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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, March 3, 2014

आप कै किस्मौ मतदाता छंवां ?

चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती        

(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )

                          सरादुं टैम पर बामणु  , कुत्तों  , गौडू अर कव्वों की भारी मांग हूंद।  ऊनि चुनावुं समौ पर दलालुं (सभ्य भाषा माँ एजेंट्स ) , मतदाताओं बड़ी मांग हूंद। 
                 जख सरादुं मा बामण जजमान तैं  बूड खूड की याद दिलान्द उख चुनावो टैम पर कॉंग्रेसी नेता मतदाता तैं याद दिलान्द कि म्यार बुबा जीक नना जी , मेरी दादी , मेरो बुबा जीन अर मेरि ब्वेन जु बि आश्वासन दे छा वु आश्वासन हम अगली पार्लियामेंट मा पूर करी द्योला।     फिर कौंग्रेसी बुलद कि म्यार नना जी त सन 1952 मा आश्वासन पूर्ति का वास्ता ऑर्डिनेंस लाणा छा पण विरोधी पार्टी वाळुन अड़ंगा लगा दे।  अब 1952 का आश्वाशन अवश्य ही 2014 मा पूरा ह्वे जाल।  
विरोधी खासकर भाजापा अर कम्युनिस्ट चुनाव टैम पर कॉंग्रेस पर अभियोगुं माटु -कीच लपोड़णा रौंदन पर कबि नि बथांदन कि यी अफु क्या कारल ? बात बि सै च कि यी विरोधी क्या ब्वालन कि सत्ता मा ऎक यून क्या   करण ? भाजापा सरीखी पार्टिन कॉंग्रेस जन ही कुछ करण अर कम्युनिस्ट पार्टी सरीखी पार्ट्यूंन कुछ करण ही नी च तो द्वी तरां की पार्टी वॉटरूं तैं कुछ नि बतांदन कि जितणो बाद   ऊँन क्या करण।  
                      चुनाव टैम पर कवा , कुत्ता जन एक नया जीव अवतरित हूंद वै तैं मतदाता या वोटर बुल्दन।  चुनावुं बगत जै फंड धुऴयुं मनिख या मनखिण तैं उम्मेदवार या वैक दलाल नास्ता   अर दारु पिलांद , जैक गंदा खुट मा चिट्ट सुफेद टोपी धरद वो ही मतदाता हूंद।                 
               आजकाल का मतदाता जरा जागरूक ह्वे गे वो ओपिनियन पोल मा कुछ हौर बुलद अर वोट कै हैंक तैं वोट दे दींदु।  अजकालौ मतदाता एक  नेता  की जीप मा चुनाव केंद्र जांद अर  कै हैंक तैं वोट देक ऐ जांद।  हद त तब हूंद जब ग्राम प्रधानो चुनाव मा कंडीडेट का तीन सौ गैलेन दारु खतम ह्वे जांद , चालीस खस्सी बुगठ्यों मौण कटी जांद अर पता चलद कि वोट सिर्फ़ चार ही मिलेन वो बि अपण परिवार से।  तबि त अजकाल नेता बुल्दन कि पुलिस वाळु अर मतदातों भरवस नि करण। 
              कुछ मतदाता हूंदन जौं तैं एकमुस्ती वोटर बुल्दन याने मुस्लमान वोटर।  बिचारों सबसे बड़ी समस्या या च कि यी सन 1953 से एकमुस्त वोट दीणा रौंदन पण आज बि सबि पार्टी बुल्दन कि मुसलमानो की समस्याओं पर गम्भीर विचार नि ह्वे।  
              कुछ मतदाता ट्रांसफरेबल वोटर्स हूँदन।  यी बि मुसलमान वोटर जन ही हूंदन पण यी गैरमुसलमान हूंदन अर खासकर दलित हूंदन।  यी बिचारा भैस जन हुन्दन अर यूँ तैं यूंक नेता इन लिजांदन जन ज्यूड पर बांधिक भैंसू तैं लिजाये जांद।  
              कुछ मतदाता भक्त मतदाता हुन्दन जौं तैं पार्टी का पारम्परिक वोटर्स बुले जांद।  यूँ पर कैक बुलण या आंधी से कुछ  फरक नि पड़द।  चुनाव प्रचार यूँक  बान नि हूंद। 
              चुनाव प्रचार हूंद फेन्स, बाड़ या सीमा पर बैठ्यां मतदाताओं का बान।  यूं तैं सेफोलॉजिस्ट जागरूक मतदाता बि नाम दीन्दन।  यी बड़ा महत्वाकांक्षी अर आशावादी हूंदन अर समजदन कि काली कमरिया पर दूजो रंग चढ़ सकद पर चुनाव  का बाद बिचारों का हाथ  हमेशा निराशा ही हाथ लगद।  उत्तराखंड या हिमाचल माँ हर पांच साल मा सरकार यूं   आशावादी सीमा पर बैठ्यां मतदाताओं का कारण बदलदी। अचकाल नरेंद्र मोदी यूँ ही मतदाताउं तैं आकर्षित करण पर लग्यां छन।  
         कति वोटर्स याने अधिकतर पढ्यां लिख्याँ वोटर्स नेताओं का बुल्युं माणदन।  हरेक नेता या नेत्याण  बुलद कि 'हमे मत देना '।  बस यी एज्यूकेटेड स्नबिश लोग 'मत देना ' कु शाब्दिक अर्थ लीन्दन याने 'मत देना ' का शाब्दिक अर्थ लगांदन  'डोंट गिव ' अर ये चक्कर मा वोट दीणो जांद ही नी  छन।  नेता लोग यूं की फिकर चुनाव का टाइम पर करदा ही नि छन किन्तु चुनाव का बाद सबसे जादा प्रशासनिक फायदा  ईं घरबैठ्वा कौम तैं ही मिलद। या कौम बड़ी बेशरम च वोट बि नि दींदी अर प्रजातंत्र का सबसे अधिक लाभ बि लीन्दी।
               बाइ द वे आप कै किस्मौ मतदाता छंवां ?


Copyright@ Bhishma Kukreti  1 /3/2014 


*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।  
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वालेद्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले द्वारा   धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखकद्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  ]

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