भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
ना जी ना ! मि भाजपा ख्वाळक न्यूतेर नि छौं जु भाजपाक पूरी-परसाद खैक भयंकर बामपंथी केजरीवाल पर तीर -बरछा चलौं ।
बिलकुल ना ! मी कॉंग्रेस कु पौण बि नि छौं जु लेफ्टिस्ट अरविन्द केजरीवाल तैं गाळि बि द्यूं अर समर्थन बि कौरुं।
ना ही मि विनोद बड़थ्वाळौ बुलण पर समाजवादी पार्टीक तरफन मार्क्सवादी केजरीवाल की काट कौरुं !
अजी सवाल ही पैदा नि हूंद कि मि लटमुंडऴया अन्ना हजारे कु इशारा पर कबि बि माओवादी केजरीवाल पर कीच कजीर लपोडुं !
मि त एक विकास प्रेमी छौं जु कारखाना खुलण तै भारत मा आर्थिक क्रांति का सूत्र समझदु। म्यार मानण च कि यदि भारत मा अगला पांच सालुं मा कारखाना खुलण मा आतासीत वृद्धि नि होली तो भारत पर आर्थिक बिपदा ही ना रक्षा विपदा बि आली।
अब द्याखो बामपंथी बिचारधारा का पुजारी केजरीवाल नरेंद्र मोदी पर हमला करणो बान इन बात बोलणु च जैं विचारधारा से उद्योग वृद्धि मा रुकावट आण वाळ च। कजीर फेंकू केजरीवाल बुलणु च बल मोदीन किसानु जमीन लूठ अर उद्योग धंदा खोलिन। याने कि कीच फेंकू अरविन्द केजरीवाल कु मानण च बल उद्योग खुलण ही नुकसानदेय च।
आज महाराष्ट्र अर गुजरात द्वी इन प्रदेश छन जख सबसे अधिक कारखाना अर कामका निर्यात बंदरगाह छन। उत्तर भारत -पूर्वी भारत का प्रवासयुं तैं अपण राज्य से अधिक रोजगार महाराष्ट्र अर गुजरात मा मिलद।
यदि महाराष्ट्र अर गुजरात मा कारखाना खुलिन तो अवश्य ही कारखाना खुलणो बान कृषि जमीन की आवश्यकता पोडि होलि अर किसानुन जमीन बेचीं होलि। महाराष्ट्र अर गुजरात मा उद्योगूं बान किसान -उद्योगपत्यूं बीच सबसे कम खट -पट हूंद। याने कि महाराष्ट्र -गुजरात का लोग जाणदा छन कि यदि उद्योग धंदा खुलण तो कृषि भूमि पर अतिक्रमण आवश्यक च। जरा उत्तराखंड मा उद्यम विकास द्याखो तो समज मा ऐ जालो कि यदि उत्तराखंड मा उद्योग विरोधी माओवादी सोच हूंद तो तराई -भाभर मा उद्योग खुल ही नि सकद छा।
सनसनी मा विश्वास करण वाळ अर सनसनी से ही टीआरपी बढ़ाण वाळ भारतीय मीडिया बि अमेरिकी परस्त किन्तु हिंसा मा विश्वास करण वाळ माओवादी विचारधारा का पोषक अरविन्द केजरीवाल , प्रशांत भूषण , मेधा पाटकर की नीतियों तैं बढ़ै चढैक प्रसारित करणा छन। " उद्योग के लिए किसानो खेत लिए जा रहे हैं " नारा ही भारत का वास्ता खतरनाक नारा च। क्या बगैर ख़ेतुं हस्तानंतर से कल कारखाना खुल सकदन। नही ! कल कारखाना खुलण त खेती की कुछ जमीन जाली ही।
जरा हम भारत का वास्ता नुकसानदेय माओवादी विचारधारा का लेखा -जोखा पश्चिम बंगाल मा देखवां ! मि सन 1976 मा मर्फी मा लग छौ अर उपभोक्ता खर्चा करणै शक्ति का हिसाब से तब पश्चिम बंगाल नंबर एक परदेश छौ। किन्तु म्यार दिखद दिखद माओवादी विचारधारा का पोषक कम्युनिस्ट शाशन मा पश्चिम बंगाल एक पिछड्यू प्रदेस ह्वे गे। जख 1970 तक उद्यम फलणा छा , लोगुं तैं रोजगार मिल्दो छौ उख पश्चिम बंगाल की घोर माओवादी विचारधारा वाळ सरकारन उद्योग चौपट करिन अर रोजगार पाणो दरवाजा बंद करिन। ममता बनर्जी बि माओवादी ख्वाळ की ही च। टाटा मोटर्स कारखाना बंद कराण मा वी तैं वोट अवश्य मीलि होला किन्तु बंगाल मा टाटा मोटर्स कारखाना बंद हूण से जु नुक्सान पूर्वी भारत तैं ह्वे वांक भरपाई आण वाळ बीस सालों मा बि क्या ह्वाल।
माओवादियुं किसान प्रेम एक छल च , छलावा च , छद्म च ।
माओवादियुं किसान प्रेम एक छल च , छलावा च , छद्म च ।
उद्योग खुलण भारत का वास्ता एक प्रमुख आवश्यकता च अर वांक वास्ता ख़ेतुं त्याग तो करण ही पोड़ल।
माओवादी विचारधारा का पोषक केजरीवाल , प्रशांत भूषण , मेधा पाटकर आद्युं फोकट का , दिखाणो बान , बोट पाणो बान किसान प्रेम अवश्य ही राष्ट्र का वास्ता एक धोखा च। मेरी अपणी सोच च कि हरेक भारतीय तै यूं धोखेबाज माओवादियों से दूर रौण पोड़ल अर माओवादियों का भकलौण मा नि आण चयेंद ।
Copyright@ Bhishma Kukreti 25 /3/2014
*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
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