( कुलिंद -उशीनगर जनपद काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -21
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Medical Tourism History ) - 21
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--126 )
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 126
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य
कुलिंद -उशीनगर जनपद का राजयकाल 400 -300 ईशा पूर्व माना जाता है। उशीनगर चंडीघाट का नाम है। कुलिंद के कई नाम सामने आते हैं जैसे -कुलइंद्राइन , कुलिंद , कुणिंद। पाणिनि के अष्टाध्यायी में सीमा रेखा स्पष्ट नहीं है किन्तु ताल्मी ने सतलज से कालीनदी के पर्वतीय क्षेत्र को कुलिंद बताया व इन क्षेत्रों से कुलिंद मुद्राएं भी मिली हैं।
कुलिंद का दुसरा नाम उशीनगर (चंडीघाट ) भी था। इस जनपद में कालकूट (कालसी ), तंगण (उत्तरकाशी से चमोली ); भारद्वाज (टिहरी व पौड़ी गढ़वाल ); रंक (पिथौरागढ़ ); आत्रे या गोविषाण (दक्षिण कुमाऊं ) आते थे।
महात्मा बुद्ध द्वारा अनुचरों को उत्तराखंड में जाने की अनुज्ञा
महात्मा बुद्ध के समय उशीनगर (चंडी घाट ) में कम प्रचार के कारण बुद्ध ने विनयधर सहित पांच शिष्यों को उशीनगर में प्रचार की अनुज्ञा दी थी (विनय -पिटक ५/३/२/पृ -२१३ )
कालकूट से अंजन का निर्यात
कालकूट महाभारत से ही चक्षु अंजन याने सुरमा के लिए प्रसिद्ध था और कुलिंद -उशीनगर जनपद काल में सुरमा निर्यात होता था। निर्यात स्वतः ही टूरिज्म को विकसित करता है। अंजनदानी व सलाई का भी निर्यात होता था।
शहद निर्यात
उत्तराखंड सदियों से पहाड़ी शहद हेतु प्रसिद्ध था और कुलिंद -उशीनगर जनपद में भी शहद निर्यात होता था।
बौद्ध भिक्षुओं का उत्तराखंड में भ्रमण
पाणनि के अष्टाध्यायी व बौद्ध साहित्य महाबग्ग में गुरुकुल व भिक्षुओं का जिक्र है जिन्हे यहां का भोजन ही नहीं मांश , मदिरा व धूम्रपान भी पसंद था। भिक्षु -भिक्षुणीयां उशीनगर के आभूषण पसंद करते थे (चुल्ल्बग पृ -419 )।
रोग और चिकित्सा व जड़ी बूटी निर्यात
बौद्ध साहित्य जैसे विनय -पिटक (पृ -२३० ) से पता चलता है कि कुलिंद -उशीनगर के महाहिमालय श्रेणियां प्रभावशाली जड़ी -बूटियों व बहुत से विषों हेतु प्रसिद्ध था व इन औषधियों का निर्यता होता था। जड़ी बूटियों -विषों की खोज में भी अतिथि उत्तराखंड भ्रमण करते थे। विनय पिटक में हिमालयी जड़ी बूटियों वर्णन से जाहिर होता है कि चिकित्सा जानकार उत्तराखंड में भ्रमण करते थे।
कुलिंद -उशीनगर को अन्य राष्ट्रों से जोड़ने वाले मार्ग
भरत सिंह (बुद्ध कालीन भारतीय भूगोल ) अनुसार बुद्धकालीन जनपद जैसे लिच्छिवी , मल्ल , कोलिय , भग्ग , कलाम , बुलिय व शाक्य जनपदों से जोड़ने हेतु गढ़वाल भाभर -गोविषाण (कुमाऊं तराई ) से अहोगंग , कालकूट , श्रुघ्न (सहारनपुर क्षेत्र ), साकल जाने हेतु सुपथ (अच्छे मार्ग ) थे. इन मार्गों पर विश्राम स्थल भी थे जहां जल , भोजन , घास , ईंधन मिल जाता था। नदी पार करने की व पशु रथ चलाने की भी व्यवस्था थी। चोर डाकुओं से रक्षा हेतु किराये के सैनिक भी उपलब्ध थे।
पहाड़ों में कुपथ याने दुर्गम पथ थे। दुर्गम पथ वास्तव में उत्तराखंड की सुरक्षा की गारंटी ही साबित हुए हैं क्योंकि बाह्य आक्रमणकारी सेना भाभर से आगे बढ़ ही नहीं सकी और आज कुपथ भी रोमांचकारी पर्यटन को बढ़ावा देता है।
पहाड़ों में कुपथ याने दुर्गम पथ थे। दुर्गम पथ वास्तव में उत्तराखंड की सुरक्षा की गारंटी ही साबित हुए हैं क्योंकि बाह्य आक्रमणकारी सेना भाभर से आगे बढ़ ही नहीं सकी और आज कुपथ भी रोमांचकारी पर्यटन को बढ़ावा देता है।
उपरोक्त संदर्भ सिद्ध करते हैं कि निर्यात व आयात हेतु परिवहन की पूरी व्यवस्था थी।
निर्यात सामग्री व भाभर में व्यापार
पाणनि के अष्टाध्यायी से पता चलता है कि भाभर में निम्न सामग्रियों का व्यापार (निर्यात ) चलता था (अग्रवाल , पाणनि कालीन भारतवर्ष पृ 19 से 48 , 237 )
अंजन, लवण , उशीर , मूँज , बाबड़ घास , देवदारु फूल , वनस्पति मसाले , ऊन व ऊनी वस्त्र , भांग व भांग वस्त्र , कंबल , मृग चर्म , लाख , चमड़े के थैले व अन्य सामग्री , चमड़ा , वनस्पति थैले , दूध -दही , घी , धोएं सुहागा , अनेक प्रकार की वनस्पति व औषधियां , बिष , बांस व बांस से बनी वस्तुएं , मधु, गंगाजल, चमर , कई प्रकार के पशु -घोड़े आदि व पक्षी आदि निर्यात होते थे।
निर्यात स्वयमेव पर्यटन का उत्प्रेरक अवयव है।
विशिष्ठ सामग्री याने विशिष्ठ पर्यटन
अष्टाध्यायी , बौद्ध साहित्य से पता चलता है की उत्तराखंड से अन्यन वस्तुओं का निर्माण , प्रजनन , व ट्रेडिंग होती थीं जो कि एक विशिष्ठ पर्यटन को विकसित करने में सक्षम थी।
Copyright @ Bhishma Kukreti 22 /2 //2018
Tourism and Hospitality Marketing Management History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास -part -3
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