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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Friday, June 26, 2015

लेमन ग्रास एक आर्थिक कृषियोग्य वनस्पति

डॉ. बलबीर सिंह रावत। (देहरादून )


लेमन ग्रास , सिट्रोनेलानिम्बू घास अपनी नीम्बू जैसी सुगंध वाले तेल के लिए मशहूर  है।  इसकी लगभग ५० प्रजातिया  दुनिया भर में उगाई जाती हैं। रेगिस्तानी इलाको में इसे ऊँठ घास भी कहते हैं  क्यों की इसे ऊँठ चाव से खाते हैं।  
भारतवर्ष में इस घास का जिक्र पुराने ग्रंथों में मिलता है।  इसके तेल से ताड़ के पत्रजिनमे श्लोक लिखे जाते थे उन्हें सूखने पर भुरभुरा होेने से बचाने के लिएइस घास के तेल से लचीला बनाये रक्खा जाता था।  आज के युग में इसकी हू बहू  नीम्बू  जैसी खुशबू के कारण इसे चाय मेंपीने के पानी मेंसब्जियों में  और यहाँ तक की चावलों के भात में पकाया जाता है।  इसके तेल  का उपयोग साबुन बनाने मेंकुछ दवाओं में,  कपडे धोने के डेटरजेंटों मेंकृमिनाशक छिड़काव द्रव्यों में किया जाता है,. एक समय था जब भारत  की  इस तेल को दुनिया भर में बेचने की  मोनोपोली थी  और तब कुल १,८०० टन  तेल प्रतिवर्ष उतपादन होता थ. अब प्रतिस्पर्धा  में चीनबंगलादेश,  इत्यादि उतर आये हैं तो भारत में उत्पादन घट गया है। 

लेमन ग्रास एक प्रकार की घास ही हैजिसके पौधे में  ५ फ़ीट तक की लम्बी  छड़ियों  में लम्बी पतली पत्तिया उगती  है और इन्ही पत्तियों से तेल निकाला जाता है।  पत्तियों में तेल की मात्रा  ०. ५५ %से लेकर ०. ६३% तक होती है।  इस तेल में ७५-८३% सिट्राल पादप होता है जिसमे वह सुगंध होती है जिसके लिए यह पौधा मशहूर है ।  उर्बर  खेतों  में इसकी उपज  लगभग ३५ टन पति हेक्टेयर हो जाती  है जिस से ८० से १०० किलो तेल मिल सकता है।  बाजार में तेल का भाव ३५०- ४०० रुपये प्रति किलो मिल जाता है. अगर सिट्राल को तेल से अलग करके बेचा जाता है तो सिट्राल का भाव ५०० रूपये प्रति किलो है। 

भारत में लेमन ग्रासअंडमान निकोबार से लेकरजम्मू काशमीर,उत्तराखंड से लेकर आसाम  पूर्वोत्तर राज्यों में आसानी से पैदा हो जाती है।  इसकी सब से अच्छी खेतीकेरलतमिल नाडुकर्नाटकउत्तराखंड,आसाम और पूर्वोत्तर राज्यो में होती है। जलवायु ऊष्ण और नममिट्टी दोमट और पर्याप्त नमी वाली परन्तु पानी ठहराव से मुक्त होनी चाहिए ,९०० मीटर तक  की ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में भी इसकी खेती से कीजा सकती है। नयी खेती के लिए प्रति हेक्टेयर २.५  किलो प्रथम क्वालिटी ,  ४-५ किलो साधारण बीज बो कर  पौध तैयार करके रोपण करना होता है।  उत्तराखंड के लिए इसकी किस्मे  सुगन्धि ,  प्रगति ,  जामा रोसा , RRL 16 , CKP 25  अच्छी मानी गयी हैं। कावेरी प्रजाति नदी तटों के लिए उपयुक्त पायी गयी है। 

 एक अनुमान के अनुसार इसकी खेती में लागत तकरीबन ३. ७५  लाख रूपये प्रति हेक्टेयर लगती हैकुछ सरकारें लागत का  कुछ भाग सब्सिडी के रूप में देती हैंपूर्ण जानकारी के लिए निम्न पतों  में किसी एक से सम्पर्क कर सकते हैं :-
१. रीजनल रिसर्च लैब जोरहाट फ़ोन नं  (०३३७६ ) २३२०३५२ ,
२. हर्बल रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट एरोमेटिक प्लाण्ट्स सेंटर ,सेलाकुई देहरादून ,
३. डिरेक्टर डिपार्टमेंट ऑफ़ हॉर्टिकल्चर एंड फ़ूड प्रोसेसिंग रानीखेत,अल्मोड़ा पि  २६३ ६५१.,
४. जिला भेषज संघहर जिला मुख्यालयउत्तराखंड ,
५. गोविन्द बल्लभ पंत यूनिवेर्सिटी ऑफ़ अग्रि एंड टेक्नोलॉजीपंत नगर,जिला ऊधम सिंह नगर,  पि २६३ १४५दूरभाष  (०५९४४ ) २२३ ३३३३ ;२२३ ३५००। 
 फसल से तेल निकालने के लिए डिस्टिलेशन प्लांट लगाना होता है ,  खेत से पत्तिया काट कर २४ घंटे मुरझाने के लिए छड़ने से उनमे पानीकी मात्र घाट जाती है. . फिर इन पत्तियों को छोटे छोटे टुकड़ो में काट कर ऐसे बर्तन में उबाला जाता है जिसकी भाप को डिस्टिलेट करके तरल पदार्थ को इकट्ठा  किया  जा सके। इसी तरल पदार्थ में तेल होता  है। 


अधिक और विस्तार पूर्ण जानकारी के लिए उपरोक्त पतों में से किसी से भी जानकारी ली जा सकती है.  चूंकि इसके तेल की मांग सीमित है तो अति उत्पादन से जो अत्यधिक मात्र बाजार में आएगीउस से भाव घटने का अंदेशा रहता हैइस लिए पूरी जानकारी और खोज करने के बाद ही निर्णय लें की आपने इसे अपना व्यवसाय बनाना है और कितना लाभ लेना है   

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