भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
ना भै ना मी भारतीय जनता पार्टी कु पेड लिख्वार नि छौं अर ना ही खंडूरी जी या निशंक जी म्यार दुरौक रिस्तेदार छन अर ना ही सोनिया बौ से मेरी क्वी दुस्मनै च कि मि BJP तैं धन्यवाद द्यूं।
ना ही मी BJPन गढ़वाळि -कुमाउनी भाषा विकासौकुण कुछ कार या कुछ कारल कि BJP तैं धन्यवाद दिए जाव ! गढ़वाली -कुमाउनी भाषा विकास कु मामला मा सबि पार्टी इकजनी इ छन , द्वी यूं भाषाओं मामला मा बौं हौड़ पड्यां छन।
फिर सवाल आंदु बल बगैर कुछ खयां -पियां भग्वया टुपला या चिमटा कु बड़ा किलै मांगणु छौं (चारण शैली मा प्रशंसा )?
जब बि युद्ध ह्वेन या हूंदन त युद्ध से समाज तैं मुर्दों का अलावा क्वी ना क्वी तरकीब , तकनीक अवश्य मिलद। न्यूक्लियर ऊर्जा युद्ध की देन च , माइक्रोवेव कु विभिन्न क्षेत्रू मा प्रयोग युद्ध की देन च। मार्केटिंग , पोलिटिकल लड़ाई का सबि शब्दावली हमन युद्ध से ही लियीं छन । रणनीति , पहला आक्रमण , बचाव , आक्रमक पोजीसन , पोजिसनिंग , रिजर्व , हार , जीत , ताल ठोकना, कैम्पियन , कोअलेसन, हथकंडा , प्रोपेगेंडा आदि सब शब्द युद्ध की डिक्सनरी का ही शब्द छन।
चुनाव भी युद्ध कु दुसर रूप च अर चुनावुं मा इस्तेमाल हुयां हथियार , तजबिजु , तरकीब , तकनीक बाद मा समाज अंगीकार करद। चुनावुं मा इस्तेमाल हुईं भाषा बि एक हथियार च जो बाद मा समाज प्रयोग करद।
अजकाल चुनाव हूणा छन तो राजनीतिक पार्टी कथगा ही हथकंडा प्रयोग करणा छन , कुछ पुराणा छन कुछ नया बि छन।
ब्याळि BJP का परधानमंत्री प्रत्यासी नरेंद्र मोदी की चाय -की प्याली चौपाल एक अभिनव प्रयोग च अर सरा भारत वास्युं तैं BJP तैं धन्यावाद दीण चयेंद कि BJP टैक्नॉलोजी कु आम प्रयोग हम तैं सिखाणि च। प्राप्य तकनीक तैं प्रयोगिक धरातल पर कन प्रयोग करण यो हम तैं BJP से सिखण पोड़ल।
सदा से ही गढ़वाली -कुमाउनी भाषा तैं कीमती माध्यमुं अकाळ रै तबि त गढ़वाळी -कुमाउनी मा तामपत्र , पत्थरुं पर लेख नि मिल्दन। मतलब साफ़ च अवश्य ही गढ़वाली -कुमाउनी रचनाकार तकनीक तैं महत्व नि दींद छा अर आज भी गढ़वाली -कुमाउनी साहित्यकार प्राप्त तकनीक तैं प्रयोग करण त दूर , उपलब्ध टैक्नॉलॉजी से दूर भाजणा छन।
इंटरनेट कु भौत ही कम प्रयोग
गढ़वाली -कुमाउनी साहित्य का वास्ता इंटरनेट भौत बड़ो बरदान च पर दुःख हूंद , पीड़ा हूंद कि हमारा गाँव का ही ना शहरूं का बड़ा बड़ा नामी गिरामी (जौं मा इंटरनेट उपलब्ध च या जु इंटरनेट धारण करी सकदन ) साहित्यकार अबि बि इंटरनेट तैं एक अछूत माध्यम बतांदन। यूँ बड़ा , महान साहित्यकारुं तैं नी पता कि जथगा लोग उमा भट्ट, जगमोहन जयाड़ा , बालकृष्ण भट्ट , विजय गौड़ , गीतेश नेगी, प्रभात सेमवाल , राजेश्वर उनियाल , पारेश्वर गौड़ (साहित्य केई दृष्टि से ) विजय सिंग, सुनीता शर्मा, धनेश कुठारी आदि का साहित्य तैं पढ़दन वैक दसवां हिस्सा बि पुस्तक पाठक यूं बड़ा साहित्यकारुं पुस्तक नि पढ़दन। हमारा साहित्यकार आखिर किलै ये माध्यम तैं स्वीकार नि करणा छन ?
फेस बुक तैं अछूत समजणै बेवकूफी
हमारा कथगा ही साहित्यकार फेस बुक तैं अछूत माध्यम मानिक चलणा छन जब कि म्यार अनुभव च कि लोग गढ़वाली पढ़णो कोशिस सबसे जादा फेस बुक मा करणा छन। आखिर जौंमा इंटरनेट च , जौंमा फेस बुक अकाउंट च वू साहित्यकार किलै फेस बुक मा नि आणा छन ? लिख्वार कु काम च माध्यमुं से फायदा उठाण अर हमारा साहित्यकार अबि बि सियाँ छन अर फिर रूदन कि सरकार कुछ नी करणी च। जब तुम ही फोकट मा मिल्युं माध्यम तैं अंगीकार नि करिल्या तो सरकार तुम सरीखा टैक्नॉलॉजी विरोधियों का वास्ता क्या ख़ाक कुछ कारली ?
साल भर मा तकरीबन बारा -पंदरा गढ़वाली कवि सम्मेलन त हूंद ही होला तो यूं कवि सम्मेलनु वीडियो ग्रैफ़ी बि हूंदी होलि तो फिर यूं कवि सम्मेलनु कविता यू ट्यूब मा किलै नि छन भै ? मतलब साफ़ च गढ़वाली साहित्यकार तकनीक कु फायदा उठाणो बारा मा सुचण ही नि चाणा छन अर चांदन कि यूंक बांठक काम बि सरकार कारो !
वैब कॉनफिरेंसिंग से दस बीस जगा कवि सम्मलेन ?
आज वैब कॉनफिरेंसिंग सबसे सस्तो माध्यम च कि आप एक कवि सम्मलेन कु ब्रॉडकास्टिंग जथगा जगा चावो उथगा जगा बगैर कुछ खर्चा कर्याँ कौर सकदां पर हमारा साहित्यकार यीं दिशा किलै ध्यान नि दीणा छन ?
मोबाइल से रेडिओ तक पौंछण
कविता अर गीत सबसे अधिक ग्राह्य हूंद तो कवियों तैं यीं दिशा मा बि सुचण चयेंद। बिचारा बेडुपाको का शैलेश उप्रेती थक ग्याई कि भई बेडुपाकु रेडिओ का वास्ता कविता भ्याजो पर हमर कवि सियाँ छन।
भौत सरल च आप अपण कविता मोबाइल फोन पर टेप कारो अर SMS तकनीक का जरिया बेडुपाको का पास भेज द्यावो पर कुज्य़ाण कब यु काम शुरू ह्वाल धौं ?
टेक्नॉलॉजी-यूज-फोबिया बीमारी तैं भगाण ही पोड़ल
हम सब्युं पर एक आंतरिक बीमारी हूंद अर वा बीमारी होंद टेक्नॉलॉजी-यूज-फोबिया बीमारी। इकमा हम नई तकनीक तैं इन समजदवां जन कि या नई तकनीक कै मंगल गृह से आईं च धौं अर हम नई तकनीक तैं नि अपनांदा या नई तकनीक तैं नि सिखण चाँदवां। इखमा प्रयत्न या कोशिस ही दवा च कि हम नई तकनीक तैं अंगीकार करवां अर गढ़वाली -कुमाउनी साहित्य तैं सरा दुनिया का प्रावास्यूं तैं उपलब्ध कराउवां !
तो साहित्यकारों से मेरी विनती च कि BJP से ही सीख ल्यावदी कि तकनीक से फायदा उठये जाव !
Copyright@ Bhishma Kukreti 9/3/2014
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments