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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, June 30, 2015

काकिन मै सिवा लगाइ , ब्वारी तै मीन सिवा लगाइ अर स्याळि नि पछ्याण

मुंबई बटें जसपुर तक नागराजा पूजा जात्रा -10 

                             अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत  -10                 
                                  
      
                             जत्र्वै - भीष्म कुकरेती 

          जब भौत दिनुं मा ड्यार जाण हो अर गांमा दुन्या भर का प्रवासी ऐ जावन तो सबसे बड़ी परेसानी हूंद पछ्याँणणो।  हालांकि अबि 21 तारीख इ छे अर सामूहिक नागराजा पूजा पचीस बिटेन शुरू हूण छे पर में सरीखा लोग आण लग गे छ जौन अपण पूजा सँजैत पूजा से पैल करण छे अर फिर घड्यळ आदि पुजै बि करण छे। 
 घीड़ी जसपुर अर ग्वील की हद की जगा च पैल इख चार मवासा छया अब बस एक फूफू ही इक रौंदि।  घीड़ी से इ पता चल गे छौ कि जसपुर की आवादी मा अचानक (द्वी चार दिनोकुण इ सै ) इजाफा हूण वाळ च।  पैल मुख्य गाँव से घीड़ी का बीच केवल सन्नी /छनि /गौशाला अर खेत छ अब तो गाँव सीधा घीड़ी तक बढ़ गे याने लोगुंन पंगत मा मकान बणाइ आलिन।  हालांकि घीड़ी म हमर एक पाणी छयो तो मुख्य गाँव से क्वी फॉर नी च तो घीड़ी से म्यार कूड़ तक की यात्रा मा क्वी विशेस बात नि हूण चयेणी छे पर लिख्वार छौं तो विशेस बात खुज्याण इ तो लिख्वारौ धरम हूंद। 
   अब जब गांव आवो तो सिवा सौंळी लाजमी बात च।  जौं तै पछ्याणो तो ऊंक दगड़ सिवा सौंळी सरल च।  अर पुरातन काल की टेक्नीक ही आज बि सब जगा चलदी - खूब छे , परिवार मा सब सुख्यर छन।  बच्चों ब्यौ ह्वे गे , नाती नतणा क्या क्या छन , सबि भाई दगड़ी रौंदन आदि आदि सब बात सिवा सौंळी का मीख्य अंग छन।  इक तक तो ठीक छौ। 
पर घीड़ी से कूड़ तक आंद आंद तीन घटना यादगार घटना बण गेन अर यूँ घटनौं की पुनरावृति जब तक ड्यारम क्या ऋषिकेश एक ब्यौ तक हूणि इ रैनी। 
 रस्ता मा में से दिख्याणम  कमउमरी जनानीन में तै सिवा लगै दे अर मीन बि बोलि दे - सौभ्यग्वती रावो , फूलो फलो   …। (अब सात पुत्रों की मा कु आशीर्वाद गाळी च तो यु आशीर्वाद अब बंद ह्वे गे )
फिर मीन पूछ - बाबा मीन नि पछ्याण ! तुमर पति या हजबेंड का नाम   .... ?
        मे से कमउमरी जनानी कु जबाब छौ - रतनमणि जी। 
   अब म्यार गस खाणो क्षण छयो ।  रतन मणि त म्यार  चचा छौ अर समिण चाची छे , ना चाचीन पछ्याण ना मीन चाची पछ्याण। रतन चचा जी मेसे दस बारा साल बड़ा छन। 
मीन अब ब्वाल -चाची तीन मि तै नरक लिजाणो पूरी तागत लगै इ द्यायि हाँ।  मि भीषम छौं। 
अब चचिक खौंळयाणो बारी छे - इ कन काण्ड लगिन।  पछ्याणी नी मीन। मीन   त त्यार नंगमुंड देखिक समज कि क्वी कक्या ससुर जी होला तबी तो सिवा लगाइ . चल क्वी बात नी च अब तू मीतै सिवा लगै ली। 
खैर कुछ अगनै ग्यों तो एक जनानी जु बुडड़ी सि दिखेणी छे तो मीन बरबर ह्वैक सिवा लगै दे। वीं जनानिन बि आशीर्वाद दे दे। 
अब वीं जनानीं पूछ - मीन त्वै तै नि पछ्याण !
मीन उत्तर दे - मि भीषम छौं। 
म्यार इन बुलण छौ कि वीं जनानिन अपण जीब दांतु तौळ काटद तड़ाक से ब्वाल - ये मेरी ब्वे क्या पाप ह्वे गे।  तुम तो म्यार कक्याससुर छंवां , बामण छंवां अर तुमन मि तै सिवा लगै दे। 
अब मेरी यादगार सही जगा पर आई।  चप्पे मीन तो प्रेम सिंह की ब्वारी तै सिवा लगै दे ! प्रेम म्यार भतिज लगद।  असल मा युवावस्था मा प्रेम स्वर्गवासी ह्वे तो ब्वारी पर बुढ़ापा कुछ जल्दी ही आण शुरू ह्वे गे या शरीर इ इनि ह्वालो। 
  मुख्य गां मा आंद भौत सा लोगुं से रामरूमि ह्वे। 
गोविन्द चचा जीक कूड़ो समिण औंवां।   गोविन्द चचाजीक सरा परिवार कट्ठा हुयुं छौ।  चचाजी अर चचि तै मि पछ्याणदो छौ तो रमा रुमी मा क्वी दिक्क्त नि ह्वे।  लघु भ्राताओं की पतन्युंन दूर से ही सिवा बरज अर मीन बि दूर से ही आशीर्वाद दे। 
फिर कैन ब्वाल बल -सि मंगला नन्द की ब्वारी छन।  मंगलानन्द भुला ह्वे तो मंगलानन्द की ब्वारी रिस्ता मा ब्वारी ह्वे अर यु लाजमी छौ कि वो दूर से ही सिवा बरजां। 
पर मंगलानन्द की वाइफ  ऐन अर म्यार खूट छू गेन।  यु कुछ अटपटो छौ कि भाइकी ब्वारी जेठ तै छुणी छे। 
मि कुछ गंगणै ग्यों। 
तब मंगलानन्द की ब्वारीन इ जबाब दे - मि त तुम्हारी स्याळि छौं। 
मि -स्याळि इ इ ?
मंगलानन्द की वाइफ - हाँ जया जीजा जी म्यार जीजा जि छन। 
फिर गोविन्द चचाजीन बताइ कि मंगलानन्द की वाइफ  झैड़ गौं की छन अर म्यार भुला जया की ब्वारिक खास चचेरी बैणि च।
मीन ब्वाल -औ तो चलो अच्छो ह्वाइ मीन स्याळि तै सिवा नि लगाइ ! 
 

(ये चेप्टर मा नाम म्यार बदल्यां छन तो जसपुर वाळ यांक ध्यान रखिन, अन्यथा  घटना सही छन ) 

* भोळ पढ़ो -म्यार ब्राह्मणवादी संस्कार कन सटाक से अग्नै ऐन  अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक   नागराजा पूजा जात्रा वृतांत का बाकी  भाग 11   में पढ़िए

Copyright @ Bhishma Kukreti 28/6/15
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