Religious Tour Memoir for Nagraja Puja
एक निराश , हताश, उदास खोजी साहित्यकार से मुलाक़ात
मुंबई बटें जसपुर तक नागराजा पूजा जात्रा -7
अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत -7
जत्र्वै - भीष्म कुकरेती
अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत -7
यीं यात्रा मा भौत सी छूटी बड़ी घटना ह्वेन अर आप तै मि बतांदु इ रौलु। पण साहित्यिक दृष्टि से एक अविस्मरणीय घटना मि तै हमेशा याद राली वा च गैंडखाळ मा एक महान खोजी साहित्यकार से तीन चार मिन्टो मुलाक़ात। जी हाँ जै अन्वेषक साहित्यकार तै मि तीन चार साल से खुजणु छौ, सम्पर्क स्थापित करण चाणु छौ वो महान साहित्यकार गैंडखाळ मा मील।
हमर गाडी बिलकुल नियत समय पर सबेर साढ़े आठ बजि दिल्ली स्टेसन पर पौंछि गे छे। नास्ता ट्रेन मा इ मिल गे छौ। गढ़वाल टैक्सिस सर्विस जैं संस्थाक हेड क्वार्टर देहरादून मा च की द्वी एयर कण्डीसण्ड टैक्सी नियत समय पर तयार छे। बस सामान चढ़ाई अर ठीक नौ सवा नौ बजि ऋषिकेश की तरफ यात्रा शुरू ह्वे गे। हम तै चार बजी से पैल ऋषिकेश से चलण जरूरी छौ जां से हम लोग आँख दिखळ जसपुर पौंछ जवां। हमर विचार छौ कि रस्ता मा बारा एक बजेक दौरान लंच करला किन्तु टैक्सी वळुन गाजियाबाद या मोदीनगर का करीब टैक्सी रोकी अर नास्ता करण लगिन अर हम तै बि नास्ता करण पोड। वास्तव मा हम तै टैक्सी वळु तै अपण योजना सही तरीका से बताण चयेणु छौ। फिर लंच नि ह्वे साक।
नियत समय साढ़े तीन बजिक करीब टैक्सी ऋषिकेश पौंचि गे छे। अब हम दुसर टैक्सी जैन हम तै ऋषिकेश से जसपुर पौंछाण छे की जग्वाळ मा छया। स्या टैक्सी बि पौंछि गे। रेलवे स्टेसन की सब्जीमंडी का पास टैक्सी रुकी छौ तो ट्रैफिक की परेशानी बि छे। खैर सब्जी मंडी से न्याड़ एक गली माँ टैक्सी खड़ी छे तो सामान उखमा चढ़ाई।
फिर सब्जी आदि खरीदणो छुटि सि सब्जी मंडी भितर गेवां। मीन मुंबई मा तकरीबन सबि चीजुं ब्यौरा एक कागज मा लेखी छौ कि क्या क्या चीजुं जरूरत होलि। आशु अर भाई की पत्नीन वूं सामन का अग्नै तक बि कर्युं छौ जु हमन मुंबई मा खरीद आल छौ। सब्जी आदि की जुम्मेवारी भाई धीरू पर छे। धीरू भाई दिमाग पर अधिक निर्भर रौंद अर लिख्युं पर कम। तो सब्जी आदि तो खरीद ले पर कुछ छुटि मुटी चीजुं तै भुलण लाजमी छौ। जब टैक्सी जसपुर का वास्ता चलंद दै शिवा नन्द आश्रम का पास आई तो याद आई कि प्लास्टिकका पत्तळ , दौना अर गिलास खऱीदण भूली गेवां। यद्यपि कागज मा सब लिख्युं छौ। अब कुछ नि ह्वे सकुद छौ।
साढ़े छै बजी संध्या को गाडी माळा -बिजनी की चढ़ाई चढ़िक गैंडखाळ मा पौंछ तो सुझाव आइ कि इखम पत्तल का बारा मा पूछे जावो। मी बि उतर ग्यों। मि तै अचानक याद आई कि प्रसिद्ध इतिहासकार डा शिव प्रसाद का नाती डा अनिल डबराल बि गैंडखाळ मा लेक्चरर छन। मीन दुकानदार तै डा अनिल डबराल का बारा मा पूछ तो ऊंन बोल बल तौळ का कूड़म डा अनिल रौंदन। मि फाळ मारिक वै कूड़ मा पौंछु अर एक अन्य अध्यापकन मेरी सहायता कार कि कै कमरा मा डा अजय रौंदन।
आखिर मि किलै डा अनिल डबराल से सम्पर्क करण चाणु छौ ?
तीन चार साल पैलि मि तै श्रीनगर जाणो मौक़ा मील अर उख ब्राह्मण मुहल्ला मा भट्ट जीक किताबुं दूकान मा एक किताब ' गढ़वाली गद्य परम्परा - इतिहास से अब तक ' खरीदणो मौक़ा मील। आस्चर्य या छौ कि इथगा महत्वपूर्ण दस्तावेज का बारा मा गढ़वळी साहित्यकारोंन कखि बि चर्चा नि कार।
गढ़वळि भाषा मा गढ़वळि गद्य इतिहास का बारा मा 'गाड म्यटेकी गंगा ' अर कविता इतिहास मा 'शैलवाणी ' आधारभूत किताब छन। किन्तु दुयुं मा विवेचना की अत्यंत कमी च कारण -किताबुं स्वरूप छ्वटु च। पर वास्तव गढ़वाली गद्य को ऐतिहासिक विवेचना तो डा अनिल डबरालन ही कार -अवश्य हिंदी मा। किताब पढ़न से पता चलदो कि जन महान समालोचक रामचन्द्र शुक्ल सम्पूर्ण तयारी का साथ हिंदी आलोचना लिखणो ऐ छया उनि डा अनिलन पैल समालोचना अर साहित्य को ज्ञान प्राप्त कार फिर गढ़वाली गद्य की समालोचना कार। इलै या महान किताब समिण आई। गढ़वाली गद्य का हर पक्ष पर विवेचनात्मक , खोजी टिप्पणी डा अनिल डबरालन करी। एक हौर आश्चर्य या च कि किताब मा डा निल डबराल का बारा मा अर प्रकाशक का बारा मा कुछ बि नी च। इथगा महत्वपूर्ण दस्तावेज मा केवल लेखक को नाम च बस। अर यु पता चलदो कि लेखक ना श्रीनगर विश्वविद्यालय से डा उमा मैठाणी का निर्देशन मा गढ़वाली गद्य मा एम फिल कार.
किताब इतना ख़ास छ कि मि तै डा अनिल से सम्पर्क करणो चाट/ राड़ पड़ी गे अर मीन पता लगाइ कि डा अनिल प्रसिद्ध इतिहासकार डा शिव प्रसाद डबराल का नाती छन। मीन पौड़ी मा शिव प्रसाद जीक नौनु डा विनय डबराल व ऋषिकेश मा डा संतोष डबराल से सम्पर्क कार कि मि तै सम्पर्क सूत्र बताओ। किन्तु सही फोन नंबर दुयुं मा नि छौ। फिर डा संतोसन बताई कि अनिलगैंडखाळ मा लेक्चरर छन। मीन भौत सा गढ़वळि साहित्यकारों तै बि पूछ कि डा अनिल कख छन किन्तु कै तै कुछ नि छौ पता। इख तक कि गढ़वाली साहित्यौ इतिहासकार संदीप रावत तै बि डा अनिल का बारा मा सम्पर्क सूत्र की जानकारी नि छे।
या गढ़वाली साहित्य संसार मा एक दुखद परम्परा ही माने जालि कि जै अन्वेषकना इथगा महत्वपूर्ण दस्ताबेज ल्याख उ गुमनामी मा च।
मी थोड़ा देर ही सही डा अनिल से मीलु। घर एक आम फोर्सड बैचलर का तरां इ छौ। किताब तो हूण जरूरी छौ। वास्तव दार्शनिक अधिक छन तो छपास की महत्वाकांक्षा नि हूण से बि यु ह्वे सकद कि अन्वेषण करणो स्व उलार पैदा नि हूणु हो।
मीन पाइ कि डा अनिल साहित्य का दृष्टि से कुछ निरास , उदास , हतास सि छन। मीन पूछ कि आपन साहित्यिक काम बंद किलै कार अर आज बि फोन कार किन्तु मि तै यथेष्ट उत्तर नि मील। डा अनिल कु बुलण छौ कि क्वी प्रोजेक्ट हाथ मा नि आण से इन ह्वे।
डा अनिल कु जन्म 1971 मा अधारीखाल (तब ऊंक पिता इख छया )। इंटर तक की शिक्षा दुगड्ड मा ह्वे। एमए ऊंन कोटद्वार स कार अर एम फिल डा उमा मैठाणी का निर्देशन मा कार। गढ़वाली गद्य मा अन्वेषण कार्य से पैल डा अनिल डबरालन समलोचना , दर्शन आदि को पुरो अध्ययन कर छौ तबी तो वो इथगा सटीक समालोचना , विवेचना करण मा सफल ह्वे सकिन।
डा अनिल तै जु सम्पर्क करण चांदन वु 09639628724 पर सम्पर्क कर सकदन।
कारण क्वी बि हो डा अनिल की निष्क्रियता से गढ़वाली अन्वेषण साहित्य को ही नुक्सान हूणु च।
** भोळ पढ़ो - हमारो स्वागत - 'आज बि ट्रांन्सफ़ॉर्मर नि आइ ' वाक्य से किलै ह्वाइ अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक नागराजा पूजा जात्रा वृतांत का बाकी भाग 8 में पढ़िए
Copyright @ Bhishma Kukreti 20 /6/15
bckukreti@gmail.com
Religious Tour Memoir , Garhwal ReligiousTour Memoir, Religious Tour Memoir, Tour memoir in Garhwali, Religious Tour Memoir of Local Deity Ritual Performances, Religious Tour Memoir of Nagraja Puja, Religious Tour Memoir of Gwill Puja, Memoir of Mumbai to Jaspur Journey, Journey Memoir from Mumbai to Dhangu, Nagraja Puja Tour, Nagraja Temple Ritual Tour,
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments