Uttarakhand Tourism in Initial Chand Kingdom
( चंद राज्य में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -39
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 39
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--144 ) उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 144
थोरचंद /सोमचन्द से ज्ञान चंद (1420 ) तक चम्पावत का इतिहास मुख्यतः जनश्रुतियों व ब्रिटिश शासन को दिए गए वंशावली पर आधारित लिखा गया है। ज्ञानचंद ( 1367 -1420 ) थोरचंद के चचा का वंशज माना जाता है। थोरचंद से लेकर ज्ञानचंद को गद्दी मिलने तक उथल पुथल व चंद राजाओं द्वारा राज्य विस्तार ही दीखता है। राज्य प्रजा हित गौण ही रहा है।
माल (भाभर -तराई ) में शरणार्थियों व मुस्लिम आक्रांताओं की वसावत
पश्चिम भारत पर मुस्लिम राजाओं के शासन आने पश्चात कई हिन्दू आयुध व आश्रित बरेली ,, पीलीभीत बदायूं में बसे। इस भूमि को पहले ही नहीं आज भी कटेहर कहा जाता है। मुस्लिम सेना व कटेहरों के मध्य लड़ाईयां चलती रहती थीं। जब भी कटेहर में मुस्लिम भारी पड़ते हिन्दू माल की और आ चल पड़ते थे।
दिल्ली सुलतान फिरोज तग़लक़ ने 1380 में कटेहर के नेता खड़क सिंह को मारने हेतु सेना भेजी तो खड़क सिंह कुमाऊं भाग कर आ गया। सुलतान सेना ने कुमाऊं में विध्वंस मचाया और 24000 लोगों को बंदी बनाकर ले गए । ज्ञानचंद की व सुलतान की मित्रता जनश्रुति केवल कल्पना मात्र है। संभल के सूबेदार ने माल पर अधिकार किया.ज्ञान चंद की राज्याधिकारी नालू कठायत ने माल पर फिर से अधिकार लिया। किन्तु मुस्लिम सूबेदार लगातार माल पर आक्रमण करते ही गए।
सुलतान सेना ने फिर कटेहर सरदार हरी सिंह को हराने हेतु सेना भेजी। हरी सिंह कुमाऊं की पहाड़ियों में आ छुपा। सुल्तान सेना ने फिर से कुमाऊं में विध्वंस मचाया। ज्ञानचंद ने अपने विश्वसपात्र नालू कठायत की आँखे निकलवा दीं और एक गढ़पति कूंजीपाल की हत्या करवा दी । कूंजीपाल के पुत्र क्षेत्रपाल ने ज्ञानचंद की हत्त्या की।
उत्तराखंड पर्यटन
चंद राजा अधिकतर अत्त्याचारी राजा ही हुए। उनके राज में भी कत्यूरी राजा या ठकुराई ठाकुरों के प्रशसा लोक गीत अधिक प्रसिद्ध हैं। माल में शरणार्थी या मुस्लिम आक्रमण होते गए। कुमाऊं के भीतर समृद्धि थी किन्तु उथल पुथल ही रही तो पारम्परिक पर्यटन विकसित नहीं हुआ अपितु ऐसा लगता है पूर्व से बद्रीनाथ जाने वाले पर्यटकों में कमी ही आयी। युद्ध पर्यटन अधिक हुआ।
थोरचंद से ज्ञान चंद तक कोई पर्यटनोमुखी वस्तु भी निर्मित नहीं हुईं या ऐसा कोई ठोस विचार ने भी जन्म नहीं लिया। ज्ञान चंद ने अवश्य बालेश्वर में मंदिर व मंडप निर्माण किया था।
युद्ध पर्यटन ने अवश्य ही चिकित्सा के कुछ नए आयाम खोले ही होंगे।
थोरचंद से ज्ञान चंद काल पर्यटन की दृष्टि से नकारात्मक काल ही माना जाएगा।
Copyright @ Bhishma Kukreti 12 /3 //2018
Tourism and Hospitality Marketing Management History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास (कुमाऊं का इतिहास ) -part -10
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