गढ़वाली अनुवाद - भीष्म कुकरेती
[ आजकल योग की बहुत चर्चा है जो आवश्यक भी थी। किन्तु आम लोग योग को केवल आसन तक सीमित समझते हैं। जबकि योग एक जीवन शैली है। पातञ्जली ने योग संहिता में योग का सारा निचोड़ दिया है याने सूत्र दिए हैं। इन सूत्रों का नौवाड करते मुझे अति प्रसन्नता है। ]
प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि -७
प्रमाण तीन तरां से मिल्दो -
प्रत्यक्ष
अनुमान
अर
ज्ञानी द्वारा
विपर्यो मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठम् -८
विपर्य याने विरोधी धारणा मिथ्या ज्ञान च जू असलियत मा वै पदार्थ मा प्रतिष्ठित नि हूंद। जन कि मन की बात तै आत्मा की आवाज समजण। रस्सी तै सांप समजण।
शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः -९
शब्दों से उत्पन ज्ञान (कल्पना या कैक भकलौण से उत्पन ज्ञान ) का पैथर चलणो स्वभाव विपर्य च।
शब्दों से उत्पन ज्ञान (कल्पना या कैक भकलौण से उत्पन ज्ञान ) का पैथर चलणो स्वभाव विपर्य च।
अभावप्रत्ययालंबना वृतिनिद्रा -१०
जागृत या नींद मा जु छ नी च वै तैं प्रतीत करण /मनण निद्रा च (अवचेतन मन ) जन कि सुपिन तै सच मनण .
अनुभूतविषयासम्प्रमोषः स्मृतिः -११
फिर से याद आण /याद करण स्मृति च।
अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः -१२
अभ्यास और वैराग्य ( तटस्थ भाव ) से वृतियों (अस्थिरता ) कु निरोध हूंद।
तत्र स्थितौ यत्नोअभ्यासः -१३
चित्त (मन , वृद्धि , अहम ) तै स्थिर करणो नाम अभ्यास च।
स तू दीर्घकालनैरन्तर्यसत्कारासेवितो दृढभूमि: - १४
श्रद्धा , ऊर्जा , भक्तिपूर्वक निरंतर दीर्घकाल तक अनुष्ठान करण से दृढ अवस्था वळ ह्वे जांद।
दृष्टानुश्राविकाविषयवितृषणस्य वशीकारसंज्ञा वैराग्यम् -१५
दृष्ट व आनुश्रविक (दिख्युं , अनुभव कृत ) विषयों मा जब तृष्णा नि रौंदी (तटस्थ भाव )तो वु वशीकर वैराग्य याने ऊपरी वैराग्य च।
ततपरं पुरुषख्यातेर्गुणवैतृष्ण्यम् -१६
विवेक द्वारा गुणों से तृष्णा रहित हूण पर -वैराग्य च।
बकै भोळ
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