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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, March 13, 2014

आधुनिक गढवाळी साहित्य में महिला साहित्यकारों की महत्वपूर्ण भूमिका

भीष्म कुकरेती
 

 
             आधुनिक गढवाली साहित्य प्रकाशन का कार्य सन १८२५  के आसपास बाइबल के अनुवाद से प्रारम्भ हुआ सन १९०० ई. से पहले पंडित गोविन्द प्रस्स्द घिल्डियाल  ने  संस्कृत सहित के 'हितोपदेश ' का गढवाली भाषा में अनुबाद किया . कविता में सन १८६०  -८० के करीब त्रिमूर्ति -लीलानन्द कोटनाला , हरिकृष्ण दौर्गादत्ति  रुडोला, हर्ष पुरी 
 णे कविताएँ रचीं व प्रकाशित भी हुईं जो बाद में गढवाली समाचार पत्र  में भी छपीं . विश्वम्बर दत्त चंदोला ने गैरोला के संपादकत्व में गढवाली भाषा का प्रथम काव्य संग्रह 'गढवाली कवितावली ' नाम से सन १९३२ में प्रकाशित किया जिसमे कई कवियों की कविताये प्रकाशित हुईं. यह संग्रह ऐतिहासिक संग्रह है और बाद में चंदोला की सुपुत्री श्रीमती ललित वैष्णव ने गढवाली कवितावली का पुनर्प्रकाशन भी किया . अब तक लगभग २५० से अधिक कवियों का पदार्पण गढवाली काव्य क्षेत्र में हो चुका है . चार महाकव्य भी प्रकाशित हो चुके हैं
               सदानंद कुकरेती ने गढवाली में सर्वप्रथम आधुनिक कथा लिखी और यह कहानी सन १९१३ में विशाल कीर्ति में प्रकाशित हुयी . तब से कई कथाकार गढवाली में अवतरित हुए हैं . उपन्यास  भी छप चुके हैं.
         सन १९१४ में भवानी दत्त थपलियाल ने भक्त प्रहलाद  नाटक लिखा जो १९२४ में प्रकाशित हुआ और कई बार इसका मंचन भी हो चुका है   गढवाली नाटक में भी गढवाली भाषा पीछे नही रही . अब तक सौ से अधिक नाटक प्रकाश में आचुके हैं यद्यपि इनका प्रकाशन कं ही हुआ व बहुत से नाटककारों की रचनाएँ काल ग्रसित भी हो गयी है
              आज गढवाली भाषा में साप्ताहिक, व पाक्षिक  दिन में छपने वाले समाचार पत्रों का प्रकाशन  हो रहा है तथापि पत्र पत्रिकाओं का भी प्रकाशन हो रहा है. इन्टरनेट में भी  से भी गढवाली साहित्य समुचित माता में प्रकाशित हो रहा है
     यह सर्वविदित है की गढवाली भाषा साहित्य में भी अन्य भाषाओँ की ही भांति पुरुष रचनाकारों का वर्चस्व अधिक रहा है तथापि महिला साहित्यकारों ने  गढवाली भाषाई साहित्य में कई साहित्यिक  विधाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. चूँकि स्वतंत्रता  से पहले बालिकाओं के अध्ययन   का समाज में कम ही प्रचलन रहा था एवम ग्रामीण क्षेत्रों  में विद्यालयों व महाविद्यालयों की कमी से भी स्वतंत्रता से पहले गढ़वाली साहित्य में महिलाओं का पदार्पण सम्भव भी न था . किन्तु बालिकाओं में शिक्षा प्रसार व  ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालयों की स्थापना ने गढवाली साहित्य में महिलाओं के योगदान को प्रश्रय दिया व महिलाएं इस दिशा में आगे आयीं
          देहरादून की प्रसिद्ध सामजिक कार्यकर्ती विद्यावती डोभाल 'समाज पीडिता '( सैंज टिहरी गढवाल, १९०२ -अब दिवंगत ) ने  . हिंदी व गढवाली में कविताएँ रची हैं. विद्यावती के तीन कविता संग्रह प्रकाशित हए हैं. उनकी कविताओं में उद्देश्यात्मक विषयों की भरमार है . महिला जागरण की कवितायें  भी मुख्य विषय रहे हैं.महिलाओं पर अत्याचार, गरीबों के दुःख भी विद्यावती कविता विषय रहे हैं.                   
       . वसुंधरा डोभाल (१९२०-दिवंगत  ) एक सामजिक कार्यकर्ता भी थीं और वसुंधरा की कविताओं में सामजिक जागरण , आदर्श, देशभक्ति, भक्ति, , देव पूजा विषय मुख्य विषय रहे हैं. वसुंधरा डोभाल की कविताओं में करुण रस की कविताएँ व महिलाओं के अंतर्मन युक्त रस उभर कर आता है. कविताये पारम्परिक शैली में रची गईं हैं. 
                      वीणा  पाणी जोशी (देहरादून, १९३७) : वीणा पाणी जोशी गढवाली, कुमाउनी, हिंदी व पंजाबी भाषा की साहित्यकार हैं . गढवाली में उन्होंने दो सौ से भी अधिक रचनाये प्रकाशित कीं हैं . वीणा जोशी का कविता संग्रह पिठे पैरोला बुरांश एक बहु चर्चित, प्रशंसित कविता संग्रह  है.. वीणा पाणी ने  कोई भी औचित्य पूर्ण क्षेत्र नही छोड़ा जिस पर गढ़वाली में कविता नही रचीं हो . वीणा पाणी ने पारम्परिक शैली व नई शैली दोनों में कविताएँ रची हैं. कोमलता वीणा पाणी जोशी का मुख्य काव्य रस रहा है तो व्यंग्यात्मक कविताओं में कटाक्ष की कमी नही है . गाँव के चूल्हे से लेकर ओजोन लेयर  फटने तक की कविताएँ वीणा ने रचीं हैं गढवाल की प्रकृति वर्णन में वीणा जोशी एक सशक्त हस्ताक्षर है.
                    नीता काला कुकरेती ( सुमाडी, पौ.ग, १९५२ ) की अब तक डेढ़ सौ से अधिक कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं और आधुनिक गढवाली कविता विकाश में नीता का स्थान महत्वपूर्ण है नीता  कुकरेती की कविताएँ बहु विषयक हैं एवम शैली, भाव, रस की दृष्टि से भी बहु दिशाई हैं फिर भी  , महिला व्यथा , धार्मिकता, धार्मिक स्थान, प्रकृति चित्रण , पर्यावरण विषय महत्वपूर्ण हैं . कविताओं में गेयता भरपूर है एवम शैल्ग्त प्रयोग भी नीता कुकरेती करती आयी है. ' मेरी अग्याळ' कविता संग्रह 2012 में  प्रकाशित हुआ     
                    
                   शकुन्तला इस्टवाल ( धारकोट, कपोळस्यूं , पौ ग. १९६० ) शकुन्तला की कविताये पारम्परिक शैली में हैं व प्रेरणा दायक या कहे की शिक्षा पूरक  हैं स्युन्सी  बैजरों क्षेत्र में ग्रामीण क्षेत्र के आम जन के मध्य कविता प्रेम जगाने में शकुन्तला का महत योगदान है.
उमा भट्ट (अन्द्र्वदी गुप्तकाशी, १९६०) उमा भट्ट हिंदी व गढवाली में कविता रचती है. उमा भट्ट का 'द्वी आखर ' कविता संग्रह की समालोचकों ने प्रशंशा की.  , उमा भट्ट की कवितायों में ग्रामीण प्रतीकों व बिम्बों का सफलता पूर्बक प्रयोग हुआ है.               
                         रजनी कुकरेती ( रणाकोट , क्न्द्वाल्स्युं , १९६२ ) ने कुछ ही कविताये प्रकाशित कीं हैं. कविताएँ शैली तोडक हैं और स्वछन्द शैली की कही जा सकतीं  हैं  
                       बीणा  कंडारी (कसाना, धुमाकोट, पौ.ग. १९६७ ) की अब तक दस से अधिक कविताएँ प्रकाशित हो चुकीं हैं बीणा की कविताओं में स्त्री -दुःख, वृद्धों   के दुःख , पलायन  की पीड़ा अधिक झलकतीं हैं
          बीना बेंजवाल (देव्शाल, रुद्रप्रयाग, १९६९ ) आधुनिक  गढवाली कविता  संसार  में एक सशक्त हस्ताक्षर है . बीणा के दो काव्य संग्रह छप चुके हैं . यद्यपि बीना की कविताओं के विषय कई पहलुओं को उजागर करते हैं किन्तु बेंजवाल की कविताओं   में महिला विषय, प्रकृति चित्रण , समाज में व्याप्त अनाचार , धार्मिक स्थान, व परम्परा मुखर विषय हैं. शैली दोनों प्रकार की हैं यथा-पारम्परिक व आधुनिक शैली         
            कहानी क्षेत्र में कुसुम नौटियाल (कथा प्रकाशन काल -१९८० से १९९० ई तक ) का नाम प्रमुख है. कुसुम नौटियाल की  कथाओं में ग्रामीण गढवाल का   सुन्दर वर्णन हुआ है.
                       डा. आशा रावत ( लखनऊ , १९५४ ) का नाम गढवाली महिला कथाकारों में महत्वपूर्ण नाम है .डा. आशा रावत का गढवाली व्यंग्य संग्रह ' जस की तस' छप चुका है, व कहानी संग्रह ' मैत की खुद ' प्रकाशाधीन हैं डा रावत की कहानियों में विविध विषयों पर कथाएँ हैं
                 बीणा बेंजवाल का एक महत्वपूर्ण योगदान को गढवाली समाज सदा ही स्मरण करता रहेगा . बीना बेंजवाल ने अरविन्द पुरोहित के साथ 'गढवाली हिंदी  शब्दकोश' प्रकाशित की . 
                    बीना पाणी जोशी 'गढ़वाली जागर'   पाक्षिक समाचार पत्र में ज्ञान परिक्षा  स्तम्भ (बथा धौं) की संयोजिका   भी है.
                       रजनी  कुकरेती का योगदान गढवाली भाषा विज्ञानं में महत्वपूर्ण योगदान है . रजनी कुकरेती ने  ' गढवाली व्याकरण ' पुस्तक प्रकाशित कर गढवाली भाषा विज्ञानं को विकसित करने में अथक व अविस्मरणीय   योगदान  दिया.
उमा सेमवाल भट्ट (गुप्तकाशी , रुद्रप्रयाग ) का गढ़वाली कविता संग्रह 'द्वि आखर ' गढ़वाली साहित्य की धरोहर है। 
             अतः कह सकते हैं क़ि जैसे ही महिलाओं में शिक्षा प्रसार में गति आयी गढवाली साहित्य में महिलाओं का योदान शुरू ही नही हुआ अपितु कई विधाओं मेंमहिला साहित्यकारों ने गढवाली साहित्य विकास सभी दृष्टि से  में महत्वपूर्ण  योगदान दिया   
 
 
Copyright@ Bhishma Kukreti 8/3 /2014 महिला दिवस 


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