(उत्तराखंडी इंटरनेट लेखकों व पत्रकारों का विशेष उत्तरदायित्व )
( शुंग काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -24
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Medical Tourism History ) - 24
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--129 )
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 129
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य
सम्राट अशोक की मृत्यु पश्चात उसके उत्तराधिकारियों मध्य राष्ट्र शासन हेतु लड़ाई व बाद में यवन आक्रमण व उनके शासन (232 -184 B. C . ) से समस्त भारत में मौर्यों के सामंतों या अन्यों ने क्षेत्रीय राज संभाल लिए व समस्त भारत में राजनैतिक अस्थिरता छा गयी . अशोक के उत्तराधिकारी सेना को बलशाली होने के स्थान पर बौद्ध या जैन धर्मों के महत्व समझाते रहते थे (जैन , जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ 523 -24 ) .
उत्तराखंड में भी राजनैतिक अस्थिरता रही और निर्माण -निर्यात -आयात पर आघात लगने से टूरिज्म पर बुरा प्रभाव पड़ा। गिल्ड जैसे संस्थानों के कमजोर होने से भी पश्चिम देशों के साथ व्यापार निष्प्राण हो गया। अस्थिरता से उत्तराखंड में शरणार्थी पर्यटन बढ़ गया।
शुंग काल (185 -73 B . C. ) मौर्य आमात्य पुष्य मित्र (185 -149 B C. ) द्वारा मौर्य राजा वृहद्रथ की हत्या के बाद शुरू हुआ। पुष्य मित्र ने उत्तर भारत पर विजय प्राप्त कर साम्राज्य वृद्धि की। शुंग शासन का अंतिम शासक देवभूति था व उसके पश्चात पाटलिपुत्र पर कण्वों का शासन चला (73 -28 B C )।
शुंग शासन से यवन आक्रांताओं का आक्रमण रुका।
उत्तराखंड पर शुंग शासन की पुष्टि देहरादून में पायी गयी मृणमुद्रा से होती है जिस पर 'भद्र मित्रस्य द्रोणी घाटे ' से होती है। (जयचंद्र , प्राचीन पंजाब व उसका पास पड़ोस पृ 6 ) .
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सनातन वाद व संस्कृत का पुनर्रोथान
अशोक के समय संस्कृत साहित्य व सनातन पंथ को जो नुक्सान हुआ था व् शुंग काल में पुनर्र्जीवित हुआ। पतंजलि या पाणनि जो पुष्यमित्र के आमात्य भी थे और श्रुघ्न नगर के प्रेमी थे। पाणनि ने इस काल के बारे में महाभाष्य रचा। महाभाष्य में उस काल की कई दशाओं का सजीव चित्रण मिलता है। पाणनि साहित्य से उत्तराखंड विशेषकर भाभर क्षेत्र की जानकारी भी मिलती है।
शंग शासन काल में महाभारत का संकलन व सम्पादन हुआ। इसी काल -शुंग- कण्व काल में मनुस्मृति संकलन (200 B स - 200 AD ) की शुरुवात हुयी। कई पुराण इसी समय रचे व संपादित हुए। शैव्य वैष्णव वाद की वास्तविक शुरुवात शुंग काल में हुयी व कई प्रतीक, जीव -जंतु व वृक्ष शैव्य -वैष्णव पंथ से जुड़े। कृष्ण का भगवान पद इसी काल की दें है और गीता का महाभारत व वैष्णवों के मध्य प्रवेश भी विकास इसी काल में हुआ। (200 BC से शुरुवात ) .
भाष का साहित्य भी कण्व काल में रचा गया , अश्वघोष ने भी इसी समय साहित्य रचा। नाट्यशास्त्र भी इसी समय रचा गया।
शैव्य पंथ विकास , शैव्य पंथ पुराण , महाभारत के दक्षिण भाग व अन्य पुराणों के संकलन से उत्तराखंड एक महवत्वपूर्ण धार्मिक स्थल की धारणाओं को अत्यंत बल मिला और सारे जम्बूद्वीप में उत्तराखंड धार्मिक पर्यटन हेतु रास्तों को पुष्ट करने में शुंग -कण्व काल का उत्तराखंड के लिए महत्वपूर्ण युग माना जाता है। महाभारत रचना काल (मन ही मन में ) ने उत्तराखंड धार्मिक पर्यटन की आधारशिला रखी तो शुंग काल ने उत्तराखंड धार्मिक स्थल को विस्तार व संबल दिया।
बौद्ध साहित्य व जैन साहित्य को संस्कृत में लिखने की वास्तविक शुरुवात व विकास शुंग काल की देन है और कई उत्कृष्ट साहित्य इस काल में रचे गए। ( उपरोक्त -वी डी महाजन की पुस्तक ऐनसियंट इण्डिया , पृष्ठ -360 -372 आधारित ).
व्यासाश्रम व उत्तराखंड की धार्मिक प्रतिष्ठा में वृद्धि
महाभारत क दक्षिण भारतीय पाठ व कतिपय पुराणों का सम्पादन उत्तराखंड के व्यासाश्रमों में हुआ। जो इस बात का द्योतक है कि ऋषि -मुनि शान्ति पूर्वक लिखने/रचने हेतु उत्तराखंड पसंद करने लगे थे। भोजपत्र सरलता से मिलने के कारण भी मुनि /साहित्य रचयिता व उनके शिष्य यहां आये होंगे। और इससे उत्तराखंड को नए प्रकार के पर्यटन तो मिले ही उत्तराखंड को धार्मिक क्षेत्र बनने की प्रक्रिया को अधिक बल मिला। शुंग व आगे के काल में मैदानों में लिखे गए साहित्य में उत्तराखंड के धार्मिक ओहदा व प्रतिष्ठा बढ़ी ही और एक उत्कृष्ट व प्रतिष्ठित धार्मिक स्थल के रूप में उत्तराखंड को और भी बल मिला। इस समय के साहित्य से उत्तराखंड में पर्यटन बढ़ा ही।
इसके अतिरिक्त ऋषि मुनियों व उनके शिष्यों के उत्तराखंड भ्रमण व अन्य धार्मिक पर्यटकों से उत्तराखंड की सांस्कृतिक स्थिति में बदलाव भी आने शुरू हुए और बहुत से देवी देवता समाज में स्थान पाने लगे जिसने अलग से पर्यटन को प्रभावित भी किया ही होगा।
शुंग काल में पश्चिमी देशों से व्यापर भी खूब चला तो उत्तराखंड से भी निर्यात होता रहा होगा याने व्यापारिक पर्यटन भी इस काल में अपनी जगह दुबारा स्थापित हुआ।
उत्तराखंड में कुणिंद नरेशों का शासन
उत्तराखंड में श्रुघ्न पर 232 BC से 60 BC, व(इसके अतिरिक्त अल्मोड़ा में अलग कुणिंद शासन 60 BC से 20 AD ) तक कुणिंद शासन रहा और इस शासन काल में उपरोक्त सभी गतिविधिया रहीं।
शरणार्थी पर्यटन
मैदानी भागों में उथल पुथल होने से बहुत से लोग पर्वतों की ओर पलायन भी करने लगे और शरणार्थी पर्यटन को संबल मिलने लगा। ये शरणार्थी भी समाज में बदलाव लाये ही होंगे।
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि शुंग -कण्व काल उत्तराखंड पर्यटन का एक महत्वपूर्ण काल है जिसमे शैव्य धर्म , धार्मिक साहित्य आदि से उत्तराखंड पर्यटन को नई ऊंचाइयां मिलीं और पर्यटन स्थल प्रसिद्धि से भविष्य पथ और भी साफ़ हुआ।
इंटरनेट लेखकों , साहित्यकारों व पत्रकारों की नई भूमिका
उत्तराखंड राज्य बनने के पश्चात भी उत्तराखंड पर्यटन वः ऊंचाई नहीं पा सका जिसका उत्तराखंड हकदार है। अशोक काल के बाद की स्थितियां व शुंग -कण्व काल धाद देता है कि उत्तराखंडी पत्रकारों , लेखकों , साहित्यकारों का उत्तरदाईत्व बनता है कि इंटरनेट के जरिये नए पर्यटन प्रोडक्टों के बारे में इंटरनेट के जरिये साड़ी दुनिया को अवगत कराएं। इंटरनेट पर पर्यटन वृद्धिकारक साहित्य पोस्टिकरण से यह सम्भव है।
भारत में किसी भी स्थल प्रसिद्धि हेतु मुख्य चौषठ कलाओं को आधार माना गया है (शुक्रनीति, काम शास्त्र आदि ) . अतः लेखकों /पत्रकारों को उत्तराखंड की इन कलाओं को इंटरनेट माध्यम से प्रसिद्धि दिलाना आवश्यक है।
Copyright @ Bhishma Kukreti 25 /2 //2018
Tourism and Hospitality Marketing Management History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास -part -3, pages 136-150
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