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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, March 3, 2014

खाडू लापता गढ़वाली नाटक की पटकथा

एक अंक गढ़वाली नाटक )

                             नाटककार :स्व ललित मोहन थपलियाल 
                          इंटरनेट प्रस्तुती - भीष्म कुकरेती 
             सर्वाधिकार @ ललित मोहन थपलियाल ,गढ़वाल संगीत नाटक समाज , दिल्ली

पात्र -
वैदराज 
हर सिंग 
तुलसी राम 
परमा नंद 
(यो नाटक गढ़वाल संगीत नाटक समाज , दिल्लीका तत्वाधान मा प्रथम वार 21 अक्टूबर 1958 को सरोजनीनगर दिल्ली मा प्रदर्शित होय )
(यो नाटक सवर्गीय भैरव दत्त जी कुकरेती की स्मृति कु समर्पित च जौंक अभिनय कौशल , जिंदादिली अर सहृदयता सदनि याद रहली - ललित मोहन थपलियाल )
                                         खाडू लापता 
 [पर्दा खुलद - वैदराज की बैठक ; वैदराज दवाई घोटणा छन , हुक्का पीणा छन ; हर सिंग को प्रवेश , गुस्सा मा च )
हरसिंग - पंडीजी प्रश्न करा !
वैदराज -अरे बैठ त सही ; सेवा ना सौंळी भकम प्रश्न करा।  क्यान ह्वे इतना बबराट ?
हरसिंग -अजी तुम प्रश्न त करा ! मिन जि बथै दीण त प्रश्न ही क्यांक ? आज मीन द्वी चारुं  क़तल्यो करण , ल्हास गिराण !
वैदराज (गाळी देंद ) -ले एक एक गोळी दिन मा चार बगत।  एक लुट्या पाणी पे अर टप्प से जै !
हरसिंग -देखा गुरूजी चखन्यौ न करा।  म्यार बरमंड तीड़ जाण इखमी। 
वैदराज -अच्छु यार अच्छु , इनी जि अईं च त्वै पर त (कागज निकाळि रेखड़ा मार्दन ) मेख , ब्रिख , मिथुन  जा भितर बिटेन आग त मांगि लौ सजला परै। 
(हरसिंग भीतर जांद )
वैदराज - क्या जि ह्वे ये आज।  ब्याळि तै त कुछ नि सूण छौ (सोचिक ) बखरों रोजगार च एको , हो न हो
(हर सिंग सजला लेक आंद )
हरसिंग -त बोला ?
वैदराज -बोलण क्या च बेटाराम ! चौपाया लापता हुयुं च , वांको ई प्रश्न 
हरसिंग -सच्ची बात च गुरु जी।  अब बतावो कु लीगी मेरो खाडू ? वैकि टंगड़ी तोड़दु मि अब्बी। 
वैदराज -तांकि त मि  नि जाणदो पर मिलण मुश्किल देखीणु च।  मिल बि जाव तो बि हरचण्या रोग च भारे ! 
हरसिंग -अजी अंक्वै लगा तै गणत।  कुछ सूद -भेद लगदु च ?
वैदराज -अक्वैक क्या लगाण , चौखुट्या  ही लीगि  हो , दुखुट्या लीगी हो पर खाडू ख़तम ही समझो। 
हरसिंग -हे माराज तन नि ब्वालो , पुट तीस रुपया कु खाडू छौ।  अब बोला मिन क्या जि कन ?
वैदराज -अरे तीन नरसिंग को खाडू बि त नि द्यो कब बटे , तब्बी होणा छन इ उत्पात।  इबरी जरूर नरसिंग नचै दे। 
हरसिंग -द ल्या एक बकै स्या बि लग। 
वैदराज - हमन त जु द्याख सि ब्वाल।  बगैर नरसिंग नचायुं नि बणन तेरो काम। 
हर सिंग - दा डाम त धरे गेन। 
वैदराज -कब बटे हरच्युं च खाडू ?
हरसिंग -अजी परसी स्याम त छैं छौ। 
वैदराज -वी कबरिणो -डबरिणो खाडू ?
हरसिंग -हाँ गुरु जी वी। 
वैदराज -छौ बि त बिलकुल तुरंग बण्यु।  क़ुज्यणि कत्गौं की टक रै होली वै पर ! 
हरसिंग (सोच मा ) -तुमन ठीक ब्वाल गुरु ! नत्था अर मंगसिरु रैंदा छा वैका रान -फट्टा जपकाणा।  अर लँडेरुं पार्टी बि च ऊंकी।  . मै लगद कि तौंक पोटग्यूँ जोग ह्वे गे मेरो खाडू। तौंकि लदोड़ी नि फोड़ी त मेरो नाम नी हरसिंग।  अबि सालो को हणकट बणाता हूँ (जाण लगद ) 
वैदराज -अरे ठैर ठैर
हरसिंग -नै जी! सालो को हणकट बणाता हूँ
वैदराज -अरे अकल से काम ले। उतौळी नि कौर।  गणत मा निकळी कि दुखुट्या या चौखुट्या हो ; नौ त नि ले मिन कैकु।  अर जु स्याळ लेगि हो खाडू तैं।  कोदड़ी सार ऊनि बि स्याळ रोज अटगाणा - रौंदन बखरों तैं । इनी सुदी फौंदारी नि करण।  पैल ओर -पोर देख आ। 
हरसिंग -गुरु जी बेकार का अळजाट कना छवां मेको।  मि गधन बि देख औंद पर यु काम पक्को यु दूरंग्या छोरों कु ही च। 
वैदराज -ह्वाल ! हवालु पर जरा पैल ढूंढ त कौर !
हरसिंग -जांदू छौं।  पर जु स्याळन बि मारि हो तबि मीन गांका चकडैत   दुरस्त बणै दिणन।  
वैदराज -फिर वी अनघढ़ छ्वीं , सुदी बिना कसूर का बणै दीन्दन दुरस्त ? 
हरसिंग - अजी यूंक दाग नि लगद खाडू पर तो स्याळ बि क्योक लिजांद ?
 (हरसिंग प्रस्थान करद )
(तुलसीराम कु प्रवेश )
तुलसीराम -प्रणाम बड़ा जी !
वैदराज -ओहो! चरंजीव रौ ब्यटा  ।  कब औण ह्वे भै ?
तुलसीराम -यहाँ त ब्याळि ही औं पर एक सप्ताह ममाकोट छौ जयुं 
वैदराज -तुमर नना जीक सप्ताह रै होलु ?
तुलसीराम -ना ना ! मेरो मतलब छौ एक हफ्ता तलक मि ममाकोट रौं। 
वैदराज -खूब करे खूब।  तुम त डिल्ली काम करदां धौं !
तुलसीराम -दिल्ली कु जु सबसे बड़ो दफ्तर च उखी काम करुद मि। 
वैदराज -पर तुमर काम क्या च वख ?
तुलसीराम -कनै समझाया जाव् ! वख एक काम थोड़ा होंद।  कखी इलेक्ट्रिक का दफ्तर छन , कखी रेलवाई का छन , क्वी हवाई जाज का।  कखी बिल्डिंग बणणी छन त कखी डाम बणना रौंदन ;कखी कागज़ लिखेणा छन तो कखी फाइलों चट्टा छन लग्यां।  हजारों आदिम त फ़ैल लिजाणो काम करदन ये दफ्तर से वै दफ्तर अर वै दफ्तर से ये दफ्तर। 
वैदराज -फ़ैल हैं  !भौत गर्री हूंद ?
तुलसीराम -सरकारी चीज च त वजनदार किलै नि हूण।  पण जाण देवा बडा जी।  डेरा का समाचार सुणावां।  ये दफतर -सुफ्तर की बात आपक समज मा क्या आण !
वैदराज -ना ना ब्यटा समजी ग्यों।  बैदकी त मीन अब शुरू कार। पैले मी बि दिल्ली लेबर डिपार्टमेंट मा चपड़ासी छौ। 
तुलसीराम -ओहो मै पता ही नि छौ।  कब छया आप दिल्ली ?
वैदराज -पुराणी बात च बेटाराम। तब चौंळ छ्या दस सेर कु अर आटु 16 सेर कु।  नळखों पर पाणि चलदो छौ पर इन दडबडु  ना जन अजकाल सुण्यानु च। 
तुलसीराम -या शिकायत त आपकी दुरस्त च।  पण उबाळी ल्यावो त क्वी हर्ज  नी च। 
वैदराज -ना जि ना हर्ज क्या हूण।  चला बड़ी खुसी की बात च कि दिल्ली तुम तैं पसंद ऐ गे।  यख डेरा फुंडै त क्या तबियत लगण तुमारि हैँ ?
तुलसीराम -अपण वतन च बड़ा जी।  ये वास्ता तबियत लगौण ही पड़द।  निथर यख छह क्या च ? इख ना खाणी ना पीणी . कोटद्वारा म बि साग सब्जी दर्शन नि ह्वेन। 
वैदराज -हे राम कख बिटेन देखण ; अर आदत देख्यो तुमरि दिल्ली की ; आजकल त खाणा बि क्या खाणा ह्वेल्या ?
तुलसीराम - आप मा सच बोलणु छौं बडा जी , कई दिन बाद ब्याळे रात खाय होली द्वी रुटि , कुछ शिकार उकार बणी छे। 
वैदराज -कना कना ; जख बटे आइ होली या शिकार ?
तुलसीराम -पुजै  छे बल यखी फुंड कखी। 
वैदराज -हमन त नि सुणी कखी पुजै . कु देगी तुमरा डेरा ?
तुलसीराम -एक लड़का सि छौ।  मीन त नि पछ्याण।  रुप्या बांटी छे।  हमन बि द्वी बांटी ले लीने। . 
वैदराज -जब पुजै छै त रुप्या बांटी कनि भै ?
तुलसीराम -सी बात मेरी बि समज मा नि आयि। 
वैदराज -ऐ जाली , ऐ जाली , जैकु खाडु छयो वू बाग़ ब ण्यु च 
तुलसीराम -क्या मतबल ?
 (परमानंद कु प्रवेश )
परमानंद - हे वैदराज भैजी ! मि त मरदु छौं अबि ! (पुटुक पकड़िक बैठ जांद )
वैदराज -अरे ह्वे क्या च ? (नबज देखिक ) ना ना भुलाराम  मरदु त नि छै अबि पर भोगिल जरुर।  पेट  दिखौ ....  (पेट देखि)  पेट बण्यूं च ढोल .... टन्न।
परमानंद - अर चड़क पड़नि छन पर है रे चड़का 
वैदराज -कखी पौणै ? भोज भाज , जीमण -उमण मा सुदी फूकी गे हो अन्दादुन्द ?
परमानंद -जीमण जामण त नि छे पर ब्याळि गल्ती ह्वे गे।  बतीसेक रुटि खै गौं। 
वैदराज -बत्तीस रुटि ? साग क्या छौ ?
परमानंद -झूट नि बुलण वैदराज जी ! सिकारी मा खये गैन (फिर पेट पकड़दु ) अब द्या हजमा कि गोळी चटपट निथर मेरो त मुगदान हूंद अबि 
वैदराज -कछ्मोळी बि ख़ाई होलि ?
परमानंद -खैत छैं च भैजी (पेट मा चड़क ) हे मेरी ब्वे !
तुलसी  -देखा जी , भोजन चाहे कुछ बि बण्यु हो अपण पेट कु अंदाज तो जरुर रखण चैंद। 
परमानंद -यी उपदेसक जी कै गां का होला ?
वैदराज -हैं तीन नि पछ्याण ?  राजारामौ नौनु कनु च , तुलसीराम
परमानंद -अच्छा द्वी बचन उपदेस वै राजाराम बि दे दियां बेटा।  वै देखिक त सरा गढ़वाळ का सर्यूळ काम्पदन। 
वैदराज -ले भै द्वी गोळी अबि ले ले , द्वी दुफरा मा अर द्वी रात सींद दें।
परमानंद -(दवै खांद ) अर इबरें क्या खौं ? 
वैदराज -नि रौंद मि जाण।  रात बटे बचइं त होली द्वीएक कटोरी   ?
परमानंद -झूट नि बोलण वैदराज जी , बचाईं त छैं च। 
वैदराज -बस द्वी कटोरी खै दे अर श्रीनगर कि बस मा बैठ जै
परमानंद -मड़घट ही जाण हॉल तो अफु खर्च कौरिक किलै जौं।  जु लिजाल सी लिजाल (जाण लगद ) 
वैदराज -अच्छा सूण।  कैक छे पुजाइ जु त्वै सिकार मील ?
परमानंद -पुजै ना जी नकद ही रुप्या दीने।  पल्या ख्वाळ कु नत्था दे गे  छौ . भरसोडी कौन मारे छौ बल बखरी !
वैदराज -अच्छा ! पर बात समझ मा नि आई ; भरसोड़ी च यख बटी  छै मील।  कबरि वख करौंन बखरी मार , कबरि बाँटि लगाई अर वखै सिकार यख किलै आय बिकणौ ?
परमानंद -स्या बात त मेरी समज मा बि नि आई।   
वैदराज -ऐ जाली , ऐ जाली भुलाराम ! हरसिंग समझालु अबि।
परमानंद -हरसिंग ? कनु वैकि क्या खोये हमन ?
वैदराज -खोये त वैन च तुमन त खाये च।  वैकु खाडू जु लापता रै ब्याळि बटी।  अब खुली वांकु भेद।
परमानंद -तन ना बोला वैदराज जी , नकद द्वी रूप्या दियां छन। 
वैदराज -मीन कुछ नि बोलणाय , ओ अफार ऐ गे हरसिंग।  वी बोलल अब। 
परमानंद -हे भैजी वै मा नि बुल्यां तुमरा हाथ जुड्यां छन।  मी पता नि कु छन वू चकडैत।  हरसिंग अनाड़ी आदिम च।  सुदी बी लगै द्यालो द्वी चार घपक !
(चादर ओढ़िक बैठ जांद )
(हाथ पर खुकरी लेक गुस्सा मा हरसिंग कु प्रवेश )
हरसिंग -हाँ जी पंडी जी ! परमा त नि आयी इना ?
(तुलसीराम भैर खक जांद )
वैदराज -मिली च खाडू ?
हरसिंग -खाडू त खये गए।  परमानंद बि आये इना ?
वैदराज  (डाँटिक )-फुंड धौर तै हथ्यार . हम त त्यार खाडू कुशल मंगल पुछणा छंवां अर तू छे कि हथ्यार मप्याणु ?
हरसिंग (नरम पोड़िक ) -ना ना तुम पर नि छौं मि नपाणु हथ्यार।  कन बात बोली तुमन  पर मीन उ परमा नि छुड़ण।  
वैदराज (वैक हथ्यार छीनिक ) -तैं इनै धौर पैल।  अब बोल क्या कार परमान ?
हरसिंग -ब्याळि रात सिकार खाये वैन।  कख बटे जि खाय ?
वैदराज -अर जु पौड़ी बटे लै हो ?
हरसिंग -न्है जी ! न्है ! वैका कोलणा मीन अपणा खाडू का हडगा पछ्याणने।   
वैदराज -यांको तो तू अनाड़ी छे अर क्यांकु ! तेरा खाडू का हडगो मा रसीदी टिकट लग्यां छा क्या ? ततगै मा ही खुकरी लेकि निकळ गे ?
हरसिंग -आज त कुछ बि ह्वे जावु  …। 
वैदराज -अरे बैठ जरा एक घड़ी।  सौ सलाह करला।  कुछ स्वीं सां मीन बि सूण।  एक चिलम तमखु पियाल
हरसिंग -तमखु त मिन कतै नि पीण अबि ( हरसिंग बुगचा बण्यूं परमानंद का मथि बैठ जांद ) हे यु क्या च ? (परमानंद काम्पण लगद ) यु डगडग्याट कनु होणु च ? (चादर उठांद ) ओहो चोर त यखी बैठ्यूं च ! (गर्दन  पकड़िक उठांद )  
परमानंद -चोर नि छौं बीमार छौं , 
हरसिंग -बेमार नि छे त मूक लुकैक किलै छे पड्यूं ?
परमानंद - पसीना लीणु छौं   
हरसिंग -पखा ! मि गडदु  त्वै पर अस्यो -पस्यो अबि (झकोऴदु ) बतौ कु कु छा तुम जॉन मेरो खाडु चोरे ? मिन एक एक के   क़तल्यो कन आज। 
वैद राज -अरे गौळ त छोड़ वैक तबि त बोललु।  पैल बात सूण तब कौरि फौंदारी।  
परमानंद - भैजि ! ये हरसिंग तैं ह्वाइ क्या च ? कनु खाडू की बात करणू च यो। 
वैदराज - खाडू , भुलाराम एक खाद्य पदार्थ कु नाम च। 
हरसिंग -बता , ऊँ सब्युं नाम बता। 
परमानंद - सच्ची बात च भै , मि कैकु नौ नि जाणदु।  मीम त नत्था आय अर द्वी रुप्याक सिकार देगे। जु मी जाणदु वू त्यार खाडू च सची खांदु मी वीं सिकार ? 
हरसिंग - नत्था दगड़ी मंगसिरु बि जरुर रै होलु।  और कु छौ?
परमानंद - अरे नत्था ही छौ यार जब बोलणु छौ। खाडू मारण मा कु कु शामिल छ्या यांक मि क्या जाणु। 
हरसिंग - नत्था अर मंगसिरु की त मि करदु अठ्वाड़ अबि , पर इन नि समिज कि तु छुट जैलु (खुकरी लेक भैर निकळद )
वैदराज -नखरा फ़ंस्या भुलाराम ?
परमानंद - अर कुछ बात न चित ; महा अनाड़ी च यु हरसिंग। 
वैदराज -पर जब तेरो कसूर ही नि छौ कुछ त इतना किलै डौरी वे देखि ?
परमानंद -डरण नि छौ त सुदी घपक खाणि छे वै कि ?पर एक बात च डरण ह्वे मी थरथराट अर पेटै पीड़ा कुज्य़ाण जख गै होली। 
वैदराज -अच्छु भुला , फिर ऐ दवै मंगणो। 
परमानंद - कनु 
वैदराज -द्वी गोऴयुं मा तेरा पेट पीड़ा ठीक कर दे , वांकी कुछ गुण असान त कुछ ना अर जैन भतग लगैने वी जि बणे तेरो धनवंतरी ! 
परमानंद -ठट्ठा करणु छौ भैजि ! तुमर गोळीयूंन  होये यु चमत्कार।
वैदराज -तनु बोल पर हरसिंग फेर आंद तेरी खोज मा अभि ; वांक दवै नि च मीम कुछ। 
परमानंद - ये तैं कनि कै थामा भैजी आज , निथर येन त कुछ अनर्थ कन। 
वैदराज -पर तुमन बि कुछ कम अनर्थ नि कर्यो भुलाराम जु उतनी जंगी खाडू एक ही रात माँ चटकै दे !
परमानंद -पर मीन क्या जाणनी छै भैजी कि यो चोरी कु खाडू च , तुमि ब्वालो ?
वैदराज -हमन क्या बुलण बाबू , खाडू का हडगा बोलणा छन।  तू होये , नत्था होये अर बाबुसाब अयूं च जु दिल्ली बटी तुलसीराम , तुम तीनों मदि कै न कैकि च या कारस्तानी। 
(तुलसीराम कु प्रवेश )
तुलसीराम -बडाजी ! हरसिंग त नी च यहाँ ? 
वैदराज -अबि त नी  च , पर जरा ठैर करा ; अभी औंदु च तुमरि बि खोज
तुलसीराम -हम तैं त नी च वैक डौर बडाजी।  वैकु खाडू और जैन बि खै ह्वे पर हमन त नि खै। 
वैदराज -तुमन क्या खाय ?
तुलसीराम -पता यु चौल बल नत्था अर मंगसिरु कु त खुल्युं च बड़ो भारी बिजिनेस।  उ बखरा मारी सिकार बेचणा छन अर नाजायज शराब बि बणौणा छन।  
परमानंद - ये कनु मोरे यूंक !
तुलसीराम -जां से गाँव मा बदनामी नि हो ये अपणा काम दूर इ दूर करदा छा , अर शराब त सिरफ कौतिग बगैरह मा बेचदा छा।  अब सरा रिपोर्ट पटवारी मा पौंछि गे। 
वैदराज -तब त बात पक्की च , यूँ कसाईयोंन ही चोरे  हरसिंग कु खाडू
तुलसीराम -ना जी ना ! नत्था त यख ब्याळे रात ही आये।  भरसोड़ी कौथिग मा वैन चार बुगठ्या मारी छे।  वी बेचणु छौ अज्युं तक। 
परमानंद - हे राम त हमन सात दिनक सडीं सिकार खाये ? 
तुलसीराम -खई होली तब। 
परमानंद -कनि अंधेर होय।  अरे बखरी ही छे कि कुछ कुत्ता या ?
वैदराज -अब त्यांकी जि क्या ब्वन तब , ब्यापारी जी होया 
परमा नंद -यूं लोळोन सब करम भ्रष्ट कर यलने। 
वैदराज - नत्था अर मंगसिरु छन कख इबरी ?
तुलसीराम - फरार छन।  प्रधान अलग खोजणु च ऊँ तैं अर हरसिंग खुकरी लेक निकऴयूँ ही च। 
परमानंद - हरसिंग का हाथ आयों यूँ मद्दे क्वी त वैन ज्यूंदो नि छोड़न।  भारी लाटो गुस्सा च वैको।  कखी इथैं ना ऐजा फेर। 
तुलसीराम - चाचा साब , उनै द्याखो ! वी आणु च शायद , कखी तलवारों वार न करी दयावो वो 
(द्वी वैदराज जीक पैथर लुक जांदन )
(हरसिंग कु प्रवेश , वैक हथ खून से लथ पथ )
हरसिंग -एकी चोट मा साले की गर्दन धळका दी   , एकी चोट मा गर्दन अलग कर दे , बदमास कु बच्चा !
वैदराज -    ये ळोळा क्या करे तीन ?
हरसिंग -अर वैन कन बिताय मीं पर ? अर म्यार कुठार पुटुक मतबल अनाजौ भंडार पुटुक लुक्युं भि राय साला। 
वैदराज -   अरे छौ कु वो ?
हरसिंग -अजी वी खाडू अर को ?
वैदराज -    खाडू मिल गै त्वै ?
हरसिंग -मील च और क्या ? उटकर्मी मादो कख बिटेन कुठार पुटुक पौंछे साला।  सरा रात द्वी दूण सट्टी बुकै गे पापी मादो। 
वैदराज -  भारी नुक्सान करी दे वैन।  पर चल मील त गे खाडू।   
हरसिंग -अर मीन बि वैते मजा चखै दे।  लौ पकड़ी भैर अर एक ही चोट मा खाडू की मुंडळी गै होली दस गज दूर ! 
वैदराज -    शाबास ! मानते हैं बात तेरी हरसिंग की !
हरसिंग -द चला रै जु जु छंवां तुम सिकर्या।  भड्यावो अर बांटि लगावा !  
परमानंद -चला !
तुलसीराम -चला 
वैदराज -    सिरी इथें बि भेज दे रे हरसिंग !
(सबि भैर जान्दन अर वैदराज दवै घोटण मा व्यस्त ह्वे जांदन )
सर्वाधिकार - स्व ललित मोहन थपलियाल के उत्तराधिकारी , नोइडा , ऊतर प्रदेश 1 /3 /2014 

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