एक अंक गढ़वाली नाटक )
इंटरनेट प्रस्तुती - भीष्म कुकरेती
सर्वाधिकार @ ललित मोहन थपलियाल ,गढ़वाल संगीत नाटक समाज , दिल्ली
पात्र -
वैदराज
हर सिंग
तुलसी राम
परमा नंद
(यो नाटक गढ़वाल संगीत नाटक समाज , दिल्लीका तत्वाधान मा प्रथम वार 21 अक्टूबर 1958 को सरोजनीनगर दिल्ली मा प्रदर्शित होय )
(यो नाटक सवर्गीय भैरव दत्त जी कुकरेती की स्मृति कु समर्पित च जौंक अभिनय कौशल , जिंदादिली अर सहृदयता सदनि याद रहली - ललित मोहन थपलियाल )
[पर्दा खुलद - वैदराज की बैठक ; वैदराज दवाई घोटणा छन , हुक्का पीणा छन ; हर सिंग को प्रवेश , गुस्सा मा च )
हरसिंग - पंडीजी प्रश्न करा !
वैदराज -अरे बैठ त सही ; सेवा ना सौंळी भकम प्रश्न करा। क्यान ह्वे इतना बबराट ?
हरसिंग -अजी तुम प्रश्न त करा ! मिन जि बथै दीण त प्रश्न ही क्यांक ? आज मीन द्वी चारुं क़तल्यो करण , ल्हास गिराण !
वैदराज (गाळी देंद ) -ले एक एक गोळी दिन मा चार बगत। एक लुट्या पाणी पे अर टप्प से जै !
हरसिंग -देखा गुरूजी चखन्यौ न करा। म्यार बरमंड तीड़ जाण इखमी।
वैदराज -अच्छु यार अच्छु , इनी जि अईं च त्वै पर त (कागज निकाळि रेखड़ा मार्दन ) मेख , ब्रिख , मिथुन जा भितर बिटेन आग त मांगि लौ सजला परै।
(हरसिंग भीतर जांद )
वैदराज - क्या जि ह्वे ये आज। ब्याळि तै त कुछ नि सूण छौ (सोचिक ) बखरों रोजगार च एको , हो न हो
(हर सिंग सजला लेक आंद )
हरसिंग -त बोला ?
वैदराज -बोलण क्या च बेटाराम ! चौपाया लापता हुयुं च , वांको ई प्रश्न
हरसिंग -सच्ची बात च गुरु जी। अब बतावो कु लीगी मेरो खाडू ? वैकि टंगड़ी तोड़दु मि अब्बी।
वैदराज -तांकि त मि नि जाणदो पर मिलण मुश्किल देखीणु च। मिल बि जाव तो बि हरचण्या रोग च भारे !
हरसिंग -अजी अंक्वै लगा तै गणत। कुछ सूद -भेद लगदु च ?
वैदराज -अक्वैक क्या लगाण , चौखुट्या ही लीगि हो , दुखुट्या लीगी हो पर खाडू ख़तम ही समझो।
हरसिंग -हे माराज तन नि ब्वालो , पुट तीस रुपया कु खाडू छौ। अब बोला मिन क्या जि कन ?
वैदराज -अरे तीन नरसिंग को खाडू बि त नि द्यो कब बटे , तब्बी होणा छन इ उत्पात। इबरी जरूर नरसिंग नचै दे।
हरसिंग -द ल्या एक बकै स्या बि लग।
वैदराज - हमन त जु द्याख सि ब्वाल। बगैर नरसिंग नचायुं नि बणन तेरो काम।
हर सिंग - दा डाम त धरे गेन।
वैदराज -कब बटे हरच्युं च खाडू ?
हरसिंग -अजी परसी स्याम त छैं छौ।
वैदराज -वी कबरिणो -डबरिणो खाडू ?
हरसिंग -हाँ गुरु जी वी।
वैदराज -छौ बि त बिलकुल तुरंग बण्यु। क़ुज्यणि कत्गौं की टक रै होली वै पर !
हरसिंग (सोच मा ) -तुमन ठीक ब्वाल गुरु ! नत्था अर मंगसिरु रैंदा छा वैका रान -फट्टा जपकाणा। अर लँडेरुं पार्टी बि च ऊंकी। . मै लगद कि तौंक पोटग्यूँ जोग ह्वे गे मेरो खाडू। तौंकि लदोड़ी नि फोड़ी त मेरो नाम नी हरसिंग। अबि सालो को हणकट बणाता हूँ (जाण लगद )
वैदराज -अरे ठैर ठैर
हरसिंग -नै जी! सालो को हणकट बणाता हूँ
वैदराज -अरे अकल से काम ले। उतौळी नि कौर। गणत मा निकळी कि दुखुट्या या चौखुट्या हो ; नौ त नि ले मिन कैकु। अर जु स्याळ लेगि हो खाडू तैं। कोदड़ी सार ऊनि बि स्याळ रोज अटगाणा - रौंदन बखरों तैं । इनी सुदी फौंदारी नि करण। पैल ओर -पोर देख आ।
हरसिंग -गुरु जी बेकार का अळजाट कना छवां मेको। मि गधन बि देख औंद पर यु काम पक्को यु दूरंग्या छोरों कु ही च।
वैदराज -ह्वाल ! हवालु पर जरा पैल ढूंढ त कौर !
हरसिंग -जांदू छौं। पर जु स्याळन बि मारि हो तबि मीन गांका चकडैत दुरस्त बणै दिणन।
वैदराज -फिर वी अनघढ़ छ्वीं , सुदी बिना कसूर का बणै दीन्दन दुरस्त ?
हरसिंग - अजी यूंक दाग नि लगद खाडू पर तो स्याळ बि क्योक लिजांद ?
(हरसिंग प्रस्थान करद )
(तुलसीराम कु प्रवेश )(हरसिंग प्रस्थान करद )
तुलसीराम -प्रणाम बड़ा जी !
वैदराज -ओहो! चरंजीव रौ ब्यटा । कब औण ह्वे भै ?
तुलसीराम -यहाँ त ब्याळि ही औं पर एक सप्ताह ममाकोट छौ जयुं
वैदराज -तुमर नना जीक सप्ताह रै होलु ?
तुलसीराम -ना ना ! मेरो मतलब छौ एक हफ्ता तलक मि ममाकोट रौं।
वैदराज -खूब करे खूब। तुम त डिल्ली काम करदां धौं !
तुलसीराम -दिल्ली कु जु सबसे बड़ो दफ्तर च उखी काम करुद मि।
वैदराज -पर तुमर काम क्या च वख ?
तुलसीराम -कनै समझाया जाव् ! वख एक काम थोड़ा होंद। कखी इलेक्ट्रिक का दफ्तर छन , कखी रेलवाई का छन , क्वी हवाई जाज का। कखी बिल्डिंग बणणी छन त कखी डाम बणना रौंदन ;कखी कागज़ लिखेणा छन तो कखी फाइलों चट्टा छन लग्यां। हजारों आदिम त फ़ैल लिजाणो काम करदन ये दफ्तर से वै दफ्तर अर वै दफ्तर से ये दफ्तर।
वैदराज -फ़ैल हैं !भौत गर्री हूंद ?
तुलसीराम -सरकारी चीज च त वजनदार किलै नि हूण। पण जाण देवा बडा जी। डेरा का समाचार सुणावां। ये दफतर -सुफ्तर की बात आपक समज मा क्या आण !
वैदराज -ना ना ब्यटा समजी ग्यों। बैदकी त मीन अब शुरू कार। पैले मी बि दिल्ली लेबर डिपार्टमेंट मा चपड़ासी छौ।
तुलसीराम -ओहो मै पता ही नि छौ। कब छया आप दिल्ली ?
वैदराज -पुराणी बात च बेटाराम। तब चौंळ छ्या दस सेर कु अर आटु 16 सेर कु। नळखों पर पाणि चलदो छौ पर इन दडबडु ना जन अजकाल सुण्यानु च।
तुलसीराम -या शिकायत त आपकी दुरस्त च। पण उबाळी ल्यावो त क्वी हर्ज नी च।
वैदराज -ना जि ना हर्ज क्या हूण। चला बड़ी खुसी की बात च कि दिल्ली तुम तैं पसंद ऐ गे। यख डेरा फुंडै त क्या तबियत लगण तुमारि हैँ ?
तुलसीराम -अपण वतन च बड़ा जी। ये वास्ता तबियत लगौण ही पड़द। निथर यख छह क्या च ? इख ना खाणी ना पीणी . कोटद्वारा म बि साग सब्जी दर्शन नि ह्वेन।
वैदराज -हे राम कख बिटेन देखण ; अर आदत देख्यो तुमरि दिल्ली की ; आजकल त खाणा बि क्या खाणा ह्वेल्या ?
तुलसीराम - आप मा सच बोलणु छौं बडा जी , कई दिन बाद ब्याळे रात खाय होली द्वी रुटि , कुछ शिकार उकार बणी छे।
वैदराज -कना कना ; जख बटे आइ होली या शिकार ?
तुलसीराम -पुजै छे बल यखी फुंड कखी।
वैदराज -हमन त नि सुणी कखी पुजै . कु देगी तुमरा डेरा ?
तुलसीराम -एक लड़का सि छौ। मीन त नि पछ्याण। रुप्या बांटी छे। हमन बि द्वी बांटी ले लीने। .
वैदराज -जब पुजै छै त रुप्या बांटी कनि भै ?
तुलसीराम -सी बात मेरी बि समज मा नि आयि।
वैदराज -ऐ जाली , ऐ जाली , जैकु खाडु छयो वू बाग़ ब ण्यु च
तुलसीराम -क्या मतबल ?
(परमानंद कु प्रवेश )
परमानंद - हे वैदराज भैजी ! मि त मरदु छौं अबि ! (पुटुक पकड़िक बैठ जांद )
वैदराज -अरे ह्वे क्या च ? (नबज देखिक ) ना ना भुलाराम मरदु त नि छै अबि पर भोगिल जरुर। पेट दिखौ .... (पेट देखि) पेट बण्यूं च ढोल .... टन्न।
परमानंद - अर चड़क पड़नि छन पर है रे चड़का
वैदराज -कखी पौणै ? भोज भाज , जीमण -उमण मा सुदी फूकी गे हो अन्दादुन्द ?
परमानंद -जीमण जामण त नि छे पर ब्याळि गल्ती ह्वे गे। बतीसेक रुटि खै गौं।
वैदराज -बत्तीस रुटि ? साग क्या छौ ?
परमानंद -झूट नि बुलण वैदराज जी ! सिकारी मा खये गैन (फिर पेट पकड़दु ) अब द्या हजमा कि गोळी चटपट निथर मेरो त मुगदान हूंद अबि
वैदराज -कछ्मोळी बि ख़ाई होलि ?
परमानंद -खैत छैं च भैजी (पेट मा चड़क ) हे मेरी ब्वे !
तुलसी -देखा जी , भोजन चाहे कुछ बि बण्यु हो अपण पेट कु अंदाज तो जरुर रखण चैंद।
परमानंद -यी उपदेसक जी कै गां का होला ?
वैदराज -हैं तीन नि पछ्याण ? राजारामौ नौनु कनु च , तुलसीराम
परमानंद -अच्छा द्वी बचन उपदेस वै राजाराम बि दे दियां बेटा। वै देखिक त सरा गढ़वाळ का सर्यूळ काम्पदन।
वैदराज -ले भै द्वी गोळी अबि ले ले , द्वी दुफरा मा अर द्वी रात सींद दें।
परमानंद -(दवै खांद ) अर इबरें क्या खौं ?
वैदराज -नि रौंद मि जाण। रात बटे बचइं त होली द्वीएक कटोरी ?
परमानंद -झूट नि बोलण वैदराज जी , बचाईं त छैं च।
वैदराज -बस द्वी कटोरी खै दे अर श्रीनगर कि बस मा बैठ जै
परमानंद -मड़घट ही जाण हॉल तो अफु खर्च कौरिक किलै जौं। जु लिजाल सी लिजाल (जाण लगद )
वैदराज -अच्छा सूण। कैक छे पुजाइ जु त्वै सिकार मील ?
परमानंद -पुजै ना जी नकद ही रुप्या दीने। पल्या ख्वाळ कु नत्था दे गे छौ . भरसोडी कौन मारे छौ बल बखरी !
वैदराज -अच्छा ! पर बात समझ मा नि आई ; भरसोड़ी च यख बटी छै मील। कबरि वख करौंन बखरी मार , कबरि बाँटि लगाई अर वखै सिकार यख किलै आय बिकणौ ?
परमानंद -स्या बात त मेरी समज मा बि नि आई।
वैदराज -ऐ जाली , ऐ जाली भुलाराम ! हरसिंग समझालु अबि।
परमानंद -हरसिंग ? कनु वैकि क्या खोये हमन ?
वैदराज -खोये त वैन च तुमन त खाये च। वैकु खाडू जु लापता रै ब्याळि बटी। अब खुली वांकु भेद।
परमानंद -तन ना बोला वैदराज जी , नकद द्वी रूप्या दियां छन।
वैदराज -मीन कुछ नि बोलणाय , ओ अफार ऐ गे हरसिंग। वी बोलल अब।
परमानंद -हे भैजी वै मा नि बुल्यां तुमरा हाथ जुड्यां छन। मी पता नि कु छन वू चकडैत। हरसिंग अनाड़ी आदिम च। सुदी बी लगै द्यालो द्वी चार घपक !
(चादर ओढ़िक बैठ जांद )
(हाथ पर खुकरी लेक गुस्सा मा हरसिंग कु प्रवेश )
हरसिंग -हाँ जी पंडी जी ! परमा त नि आयी इना ?
(तुलसीराम भैर खक जांद )
वैदराज -मिली च खाडू ?
हरसिंग -खाडू त खये गए। परमानंद बि आये इना ?
वैदराज (डाँटिक )-फुंड धौर तै हथ्यार . हम त त्यार खाडू कुशल मंगल पुछणा छंवां अर तू छे कि हथ्यार मप्याणु ?
हरसिंग (नरम पोड़िक ) -ना ना तुम पर नि छौं मि नपाणु हथ्यार। कन बात बोली तुमन पर मीन उ परमा नि छुड़ण।
वैदराज (वैक हथ्यार छीनिक ) -तैं इनै धौर पैल। अब बोल क्या कार परमान ?
हरसिंग -ब्याळि रात सिकार खाये वैन। कख बटे जि खाय ?
वैदराज -अर जु पौड़ी बटे लै हो ?
हरसिंग -न्है जी ! न्है ! वैका कोलणा मीन अपणा खाडू का हडगा पछ्याणने।
वैदराज -यांको तो तू अनाड़ी छे अर क्यांकु ! तेरा खाडू का हडगो मा रसीदी टिकट लग्यां छा क्या ? ततगै मा ही खुकरी लेकि निकळ गे ?
हरसिंग -आज त कुछ बि ह्वे जावु …।
वैदराज -अरे बैठ जरा एक घड़ी। सौ सलाह करला। कुछ स्वीं सां मीन बि सूण। एक चिलम तमखु पियाल
हरसिंग -तमखु त मिन कतै नि पीण अबि ( हरसिंग बुगचा बण्यूं परमानंद का मथि बैठ जांद ) हे यु क्या च ? (परमानंद काम्पण लगद ) यु डगडग्याट कनु होणु च ? (चादर उठांद ) ओहो चोर त यखी बैठ्यूं च ! (गर्दन पकड़िक उठांद )
परमानंद -चोर नि छौं बीमार छौं ,
हरसिंग -बेमार नि छे त मूक लुकैक किलै छे पड्यूं ?
परमानंद - पसीना लीणु छौं
हरसिंग -पखा ! मि गडदु त्वै पर अस्यो -पस्यो अबि (झकोऴदु ) बतौ कु कु छा तुम जॉन मेरो खाडु चोरे ? मिन एक एक के क़तल्यो कन आज।
वैद राज -अरे गौळ त छोड़ वैक तबि त बोललु। पैल बात सूण तब कौरि फौंदारी।
परमानंद - भैजि ! ये हरसिंग तैं ह्वाइ क्या च ? कनु खाडू की बात करणू च यो।
वैदराज - खाडू , भुलाराम एक खाद्य पदार्थ कु नाम च।
हरसिंग -बता , ऊँ सब्युं नाम बता।
परमानंद - सच्ची बात च भै , मि कैकु नौ नि जाणदु। मीम त नत्था आय अर द्वी रुप्याक सिकार देगे। जु मी जाणदु वू त्यार खाडू च सची खांदु मी वीं सिकार ?
हरसिंग - नत्था दगड़ी मंगसिरु बि जरुर रै होलु। और कु छौ?
परमानंद - अरे नत्था ही छौ यार जब बोलणु छौ। खाडू मारण मा कु कु शामिल छ्या यांक मि क्या जाणु।
हरसिंग - नत्था अर मंगसिरु की त मि करदु अठ्वाड़ अबि , पर इन नि समिज कि तु छुट जैलु (खुकरी लेक भैर निकळद )
वैदराज -नखरा फ़ंस्या भुलाराम ?
परमानंद - अर कुछ बात न चित ; महा अनाड़ी च यु हरसिंग।
वैदराज -पर जब तेरो कसूर ही नि छौ कुछ त इतना किलै डौरी वे देखि ?
परमानंद -डरण नि छौ त सुदी घपक खाणि छे वै कि ?पर एक बात च डरण ह्वे मी थरथराट अर पेटै पीड़ा कुज्य़ाण जख गै होली।
वैदराज -अच्छु भुला , फिर ऐ दवै मंगणो।
परमानंद - कनु
वैदराज -द्वी गोऴयुं मा तेरा पेट पीड़ा ठीक कर दे , वांकी कुछ गुण असान त कुछ ना अर जैन भतग लगैने वी जि बणे तेरो धनवंतरी !
परमानंद -ठट्ठा करणु छौ भैजि ! तुमर गोळीयूंन होये यु चमत्कार।
वैदराज -तनु बोल पर हरसिंग फेर आंद तेरी खोज मा अभि ; वांक दवै नि च मीम कुछ।
परमानंद - ये तैं कनि कै थामा भैजी आज , निथर येन त कुछ अनर्थ कन।
वैदराज -पर तुमन बि कुछ कम अनर्थ नि कर्यो भुलाराम जु उतनी जंगी खाडू एक ही रात माँ चटकै दे !
परमानंद -पर मीन क्या जाणनी छै भैजी कि यो चोरी कु खाडू च , तुमि ब्वालो ?
वैदराज -हमन क्या बुलण बाबू , खाडू का हडगा बोलणा छन। तू होये , नत्था होये अर बाबुसाब अयूं च जु दिल्ली बटी तुलसीराम , तुम तीनों मदि कै न कैकि च या कारस्तानी।
(तुलसीराम कु प्रवेश )
तुलसीराम -बडाजी ! हरसिंग त नी च यहाँ ?
वैदराज -अबि त नी च , पर जरा ठैर करा ; अभी औंदु च तुमरि बि खोज
तुलसीराम -हम तैं त नी च वैक डौर बडाजी। वैकु खाडू और जैन बि खै ह्वे पर हमन त नि खै।
वैदराज -तुमन क्या खाय ?
तुलसीराम -पता यु चौल बल नत्था अर मंगसिरु कु त खुल्युं च बड़ो भारी बिजिनेस। उ बखरा मारी सिकार बेचणा छन अर नाजायज शराब बि बणौणा छन।
परमानंद - ये कनु मोरे यूंक !
तुलसीराम -जां से गाँव मा बदनामी नि हो ये अपणा काम दूर इ दूर करदा छा , अर शराब त सिरफ कौतिग बगैरह मा बेचदा छा। अब सरा रिपोर्ट पटवारी मा पौंछि गे।
वैदराज -तब त बात पक्की च , यूँ कसाईयोंन ही चोरे हरसिंग कु खाडू
तुलसीराम -ना जी ना ! नत्था त यख ब्याळे रात ही आये। भरसोड़ी कौथिग मा वैन चार बुगठ्या मारी छे। वी बेचणु छौ अज्युं तक।
परमानंद - हे राम त हमन सात दिनक सडीं सिकार खाये ?
तुलसीराम -खई होली तब।
परमानंद -कनि अंधेर होय। अरे बखरी ही छे कि कुछ कुत्ता या ?
वैदराज -अब त्यांकी जि क्या ब्वन तब , ब्यापारी जी होया
परमा नंद -यूं लोळोन सब करम भ्रष्ट कर यलने।
वैदराज - नत्था अर मंगसिरु छन कख इबरी ?
तुलसीराम - फरार छन। प्रधान अलग खोजणु च ऊँ तैं अर हरसिंग खुकरी लेक निकऴयूँ ही च।
परमानंद - हरसिंग का हाथ आयों यूँ मद्दे क्वी त वैन ज्यूंदो नि छोड़न। भारी लाटो गुस्सा च वैको। कखी इथैं ना ऐजा फेर।
तुलसीराम - चाचा साब , उनै द्याखो ! वी आणु च शायद , कखी तलवारों वार न करी दयावो वो
(द्वी वैदराज जीक पैथर लुक जांदन )
(हरसिंग कु प्रवेश , वैक हथ खून से लथ पथ )
हरसिंग -एकी चोट मा साले की गर्दन धळका दी , एकी चोट मा गर्दन अलग कर दे , बदमास कु बच्चा !
वैदराज - ये ळोळा क्या करे तीन ?
हरसिंग -अर वैन कन बिताय मीं पर ? अर म्यार कुठार पुटुक मतबल अनाजौ भंडार पुटुक लुक्युं भि राय साला।
वैदराज - अरे छौ कु वो ?
हरसिंग -अजी वी खाडू अर को ?
वैदराज - खाडू मिल गै त्वै ?
हरसिंग -मील च और क्या ? उटकर्मी मादो कख बिटेन कुठार पुटुक पौंछे साला। सरा रात द्वी दूण सट्टी बुकै गे पापी मादो।
वैदराज - भारी नुक्सान करी दे वैन। पर चल मील त गे खाडू।
हरसिंग -अर मीन बि वैते मजा चखै दे। लौ पकड़ी भैर अर एक ही चोट मा खाडू की मुंडळी गै होली दस गज दूर !
वैदराज - शाबास ! मानते हैं बात तेरी हरसिंग की !
हरसिंग -द चला रै जु जु छंवां तुम सिकर्या। भड्यावो अर बांटि लगावा !
परमानंद -चला !
तुलसीराम -चला
वैदराज - सिरी इथें बि भेज दे रे हरसिंग !
(सबि भैर जान्दन अर वैदराज दवै घोटण मा व्यस्त ह्वे जांदन )
सर्वाधिकार - स्व ललित मोहन थपलियाल के उत्तराधिकारी , नोइडा , ऊतर प्रदेश 1 /3 /2014
Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal; Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal born in village Shrikot; Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal born in Khatsyun Patti; Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal belonged to Pauri Garhwal; Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal born in Uttarakhand; Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal who worked with Pioneer newspaper ; Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal worked in WHO; Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal worked in New York; Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal worked Geneva; Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal wrote five famous Garhwali dramas; Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal wrote many Hindi dramas or stage plays; Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal founder of Jagar and Sadhna Natya Kendra ; Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal born in1920; Script for one act Suspenseful, Hilarious, Humorous drama/stage play written by Lalit Mohan Thapliyal expired in 2005;
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