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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, March 1, 2018

नंद व मौर्य युग (350 -184 BC ) में उत्तराखंड में पलायन पर्यटन व अन्य पर्यटन

 Medical tourism in Maurya Era 
(  मौर्य काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -22
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   Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Medical Tourism History  )     -  22                  
  (Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--12 

      
उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 127    

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ ) 
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  मौर्य काल को 321 BC से 184 या 148 BC तक माना जाता है। उससे पहले नंद युग था।
         नंद या अन्य द्वारा सैनिक बन कर  पलयान 
 मौर्य शासन से पहले नंद साम्राज्य था।  नंद कौन था इस विषय पर एकमत नहीं है किन्तु एक सिद्धांत कहता है कि नंद वंश का संस्थापक उग्रसेन -महापद्म गोविषाण  (कुमाऊं तराई ) का था या उसका संबंध उत्तराखंड से था।  
    रैपसन की धरना है कि शिशुनाग व नंद वंश की स्थापना करने वाले पर्वतवासी थे (कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इण्डिया पृ -280 ) . महापद्म क राज्य हिमालय से नीलगिरि व गोदावरी तक फैला था। महापद्म के एक पुत्र नाम गोविषाण भी था  समय शाशन किया । 
   चन्द्रगुप्त या अशोक द्वारा उत्तराखंड विजय की कोई सूचना नहीं मिलती किन्तु गोविषाण (काशीपुर) , कालकूट (कालसी ) व श्रुघ्न में अशोक की लाट  सिद्ध करती हैं कि उत्तराखंड नंद वंश के अंतर्गत ा चूका था और मौर्य शाशन में पुराने शाशक मौर्यों के प्रतिनिधि बन चुके थे। 
   मुद्राराक्षस नाटक में पर्वतेश्वर चरित्र से पता चलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य का पर्वतेश्वर से रक्त संबंध था। 
       युद्ध नौकरी पर्यटन
   नंद वंश स्थापना के  विभिन्न सिद्धांतों से सिद्ध होता है कि मैदानी राष्ट्रों को उत्तराखंड से सैनिक बुलाने पड़ते थे। चन्द्रगुप्त के राजमहल में किरात सैनिक थे जिन्हे विश्वासी सैनिक माना जाता था। 
 इतिहासकार राय चौधरी के अनुसार मौर्य साम्राज्य में पहाड़ी सैनिकों की बड़ी मांग थी।  हट्ठे कट्ठे खश , कनैत मौर्य सेना में भर्ती होते थे। चन्द्रगुप्त को मगध सिंहासन दिलाने में पहाड़ी सैनिको का प्रमुख हाथ था। सेनाओं की अग्रिम दल इकाई पहाड़ी खशों द्वारा ही संचालित होती थी। 
  युद्ध नौकरी कई प्रकार के अन्य पर्यटनों को विकसित करता है।  नौकरी करने बाहर जाना याने ज्ञान -विज्ञान का आदान प्रदान को प्राथमिकता। 
      मौर्य काल में पहाड़ों से आम आदमियों हेतु मैदानों ही नहीं पाटलिपुत्र तक घोड़े निर्यात होते थे। सैनकों के लिए उबड़ खाबड़ स्थानों में परिवहन हेतु भारद्वाज व टंगण अश्वों की मांग पूर्ववत थी। 
        वनस्पति निर्यात 
 कौटिल्य के अर्थ शास्त्र में जिन वनस्पतियों व वस्तुओं का वर्णन मिलता है उनमे से कई वनस्पति उत्तराखंड से निर्यात होती लगतीं हैं। 
    शिल्प विशेषज्ञ 
  कालसी के अशोक शिलालेख से स्पष्ट है कि शिल्प विज्ञान का आदान प्रदान हुआ।  स्थानीय शिल्पकारों के कार्य भी महत्वपूर्ण रहा होगा।  शिल्प कला विज्ञान के आदान प्रदान में अवश्य ही विशेष पर्यटन विकसित होता है।  यदि अशोक ने कालसी  में शिलालेख , गोविषाण (स्तूप ) व श्रुघ्न (स्तूप निर्माण ) को शिलालेखों आदि के लिए चुना था तो अवश्य ही भूगोल शास्त्री , भूगर्भशास्त्री, खनिज शास्त्री , लेखक ,शिला काटने वाले , शिला कोरने  वाले विशेषज्ञों ने पहले ही नहीं शिलालेख आदि निर्माण के बाद भी पर्यटन किया होगा।  गोविषाण , कालसी व श्रुघ्न -सहारनपुर बड़ी मंडी तो थी हीं , सम्राट अशोक द्वारा यहां शिलालेख स्थापित करवाने के बाद इन स्थानों की छवि अधिक संवरी होगी।  आज भी सम्राट अशोक के शिलालेखों के कारण ये स्थान विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल हैं।
     चिकत्सा पर्यटन 
  महावंश (पृ 25 ) से पता चलता है कि सम्राट अशोक की गंगाजल में असीम श्रद्धा थी। अशोक हेतु प्रतिदिन देवता मानसरोवर से आठ बहंगी गंगाजल लाते थे व चार बहंगी जल संघ , एक स्थविरों को , एक असंघमित्रा को व शेष अशोक हेतु दी जातीं थीं।
    महावंश (पृ 21 ) से पता चलता है कि उत्तराखंड वासी नागलता के दातुन , आंवला , हरितिका  जड़ी बूटी , आमों को लेकर रोज पाटलिपुत्र पंहुचते थे।  यदि विक्रेता पाटलिपुत्र पंहुचते थे तो साथ में अन्य सामग्री भी बेचने हेतु ले जाते होंगे। 
  
         बौद्ध प्रचारकों का उत्तराखंड आगमन याने विशिष्ठ पर्यटन
     भरत सिंह अनुसार महात्मा बुद्ध उशीरध्वज पर्वत तक  पंहुचे थे।  इसके बाद गोविषाण (काशीपुर ) से लेकर सहारनपुर तक कई बुद्ध आश्रम खुले।  अशोक के समय व पश्चात निम्न स्थविर उत्तराखंड पंहुचे -
 मोग्गलिपुत्त तिस्स 
कास्सपगोत्त  के नेतृत्व  में ंव अलक देव , दुंद भिसार , महावीर  अथवा मञ्झिम स्थविर के नेतृत्व में कास्सपगोत्त , दन्दुभिसार , सहदेव व मूलकदेव। 
  इससे साफ़ जाहिर है कि मौर्य काल में बौद्ध मुनियों का उत्तराखंड के भाभर -तराई भाग में अधिक आना जाना था।
 

Copyright @ Bhishma Kukreti  23 /2 //2018   

Tourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी 

                                   
 References

1 -
भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास -part -3
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia

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