प्रस्तुति -भीष्म कुकरेती
अथ शंकर वेद बोले रे गुनिजनम गगन शंकर मध्ये त्रियो ज्योति अपव्रट कहावा अठार वारे वणसापति लेनवासि कही ढोली की ढोल की उत्पति ।। फलम -फलम श्रकसे मलम परथमे को देवता कस्य पुत्र भयो ।। ईश्वरोवाच ।। अरे आवजी परथमे जलसूना का रम नही धरति नही आकास सर्वत्रे धं धं कारम तै दिन की उतपति बोलिजा रे आवजी। पार्वतीयवाच ।। अरे गुनिजनम परथमे निराकार निरंकार से भयो साकार जलथल जल में भया अंड अण्ड फटि उपाईले नौखंड निराकार आदि गुसाई जी ने ब्रह्माण्डमलीक ब्रह्मा उपायो अंगमलोक विष्णु उपायो भौम मलिक श्रीनाथ उपायो वाव मलिक मलिक पार्वती उपाई आदि गोसाई जी पृथ्वी रचिले। सात स्वर्ग सात पातळ। स्वर्ग थापिले राजा इन्द्रः पातळ थापिले राजा बासुकी तब उपायो कूरम करम ऊपरी पृथ्वी उठाई तब थापिले तेतीस करोड़ देवता। तब महादेव जी ने पार्वतीले सोल श्रृंगार बत्तीस आभूषण पहराइक नाच बनायो छई राग छतीस रागण अड़तालीस राग तुत्रले छतीस बाजेत्र बजाये। सोला सौ गोपिगने श्री कृष्णजी आये छतीस बाजेव पृथ्वी में उपाये।। अरे आवजी छत्तीस बाजेत्र बोलिजे
अरे आवजी छतीस बाजेंत्र बोलिजे Iओम प्रथमे I जिव्हा बाजत्र बाजे २ शंख, ३ जाम, ४ ताल, ५ डंवर ६ जंत्र ७ किंगरी ८ डंड़ी ९ न्क्फेरा १० सिणाई ११ बीन १२ बंसरी १३ मुरली १४ विणाई १५ बिमली १६ सितार १७ खिजरी १८ बेण १९ सारंगी २० मृदंग २१ तबला २२ हुडकी २३ डफड़ी २४ श्रेरी २५ बरंग (२६ से ३१ का वृत्तांत नही है ) ३२ रणडोंरु ३३ श्राणे ३४ नगारा ३५ रेटि (रौंटळ/रौंटी) ३६ ढोल II it ढोल की उतपति बोली जे रे आवजी II
-- (ब्रह्मा नन्द थपलियाल द्वारा संपादित )
ढोल सागर का अगला खंड भाग -4 में पढिए
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