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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, June 1, 2010

अपणा मुल्क छोड़ि

सब्बि भै बन्धु बतावा,
अपणा प्यारा मुल्क छोड़ि,
तुम भौं कखि न जावा.....

बिराणु अपणु नि होन्दु,
मन मा बिंगा अर बतावा,
मुक मोड़िक न जावा,
अपणा प्यारा मुल्क छोड़ि,
तुम भौं कखि न जावा.....

जख जन्म ह्वै हमारू,
वख द्वार ताळा न लगवा,
सब्बि भै बन्धु समझावा,
अपणा प्यारा मुल्क छोड़ि,
तुम भौं कखि न जावा.....

कूड़ी पुंगड़ि बांजा डाळी,
अपणु मुल्क छोड़ि न जावा,
सब्बि भै बन्धु समझावा,
अपणा प्यारा मुल्क छोड़ि,
तुम भौं कखि न जावा.....

जख देवतौं का थान,
भूमि स्वर्ग का समान,
सब्बि मनख्यौं कू मान,
तब्बित बोल्दा छन लोग,
हमारी प्यारी जन्मभूमि,
स्वर्ग का छ समान,
सब्बि भै बन्धु समझावा,
अपणा प्यारा मुल्क छोड़ि,
तुम भौं कखि न जावा.....

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित -"अपणा मुल्क छोड़ि" २.५.२०१०)
(यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर प्रकाशित)

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