्लोकों को गढ़वाली में ही समझाते होंगे और पाण्डुलिपि में गढ़वाली में ही टीका करते रहे होंगे।
मेरे गाँव जसपुर , ढांगू , पौड़ी गढ़वाल में कर्मकांडी चौथ ब्राह्मण बहुगुणा सन 1875 के आस पास कुकरेतियों द्वारा बसाये गए थे। अतः मुझे इस दिशा में कुछ कुछ ज्ञान था कि बहुगुणा पंडितो के पास हस्तलिखित पांडुलिपियां होती थीं।
इस साल के प्रथम चरण में जसपुर के पंडित स्व पंडित तोताराम बहुगुणा के पौत्र व /स्व विद्या दत्त के द्वितीय पुत्र कर्मकांडी पंडित महेशा नन्द बहुगुणा से मुंबई में मिलने का अवसर मिला। मैंने रिश्ते में भ्राता किन्तु सांस्कृतिक रूप से गुरु महेशा नन्द बहुगुणा से यही प्रश्न किया कि जब जसपुर में ब्रिटिश शिक्षा नही थी तो कर्मकांड /ज्योतिष टीका अवश्य ही गढ़वाली में हुयी होगी। पंडित महेशा नन्द बहुगुणा ने मेरा समर्थन करते कहा कि जसपुर के बहुगुणाओं में ज्योतिष /कर्मकांड को श्रुति रूप से लिखित रूप देने का काम स्व पंडित जयराम बहुगुणा ने प्रारम्भ किया था। स्व पंडित जयराम बहुगुणा स्व तोताराम के भाई थे।
पंडित महेशा नन्द ने मुझे आश्वासन सूचना दी थी कि पंडित जयराम बहुगुणा की पांडुलिपियां गाँव में पंडित पद्मादत्त बहुगुणा के पास हैं जिसमे गढ़वाली में टीका उपलब्ध हैं। पंडित पद्मादत्त बहुगुणा पंडित जयराम के भतीजे के पुत्र हैं। पंडित महेशा नन्द ने आश्वासन दिया था कि वे मुझे इस प्रकार के साहित्य को फोटोकॉपी द्वारा उपलब्ध कराएंगे।
इसी दौरान मुझे नागराजा पूजन हेतु मई में गाँव जाना पड़ा। वहां सभी बहुगुणा पंडितों से मुलकात अवश्यम्भावी थी और मैं आस्वस्त था कि मुझे गढ़वाली साहित्य का प्राचीन खजाना अवश्य मिलेगा। किन्तु गाँव में त्रिवर्षीय नागराजा पूजन होने से सभी प्रवासी चाहते थे कि अपने कुलगुरुओं बहुगुणाओं से पूजन भी कराया जाय। आस पास के गाँवों में भी प्रवासी आये थे जो इन कुलगुरुओं से पूजा करवाने को इच्छित थे। अतः सभी बुजुर्ग (मेरे समकक्ष आयु वाले ) व युवा पंडित इतने व्यस्त थे कि उन्हें सांस लेने की फुर्सत नही थी। मैंने जिससे भी गढ़वाली टीका की बात की उन पंडित ने साहित्य उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया किन्तु काम फारिग होने के बाद। मैं निराश था कि मुझे खजाना नही मिलेगा और फिर यह अवसर नही मिलेगा। दूसरी दिक्कत थी कि पंडित पद्मादत्त बहुगुणा के अतिरिक्त सभी पंडित कोटद्वार या अन्य शहरों में निवास करते हैं अतः यह महत्वपूर्ण साहित्य को देखना व फोटोकॉपी करना कठिन ही था।
मुझे उन्तीस मई को ऋषिकेश के लिए प्रस्थान करना था और मुझे कोई साहित्य उपलब्ध नही हो सका था। एक कारण यह भी था कि प्रिंटिंग सुविधा उपलब्ध होने से पाण्डुलिपि साहित्य की अब किसी भी कर्मकांडी पंडित को आवश्यकता नही है और पाण्डुलिपि अब किसी कोने में ही मिल सकतीं हैं।
अचानक 27 सांय , मेरी धर्मपत्नी ने मेरे स्कूल के सहपाठी बड़े भाई शत्रुघ्न प्रसाद की दी गयी पोथी मेरे हाथ में पकड़ा दी। इस पोथी में कई पोथियाँ (Booklets ) थीं।
मूल पोथी नीलकंठी कर्मकांड का है और अंदर कि छोटी पोथियाँ अन्य ज्योतिषीय विषय।
मुझे निम्न पंडितों की हस्तलिखित पोथियाँ मिलीं -
पंडित सदानंद द्वारा लिखित दो संस्कृत विषयी लघु आकार की पोथियाँ
पंडित खिमानन्द द्वारा लिखित व हिंदी में टीका की हुयी पोथी
पंडित तोताराम को दो या तीन विषयों में लिखी पोथियाँ और सभी में हिंदी में टीका लिखी गयीं हैं।
उपरोक्त तीनों लेखकों ने द . लिखकर अपने हस्ताक्षर किये हैं।
नीलकंठी प्रकरण में एक जगह पंडित जयराम के हस्ताक्षर या नाम हैं दो जगह पंडित लोकमणि के हस्ताक्षर हैं व दो तीन जगह उनका नाम भी लिखा है। पंडित विद्यादत्त का नाम भी है।
पंडित जयराम ने जातक चन्द्रिका संस्कृत में छांटें छांटी पंक्तियों में कलम से लिखी है और फिर बाद में किसी ने निब से बीच की पंक्ति में हिंदी में टीका लिखी है।
कहीं भी लेखकों ने बहुगुणा शब्द नही लिखा है बल्कि पंडित शब्द का प्रयोग किया है। पंडित सदानंद ने तो पंडित शब्द भी प्रयोग नही किया है।
पंडित तोताराम लिखित टीका व श्लोकों से पहले गणेश का चित्र भी बनाया है व दूसरे पृष्ठ में भी रंगीन चित्रकारी की है।
पंडित खिमानन्द ने जसपुर , ढांगू व कुमाऊं कमिनसनरी लिखा है और इसका कारण है कि वे पंडिताई से पहले चकबंदी विभाग में नौकरी की थी।
गढ़वाली टीका पोथी के कुछ भाग
जहां तक गढ़वाली टीका का प्रश्न है इन पोथियों के अंदर चार पृष्ठ की निखलिश गढ़वाली टीका मिलीं हैं।
गढ़वाली टीका वाली पोथी में पंडित सदानंद की पोथी में पंडित शब्द भी नही है।
मेरे सहपाठी श्री शत्रुघ्न बहुगुणा व कुलगुरु पंडित विवेका नन्द बहुगुणा के अनुसार यह टीका पंडित खिमानन्द बहुगुणा की है किन्तु मैं आदर सहित लिखना चाहूँगा कि पंडित खिमानन्द ने गढ़वाली टीका नही लिखी है। उसके कारण निम्न हैं -
१- इस पुस्तिका का आकार पंडित खिमानन्द लिखित पोथी से मेल नही खाती है।
२- पंडित खिमानन्द ने हिंदी टीका निब से लिखी है।
२- पंडित खिमानन्द ने हिंदी टीका निब से लिखी है।
३- पंडित खिमानन्द का हस्थलिपि भी मेल नही खाती है। जबकि पंडित जयराम की हस्थलिपि से मेल खाती हैं
४- मूल पोथी का आकार भी छोटा है किन्तु पंडित सदानंद द्वारा लिखित पोथी से एक इंच बड़ा होगा।
५- कागज भी अन्य पोथियों से मेल नही खाते हैं।
६- एक पोथी के उपलब्ध भाग लाल रंग के दो लाइनों से बनी हासिये दोनों तरफ है व स्याही अब मटमैली हो गयी हैं इसी तरह काली स्याही केवल पंडित जयराम द्वारा लिखित श्लोकों से मेल खाती हैं। दूसरी पोथी के भाग का पृष्ठ पर दोनो ओर लाल स्याही से दो दो हासिये बने हैं। जो अन्य पोथियों से भिन्न हैं।
७ -चूँकि पंडित लोकमणि , पंडित सदानंद , पंडित खिमानन्द , पंडित तोताराम ने सन 1890 में ब्रिटिश स्थापित स्कूल टँकाण स्कूल में शिक्षा पायी है अतः इन्हे हिंदी का पूरा ज्ञान था। पंडित जयराम ने टंकाण में शिक्षा नही पायी थी अतः उन्होंने गढ़वाली में टीका लिखी होगी जो पंडित महेशा नन्द व पंडित पद्मादत्त ने भी स्वीकारा है।
अतः साफ़ है कि जो दो पोथियों के एक एक पृष्ठ मेरे पास हैं वे पंडित जयराम द्वारा या उनसे पहले किसी अन्य द्वारा लिखी टीका है।
पंडित जयराम की जीवनी विश्लेषण से लगता है यह टीका सन 1900 से पहले की होगी।
पोथी योन के उपलब्ध पृष्ठों की इबारत इस प्रकार हैं -
दस दोष निरोपण की गढ़वाली टीका
श्री
संस्कृत शोक के बाद टीका II १II भाषा आद्य भद्रा नी होवू: दुतिय शूल चक्र नि होवू: जनु सूर्य नक्षेत्र तक गणणो। १। १२। १५। १८। २८। हो वू त शूल हूंद : शुभ काम बर्जित बोले =तृतीय ग्रह संजोग : जोदिन नक्षेत्र पर पाप ग्रह हो वो त नी लेणो दुसरी एक बात या छ कि जनु अशु नक्षेत्र प्र : आश्वार दग्ध तिथी और वार जोडिक तेर हो वू त वारदग्ध होंद अथमासदग्ध
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बै I ज्येष्ठ I आषा Iश्रावण I भाद्रपद I असूज I कार्तिक I मंगसीर I पुख I माघ I फा Iचैत्र I
६ I ४ I ८ I ६ I १० I ८ I १२ I ८ I २ I I१२ I
अवरविरेखावोद : सूर्जन न क्षेत्र ते सतताईस रेखा धरणी अश्लेषा -मघा -चीत्रा : अनुराधा . रेवत . श्रवण . यूंका निचे भि रेखा मारणी तव असुनी ते दिन नक्षेत्र तक गणणो जो निचे को चिरो आवत नी लेणो . जामैत्रिवोद . दिन का नक्षेत्र ते चौदवें नक्षेत्र पर पाप ग्रह होवू त नी लेणो शुभ होवू त दोस नी होंदो -गरहवेद तथा अष्टम वेद दोष चक्रमा देखणो जनु नी नक्षेत्र पर विवाह और पु र्फालगुनी पर पाप ग्रह क्षे त वेद होयो सो नी लिणो : अथ: तलातवोद -दिन नक्षेत्र ते १२ वूंआ नक्षेत्र पर सूर्य्यत्वात मार ३ तीसरा नक्षेत्र पर मंगल ६ छटा नक्षेत्र पर वृहस्पति ८ आटवूआं नक्षेत्र पर शनी
इस प्रकरण का इतना ही साहित्य उपलब्ध है।
कल गुणनो की गढ़वाली टीका पढ़िए ..........
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