चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
ब्याळि म्यार एक दगड्यान बोलि बल स्थानीय केबल टीवी ऑपरेटरक इख राजनीतिक विश्लेषकों कि भर्ती खुलीं च त ये भीषम तू बि भर्ती ह्वे जा। केबल ऑपरेटर म्यार ख़ास दगड्या च।
मीन स्वाच कुछ नी च तो बाछीक काँध ही मलासे जाव। मि स्थानीय केबल ऑपरेटोरौ कार्यालय ग्यों अर मालिक तैं मीलु।
मीन स्वाच कुछ नी च तो बाछीक काँध ही मलासे जाव। मि स्थानीय केबल ऑपरेटोरौ कार्यालय ग्यों अर मालिक तैं मीलु।
मि -आपक दगड्यान बताइ कि आप स्थानीय न्यूज ब्रॉडकास्ट करदा अर लोक सभा चुनावों वास्ता तुम तैं पोलिटिकल ऐनालिस्टुं जरूरत च।
केबल ऑपरेटर मालिक -ठीक च तुम भर्ती ह्वे जावो। दस मई तक काम करो अर खूब पैसा बणाओ !
मि - पर मि तैं अनबायस पोलिटिकल कंमेंट्री अर एनेलिसिस कु अनुभव नी च।
मालिक -त्वै तैं लगद च कि रास्ट्रीय अखबारों या टीवी चैनेलों का राजनैतिक विश्लेषकों तैं कुछ आंद च ?
मि -एमजे अकबर कु भाजपा मा जाण , आशुतोष आदि कु आप पार्टी मा जाण से त लगद कि यी बस राजनैतिक महत्वाकांक्षा पाळी बैठ्या छा।
मालिक -अर टीवी शो मा चमकता -दमकता मराठी पत्रकार कुमार केतकर का तर्क से क्या लगद ?
मि - साफ़ लगद कि कुमार केतकर टीवी शो मा आण से पैल कॉंग्रेसक ड्यार बिटेन खट्टू पऴयो खैक आंद। यदि राहुल गांधी बाबा विश्वनाथ का दर्शन करद तो महान पत्रकार केतकर का वास्ता गांधी परिवार की धर्म मा आत्मिक रूप से आस्था कु परिचायक च। यदि नरेंद्र मोदी बाबा विश्वनाथ का दर्शन कारो तो कुमार केतकर की शब्दावली मा यु एक कुकृत्य अर आरएसएस द्वारा हिन्दू भावना भड़काणै कोशिश च।
मालिक - टीवी शो मा प्रखर , प्रख्यात पत्रकार विनोद शर्मा का टीवी शो वाचन तै देखिक क्या लगद ?
मि -इन लगद कि जन बुल्यां ये परमतपी पत्रकार तै कॉंग्रेस मर्च खलैक टीवी शो मा भिजदी। हरेक बगत कॉंग्रेस की लाल करद अर भाजपा क हरेक कार्य तैं नरकगामी बतांद।
मालिक -फिर पत्रकारिता तैं एवरेस्ट मा पौंछाण वाळ विनोद मेहता का वाच -वचन से क्या लगद ?
मि - साफ़ लगद कि यु विनोद मेहता याने भारत पत्रकारिता कु एकमेव रत्न , अमर पत्रकार राहुल गांधी या केजरीवाल कु सलाहकार च।
मालिक -स्वपन दास का आर्ग्युमेंट्स से क्या लगद ?
मि -लगण क्या च सब तैं इनी लगद कि स्वपन दास भाजपा मा नौकरी करद अर क्या ?
मालिक -अर प्रभु चावला , दिबांग या पुण्य प्रसून वाजपेई सरीखा डिबेट ऐंकरूँ बारा मा क्या ख़याल च।
मि - पैल त मि समझदो छौ कि टीवी मा न्यूट्रल एंकर हूंदन पर अब आशुतोष कु आप पार्टी ज्वाइन करण से लगद कि हरेक ऐंकर राजयसभा जाणो बान पत्रकारिता मा च। मि तैं इन लगद कि हरेक बड़ा पत्रकार कु स्वार्थ कै ना कै राजनीतिक पार्टी से जुड्यूं च।
मालिक -वेरी गुड एनेलिसिस ! पुष्पेश पंत कु बारा मा क्या ख़याल च ?
मि -बिचारा सन 1969 की वामपंथी पत्रकारिता से भैर ही नि आणा छन। आइ थिंक सच जौरनेलिस्ट्स आर स्पेंट फोर्सेज।
मालिक -वेरी वेल ! तो एक काम कारो। प्वारम राजनीतिक पार्ट्यूं ऑफिस छन। उख जावो एक पार्टी से द्वी करोड़ रुप्या लेक आवो। पंद्रा पर्सेंट तुम रख लेन।
मि - द्वी करोड़ रूप्या ?
मालिक -हाँ ज्वै बि पार्टी तुम तैं द्वी करोड़ रुपया दीणो तैयार ह्वै जाव तुम म्यार केबल टीवी मा वीं पार्टीक गुण गान करो अर विरोधी पार्टी का विरुद्ध भयंकर विष वमन करो।
मि -पर द्वी करोड़ ?
मालिक (पर्दा हटैक एक हाल दिखांद ) -वू द्याखो हरेक संसदीय क्षेत्र से हरेक पार्टी का पेड़ पोलिटिकल ऐनेलिस्ट्स बैठ्याँ छन। यी सब कै ना कै पोलिटिकल पार्टी से दुदु करोड़ लेक अयाँ छन अर म्यार स्थानीय केबल चैनेल मा एफिलिएटेड पोलिटिकल पार्टी का भजन कीरतन करणा छन।
मि - पर पत्रकारिता मा बि आत्मा विक्री ?
मालिक -अब तो कैपिटिलज्म का बोल बाला है। आत्मा क्या जीवात्मा भी बिकती है। खुलेआम पत्रकारिता बिकती है।
मि -मि सोचिक बतांदु।
मालिक -ठीक च स्याम दैं बताइ दे कि तू अपण आत्मा बिचणो तयार छे कि ना?
मि - जी !
अबि तक मेरी आत्मा गवाह नि दे सकणी च कि मि अपण आत्मा बेचूं कि ना ?
क्या आप सलाह से सकदां कि मि बि यूँ बिक्यां पत्रकारुं अर ऐंकरुं तरां अपण आत्मा कै पोलिटिकल पार्टीक इख गिरवी धौरिक ऐ जौं ? शुड आइ और शुड आइ नौट ?
Copyright@ Bhishma Kukreti 24 /3/2014
*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
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