Kulind Kingdom in context History of Haridwar, History Bijnor, History Saharanpur
** संदर्भ - ---
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल - मध्यएशिया का इतिहास
हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में कुलिंद गणराज्य
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, History Saharanpur Part - 124
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, History Saharanpur Part - 124
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 124
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
जनपदों का जागरण
अशोक की मृत्यु के बाद उसके पुत्र कुछ ही भागों पर अपना अधिकार रख सके थे। अशोक काल के बाद निम्न गणराज्यों में जागृति आई -
औदुंंबर , कुणिंद , यौधेय , पांचाल , नेपाल , , मथुरा , कौशंबी , आंध्र , कलिंग मुख्य गणराज्य या नृपति शासित गणराज्य थे। इनमे से कुछ नरेशों ने अपनी मुद्राएं प्रचारित कीं थीं जिनके लेख अशोककालीन लिपि में हैं।
यह जागरण पीवण व शुंग सत्ता के उत्थान के समय समाप्त हो गया था। पुष्यमित्र के अवसान बाद कुणिंद ,योयेध और औदुंबर जनपदों का द्वितीय जागरण शुरू हुआ जो ईशा के प्रथम सती पास शक , पल्हव आदि के उद्भव के साथ समाप्त हुआ । इस युग के सिक्कों के मिलने से कुछ सूचना मिलती है।
तीसरा जागरण कुषाण साम्राज्य के अवसान के बाद आया और गुप्त काल के शुरू होते समाप्त हो गया। तीसरे जागरण काल के सिक्के भी मिले हैं।
कुलिंद जनपद (120 BC -20 BC )
कुलिंद जनपद युगांतर की सूचना मुद्राओं , अभिलेखों व तत्पश्चात साहित्य से मिलती है।
कुलिंद मुद्राएं
विन्दुसार के समय कुलिंद नरेश ने विद्रोह किया और बाद में अशोक ने शांत किया और कुलिंद अशोक काल तक मौर्य शाशन अंतर्गत रहा।
कुलिंद संबंधी तीन प्रकार की मुद्राएं मिले हैं -
कुलिंद संबंधी तीन प्रकार की मुद्राएं मिले हैं -
१-प्रथम युग की मुद्राओं से पता चलता है कि मुद्राओं पर जनपद के चिन्ह अंकित किये जाते थे और जनपद का नाम अंकित नही होता था। (कनिंघम )
ये मुद्राएं ताम्बे की छोटी मुद्राएं हैं। एक ओर खाली हैं और दुसरी ओर वेदी के ऊपर वोधिवृक्ष अंकित है। उसके बाहर बौद्धवेष्ठिनी बैठी है। बोधिवृक्ष व बोधिवेष्ठिनी बाहर चार छोटे छोटे वृत्त हैं जिन्हे चतुर्वर्ग माना गया है। कनिंघम को एक ऐसी मुद्रा बेहट में मिली थी।
अंकन के साहित्य व सरलता से लगता है कि ये मुद्राएं कुलिंद गणराज्य की प्राचीनतम मुद्राएं हैं।
दूसरे प्रकार की मुद्रायें भी सरल हैं किन्तु ब्राह्मी में कुणिंन्द लिखा मिलता है। महाभारत व पुराणों में कुलिंद व कुणिंद दोनों शब्द मिलते हैं किन्तु मुद्राएं चाहे वे ब्राह्मी में हों या खरोष्ठी में उनमे केवल कुणिंन्द शब्द ही मिलते हैं।
काद मुद्राएं
तीसरी किस्म की मुद्राओं के अग्रभाग छोटी सी वेदिका पर बोधिवृक्ष अंकित है। बाईं ओर मंदिर के ऊपर त्रिरत्न चित्रित है। दाहिनी ओर अशोककालीन लिपि में कादस (कादस्य ) लिखा है। पृष्ठ भाग में विशाल सूर्य से किरणे चारों ओर उद्भाषित हो रही। हैं
कनिंघम को बाद की केवल एक काद मुद्रा कुणिंद मुद्राओं के साथ मिली। ब्रिटिश संग्रहालय में काद की अनेक मुद्राएं हैं। ये मुद्राएं ताम्बे की और आकार में भद्दी हैं। ऐलेन ( कैटलॉग अ ऑफ़ दि क्वाइन अन्सिएंट इंडिया ) ने इन मुद्राओं को पांच भागों में विभाजित किया। इनमे से एक मुद्रा में कार्तिकेय की मुद्रा अंकित है उसके बाएं भाग में भाला व दाहिने हाथ में थैली कोई चीज है। चित्रों में कुबेर के हाथों में थैली तो मिलती हैं किन्तु शूल /भाला नही मिलता है। इसके बाद की कुणिंद व यौधेय मुद्राओं में कार्तिकेय अंकन मिलते हैं।
काद नरेश या जन
काद की अनेकों मुद्राएं मिलीं हैं। अंकनों में विविधता है। भूलर का अनुमान है कि काद किसी नरेश अपितु जन का प्रतीक है।
कनिंघम का मानना है कि काद एक ट्राइब /जन का नाम है और मानना है कि कुलिंद /कनैत शाखा कदैक कहलायी जिसके पूर्वज कादु या कद्रु चली होगी।
** संदर्भ - ---
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल - मध्यएशिया का इतिहास
Harshacharit
Mahabhashya
Therivali of Merutunga a jain Writer
Mlavaikagnimitram of Kalidas
Ray Chaudhari, Political History of Ancient India
Cunningham Coins of Ancient India
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 19/6//2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -
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