Religious Tour Memoir for Nagraja Puja
चलो घ्वाड़ा खाया जाय , रिखणी खाइ जाय और पानी को रिंगाया जाय
मुंबई बटें जसपुर तक नागराजा पूजा जात्रा -8
अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत -8
जत्र्वै - भीष्म कुकरेती
अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत -8
ऋषिकेश से गेंड़खाळ तक यात्रा मा कुछ विशेस नि छौ सिरफ़ एक बात अजीब लग कि गरुड़चट्टी (जखम टिहरी से पौड़ी जिला पार करणो पुळ च ) से अर नीलकंठ जाणो रस्ता तक मोटर सड़क खराब च, जगा जगा खड्डा छन जो पहाड़ी सड़क का अनुकूल नि हूंदन अन्यथा उत्तराखंड की सड़क उत्तर प्रदेश की सड़कों से लाख गुना बढ़िया हूंदन अर रख रखाव बि इथगा बुरु नि हूंद जथगा बुले जांद।
गैंडखाल असली नाम च गैंडखाळ पर हिंदी मा बोर्ड लग्युं च गैंडखाल। गढ़वळि मा खाळ अर खाल कु अर्थ मा जमीन असमानो फरक च पर हमारा स्थानीय राजनैतिक दल बि ए फरक तै नि समजदन। खाळ द्वी पहाड्यूं मिलंस्थान की समतल जगा कुण बुल्दन अर खाल माने खाया जाएगा। या खाल मने चमड़ा आदि पर ग्रामपंचायत , डिस्ट्रिक्ट बोर्ड,स्टेट हाइ वे या नेसनल हाइ वे की सड़कों मा खाळ तै खाल मा परिवर्तित करे गे।
गैंडखाळ जब गैंडखाल लिखे जांद तो वैक अर्थ हूंद गैंड तै खाए जालु। इनि गैंडखाळ का अगनै कठूड़ बड़ा की सारी मा च देवीखाळ पर सरकारी आदेश बुना छन क्वी ना क्वी देवी को खायेगा याने देवीखाल। इनि देवीखाळ से अग्नै ग्वील सारी मा एक जगा च रिंगाळ पाणी। इकम एक खडोळा से बरमस्या पाणी बगणु रौंद अर कबि ये खडोळा चारों तरफ रिंगाळो बुट्या हूंद था जु म्यर बि दिख्यां छन (अब तो प्लास्टिक की बोतल मिल्दन )। रिंगाळ हूण से ये पाणी नाम रिंगाळ पाणी पोड। किन्तु सरकारन अब ये पाणी नाम धर याल 'रिंगाल पानी ' । 'रिंगाळ पाणी' अर 'रिंगाल पानी ' मा अकास पाताल कु अंतर च। 'रिंगाळ पाणी ' कु अर्थ हूंद रिंगाळ संबंधित पानी किन्तु रिंगाल पानी कु अर्थ हूंद कोई पानी को रिंगायेगा याने पानी को तेजी से गोल घेरे में घुमाएगा। चलो पाणी तै रिंगाणो बात से तो क्वी फरक नि पड़द।
किन्तु चैलुसैण से अग्नै च एक जगा जैक नाम च 'कीचखाळ' अर अब सरकार साइन बोर्ड का जरिया बुनि च बल नही 'कीचखाल' मतलब सरकार कीच तै खलाण पर आयीं च। इनि डबराल स्यूं मा डोवोली खाळ अब डवोली खाल ह्वे गे मतलब या तो कोई डवोली गाँव को खायेगा या डवोली को खाओ। सरकार अब कांडाखाळ का बारा मा बताणि च कि खावो कांडा या कोई कांडा को खायेगा।
रणेथ से मंडुळ का बीच मा एक जगा च 'पांसखाळ'. पांस माने गाय या भैंस के स्तन पर सरकारी बोर्ड मा अब लिख्युं च 'पांसखाल' मतलब अब गढ़वाळ मा पांस से दूध नि आलु किलैकि गढ़वळि अब 'पांस' खाल।
इनि सरकार भैंस खाल से आदेश दीणी च कि या तो कोई भैंस खायेगा या भैंस कुछ चीज खायेगी। इनि घ्वाड़ाखाळ या रिखणीखाळ , का हाल छन।
हमारा उत्तराखंड क्रान्ति दल जन स्थानीय राजनैतिक दल बड़ी बड़ी बात तो करदन किन्तु छुटि छुटि पर महत्वपूर्ण बथों पर जब ध्यान नि दींदन तो अफिक असंगत /इरेलीवेंट ह्वे जांदन। क्या स्थानीय राजनैतिक दलों तै 'खाल' को 'खाळ' लिखवाणो आंदोलन नि करण चयेंद ?
हमारा गढ़वळि साहित्यकार चुप्पा की बात करणा रौदन अर बड़ा बड़ा बबमगोळा फुड़ना रौंदन कि गढ़वळि तै आठवीं सूची मा लावो, आठवीं सूची मा लावो । ये भै क्या स्थानीय सरकार से हम या दरख्वास्त नि कर सकदां कि कृपया साइन बोर्ड में घ्वाड़ाखाल ना लिखें अपितु घ्वाड़ाखाळ लिखें। पर हम तो चुप्पा पकड़ण गीज गेवां अर आधारभूत बथों पर हमारी नजर इ नि जांदी।
** भोळ पढ़ो - हमर स्वागत ट्रांसफॉर्मर नही आया , टावर बि नही चल रहा से क्यों हुआ ? अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक नागराजा पूजा जात्रा वृतांत का बाकी भाग 9 में पढ़िए
Copyright @ Bhishma Kukreti 25 /6/15
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