बोल्दा छन मेरा मुल्क का मनखि,
सीधा साधा निमाणा मनखि कू,
किलैकि ऊ कैकि जड़ नि काटदु,
कैका होण फर, अगनै बढण फर,
अपणा मन मा कब्बि नि जल्दु,
ह्वै सकु त सब्यौं की मदद करदु.
यनु भी बोल्दा छन,
अरे! ऊत गोरु सी कुर्च्युं,
"फुन्ड धोळ्युं" मनखि छ,
जै सनै चर्क न फर्क,
दुनियाँदारी क्या होन्दि.
"फुन्ड धोळ्युं" ऊ होन्दु छ,
जू कैकि जड़ काट करिक,
सारु पन्त मारदु अर खोन्दु छ,
जब तक नि करलु उल्टा काम,
खयुं पेट मा हजम नि होन्दु छ.
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित- "फुन्ड धोळ्युं" नि छौं २७.४.२०१०)
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