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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, March 19, 2018

मान शाह शासन (1591 1611 ) में उत्तराखंड में यूनानी चिकत्सा के संकेत

Tourism from 1600-1700 AD in Garhwal 
(  मानशाह काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -46
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  ) -  46                  
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--151       उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 151  

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ ) 
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गढ़वाल देस पर 1600 से 1650 ई तक मानशाह (1591 -1611 ) का शासन रहा। 
   इस दौरान कई घटनाएं हुईं व कई पर्यटन संबंधी साहित्य से गढ़वाल पर्यटन की दशा का पता चलता है। 
  मानशाह काल में कुमाऊं से कई  भिड़ंत हुयीं ।
  
         भूत विद्या  (मंत्र , तंत्र व मनोविज्ञान मिश्रित ) का प्रचार 
  बहुगुणा वंशावली में उल्लेख है कि मानशाह (मनापाल ) भी कुमाऊं नरेश लक्ष्मी चंद्र की तरह मंत्र -तंत्र (भूत विद्या ) पर विश्वास करता था और सभाकवि भरत बहुगुणा के मंत्रोच्चारण से मानशाह ने दक्षिण हिमाचल के उतकल (जुब्बल ), कामेठ (क्यूंठल ) बिशेर व सिरमौर क्षेत्र जीते थे। यद्यपि अन्य स्रोत्रों से कोई पुस्टि नहीं होती है।  
    कुमाऊं नरेश लक्ष्मीचंद व बहुगुणा वंशावली वृतांत से स्पस्ट है कि उस समय सेना , शारीरिक शक्ति के अतिरिक्त तंत्र मंत्र पर विश्वास बढ़ गया था जो द्योतक है कि बाहर से भी तांत्रिक -मन्त्रिक उत्तराखंड में पर्यटन करते थे व आंतरिक तांत्रिक -मांत्रिक गढ़वाल -कुमाऊं में घूमते रहे होंगे। 
   एक सदी या लगभ डेढ़ सदी बाद दूध फूल या छाया पूजन में दर्यावली का जुड़ना इस बात का द्योतक है कि संत परम्परा के शिष्य भी गढ़वल भर्मण करते रहते थे। 

      गढ़नरेश को बोल्दा बद्रीनाथ की विरदावली         
बहुगुणा वंशावली में मानपाल (मानशाह ) को 'बदरीशावतारेण ' उपाधि दी गयी है (त्रिपथगा, सितम्बर  1956 )। पर्यटन दृष्टि से  गढ़वाली शासक को बोलता बद्रीनाथ या बद्रीनाथ का प्रतिनिधि उपाधि से प्रचारित करना गढ़वाल पर्यटन की एक महत्वपूर्ण घटना है।  मार्केटिंग में कहा जाता है -Brand the Chief Executive for Branding the Brand . गढ़वाल शाशक को जीता जागता बद्रीनाथ की छवि गढ़वाल पर्यटन में एक अभिनव कृत्या मना जाएगा। भरत कवि द्वारा मानेदय काव्य में मानशाह की प्रशंसा भी ब्रैंडिंग द चीफ एक्जिक्यूटिव ऑफिसर का प्रशंसनीय नमूना है।
      जहांगीर नामा में भरत ज्योतिषी 
      
 अकबरनामा में टोडरमल के मित्र ज्योतिकराय का नाम तीन बार आया है।  बहुगुणा समाज इसे भरत कवि मानते हैं। पर्यटन विपणन दृष्टि से यदि किसी को किसी भी प्रकार से हानि न हो तो   'अपण बल्दौ पैन सिंग ' करने कोई बड़ा गुनाह नहीं । 
  जहांगीरनामा में ज्योतिकराय के ज्योतिष विषयक चमत्कारों का वर्णन पांच बार हुआ है और जहांगीर ने ज्योतिकराय सोने से तुलादान किया था (जहांगीरनामा पृ. 633 , 6 70 , 714 ,727 , 748 , 749 )। शंभुप्रसाद बहुगुणा ने ज्योतिकराय को भरत कवि सिद्ध करने का प्रयास किया।
 
     विलियम फिच का गढ़वाल वर्णन 
 ईस्ट इंडिया कम्पनी के ओर से नील व्यापारी ने 1608 -1611 तक व्यापार अनुमान हेतु भारत में गुजारे व जहांगीर के दरबार में भी रहा।  फिंच के संस्मरणों से भारत के विषय में कई सूचनाएं मिलती हैं (फोस्टर , अर्ली ट्रैवल्स इन इण्डिया )। 
  गढ़वाल के विषय में भी फिंच ने सुना था कि धौलागिरी पर्वत में जाड़ों में इतनी बर्फ गिरती है कि  वासी घाटी में उतर जाते हैं । जमुना -गंगा मध्य पर्वतीय प्रदेश में मानशा का अधिकार है। मानशा  को शक्तिशाली व धनी बताया गया है। फिंच ने बताया कि मानशा के पास सोने के बासन हैं। देहरादून (फिंच अनुसार सरहिंद से 50 कोष दूर ) अत्यंत उपजाऊ क्षेत्र है। 
    फिंच ने गढ़वाल भ्रमण तो नहीं किया किन्तु गढ़वाल का उल्लेख किया है।  जिसका स्पस्ट अर्थ है कि जहांगीर दरबार में गढ़वाल की छवि व जानकारी रखी जाती थी।  दरबारी व गणमान्य व्यक्ति गढ़वाल के बाए में विज्ञ थे व वे अवश्य ही यात्रा करते थे।   
   स्थान छविकरण (प्लेस ब्रैंडिंग ) में माउथ टु माउथ पब्लिसिटी का क्या महत्व होता है यह फिंच संस्मरणों से स्पस्ट होता है। 
     
   हरिद्वार व ऋषिकेश में कुम्भ मेले की  शुरुवात ?
  यह आश्चर्य ही है कि हिन्दू जनता कुम्भ मेले को समुद्र मंथन से जोड़ते हैं और हरिद्वार में ही कुम्भ राशि अनुसार कुम्भ मेला तिथि का निर्धारण करते हैं किन्तु रिकॉर्ड तो सत्रहवीं सदी में मिलते हैं जैसे -
   सत्रहवीं सदी में कुम्भ मेले का उल्लेख 'खुलासत -उत -तवारीख (1695 ) में मिलता है।   'खुलासत -उत -तवारीख (1695 ) में उल्लेख है कि वैशाखी के दिन लोग हरिद्वार में उमड़ते हैं, नहाते हैं।  बारहवें अल में जब कुम्भ राशि राज करते है तो लोग गंगा स्नान करते हैं , मुंडन करते हैं , दान करते हैं आदि। चाहर गुलशन  (1759 ) ने कुम्भ मेले का उल्लेख किया है कि बैशाखी दिन जब वृहस्पति कुम्भ राशि में प्रवेश करता है तो हरिद्वार में कुम्भ मेला  लगता है जहां फकीर, सन्यासी , जनता लाखों की संख्या में आते हैं । 
   ऐसा प्रतीत होता है कि हरिद्वार में कुम्भ मेले की शुरुवात 1600 ई से हई।  अकबरनामा में भी कुम्भ मेले का उल्लेख न होना दर्शाता है कि कुम्भ मेला बड़ा मेला न था।  नानक का वैशाखी दिन संदेश  देने आना दर्शाता है कि बैशाखी के दिन हजारों की संख्या में लोग उमड़ते थे।  हरिद्वार पंडा रजिस्टर में भी कुम्भ मेले का उल्लेख न होना आश्चर्य है। 
     आगे के गढ़वाली शासकों द्वारा भारत मंदिर ऋषिकेश दर्शन  से लगता है 1398 ई में तैमूर लंग द्वारा भरत मंदिर नष्टीकरण होने के बाद भी हिन्दू भरत मंदिर पूजा हेतु आते रहे हैं। 

     अकबर मुद्रा अण्वशाला हरिद्वार 
  अकबर  की ताम्र मुद्रा अण्व शाला हरिद्वार होने से स्पस्ट है हरिद्वार में प्रशासनिक , व्यापरियों आदि का आना जाना रहा होगा। गढ़वाल से ही इस टकसाल को ताम्बा निर्यात होता था। 

     मूर्तिभंजन  का दौर 

अकबर काल में भी मूर्ति भंजन बंद नहीं हुआ था।  दक्षिण (सलाण )  गढ़वाल, ऋषिकेश , हरिद्वार में कोई बड़ा मंदिर न होना द्योतक है कि अकबर , जहांगीर काल में इन क्षेत्रों में मुस्लिम आक्रांताओं (जिन्हे गढ़वाली लोककथाओं में गुज्जर या भैंसपालक नाम दिया गया है ) द्वारा मूर्ति भंजन एक सामान्य बात थी। यदि मंदिर बने भी रहे होंगे तो तोड़ दिए गए होंगे। 

उत्तराखंड में यूनानी चिकत्सा  का आगमन 

 सुल्तानों के उत्तराखंड सीमा पर शासन व मुगल सीमाओं  के होने से हरिद्वार से लेकर अवध तक मुस्लिम समाज के बसे होने से इन स्थानों में यूनानी चिकत्सा का  होगा। और धीरे धीरे यूनानी चिकत्सा गढ़वाल -कुमाऊं के मैदानों में प्रचलित हुयी होंगी।  दवाई , दारु , बलगम , आदि शब्द गढ़वाली -कुमाउँनी भाषा में प्रचलित होना द्योतक है कि यूनानी चिकत्सा भी समाज में आने लगी होगी। 
 दिल्ली के सुल्तानों ने यूनानी चिकत्सा हेतु 'दारुल सिफास ' बनवाया व यूनानी चिकत्सा को विकसित किया। 
दिल्ली के सुल्तानों का युद्ध हेतु भाभर -बिजनौर आदि आना संकेत देता है कि उनके साथ 'दारुल सिफास के हकीम भी रहे होंगे , इन हकीमों ने स्थानीय हकीमों को दारुल -सिफास का परसहिस्खन वषय ही दिया होगा।  यह शिक्षा पहले हरिद्वार से पीलीभीत -अवध तक प्रसारित हुई होंगी फिर धीरे ढेरी गढ़वाल -कुमाऊं  अवश्य प्रसारित हई होगी। मुगल काल में भी यूनानी चिकित्सा का विकास हुआ जिसने उत्तराखंड चिकित्सा तंत्र को प्रभावित किया ही होगा। मुगल काल में अकबर दरबार में अब्दुर रहमान जिसे फ़ारसी , संस्कृत का ज्ञान था जैसे विद्वानों के कारण आयुर्वेद व यूनानी चिकत्सा में  संष्लेषण की नींव पड़ी। अकबर के सभसदों में हाकिम हमाम  प्रसिद्ध हकीम अकबर के नवरत्नों में एक रत्न था।अकबर के पांच चिकित्स्क हकीम अब्दुल फतह , हकीम शेख फयाजी , हकीम हमाम , हकीम अली और हकीम आईन -उल -मुल्क राजकीय चिकित्स्क थे। 
  भावप्रकाश निघण्टु रचयिता भाव मिश्र बादशाह अकबर का राजवैद्य था।  सिद्ध करता है कि  आयुर्वेद -यूनानी चिकित्सा में संश्लेषण की नींव अकबर काल से ही पड़ी  होगी।  मेथी का दवाई में उपयोग सर्वपर्थम भावप्रकाश में उल्लेख हुआ जिसे दिपानी (हाजमा वर्धक ) नाम दिया गया।  
अकबर व जहांगीर की बेगमों को चिकत्सा व दवाइयों का भी ज्ञान था। 

        हुक्के का अन्वेषण 

 अकबर काल में सन 1604 -1605 तम्बाकू धूम्रपान का प्रवेश हुआ तो अकबर के राजकीय हकीम हकीम अब्दुल फतह ने तम्बाकू का स्वास्थ्य हेतु हानिकारक पदार्थ के कारण विरोध किया किन्तु अकबर ने  की इजाजत दे दी।  तब हकीम अब्दुल फतह ने पता लगाया कि यदि धुंए को पानी से गुजरा जाय तो तम्बाकू का प्रभाव कम हो जाता है।  फिर हकीम  ने हुक्के का अन्वेषण किया (ए  चट्टोपध्याय , ऐम्परर अकबर ऐज ये ऐंड हिज फिजिशियन्स , 2000 , इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ हिस्ट्री मेडकल , हैदराबाद बुलेटिन ) ।  कुछ समय पश्चात हुक्का धूम्रपान स्टेटस सिंबल हो गया।  लगता है उत्तराखंड में हुक्का धूम्रपान 1650 के बाद  प्रचलन में आया होगा।  थक   बिसारने,  मन व्याकुलता कम करने हेतु धूम्रपान कैसे उत्तराखंड पंहुचा होगा पर खोज होनी बाकी है।


   
Copyright @ Bhishma Kukreti   19/3 //2018 
ourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी 

                                   
 References

1 -
भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -4
-

  
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