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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, June 2, 2010

तेरी मुखड़ि

बतौणि छ हाल तेरा दिल का,
कुजाणि क्या ह्वै होलु यन,
उखड़ीं-उखड़ी सी "तेरी मुखड़ि",
खोयुं-खोयुं सी तेरु मन.

क्या त्वैकु कैन कुछ बोलि?
खोल दी अपणा मन की गेड़,
घमटैयुं सी भलु नि होन्दु,
जिंदगी मा ढेस अर बेड़.

बकळी ज्युकड़ी भलि निछ,
बतौ अपणा मन की बात,
कुछ त बोल चुप किलै?
होलु कुछ तेरा मेरा हाथ.

बात यनि कुछ भि निछ,
कुजाणि मन मेरु अफुमा ख्वै,
मुखड़ि मेरी उखड़ीं-उखड़ीं,
आज उदास क्यौकु ह्वै.

मुखड़ि बतौंन्दि छ,
सच मा मन का हाल,
चा पोंछ्युं हो दूर कखि,
जख प्यारू कुमौं-गढ़वाल.

कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "ज़िज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित- "तेरी मुखड़ि" १२.५.२०१०)
(मेरा पहाड़ और यंग उत्तराखण्ड पर प्रकाशित)

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