Role of Rudrachand in Uttarakhand Tourism Development
( चंद शासन में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -41
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 41
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--146 ) उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 146
ऐतिहासिक दृष्टि से किरात चंद (1500 -1505 ) ने छोटे छोटे प्रजा हितकारी कत्यूरी राजाओं को हराया। प्रताप चंद (1506 -1511 ) के राज्य में कोई विशेष घटना उल्लेख नहीं मिलता है। भीष्म चंद (1511 -1559 ) के शासन में इस्लाम शाह का क्षेत्रीय सेनापति खवानखां द्वारा कुमाऊं में आश्रय लेने की घटना , डोटी में डोटी राजा के विरुद्ध विद्रोह व डोटी राजा का जंवाई बाली कल्याण चंद द्वारा विद्रोह समाप्ति , खस विद्रोह व भीष्म चंद की हत्या महत्वपूर्ण घटनाएं हैं।
बाली कल्याण चंद (1555 -1565 ) शासन काल में गंगोली राज पर चंद अधिकार , सौर में पराजय , दानपुर विजय महत्वपूर्ण घटनाये हैं ही सबसे महत्वपूर्ण घटना चम्पावत से अल्मोड़ा राजधानी निर्माण है।
रुद्रचंद (1565 -1597 ) के शासन में कई घटनाये इतिहास व पर्यटन दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। रुद्रचंद शासन में भाभर तराई में मुगल सेना या उनके सूबेदारों के छापे जारी रहे कभी चंद अधिकार तो कभी मुस्लिम अधिकार चलता रहा। रुद्रचंद ने पुरुषोत्तम पंत की सहायता से सीरा पर जीत प्राप्त की। तराई में स्थायी प्रशासन -प्रबंध करने वाला प्रथम कुमाऊं नरेश हुआ। रुद्रचंद का गढ़वाल नरेश से भी भिड़ंत हुयी और उसे हार का सामना करना पड़ा।
1500 से 1599 तक कुमाऊं में पर्यटन
नाथपंथ साधुओं का भ्रमण ---किराती चंद व नागनाथ स्वामी जनश्रुति से स्पष्ट है कि कुमाऊं -गढ़वाल में नाथ पंथी साधू भर्मण करते थे। नागनाथ की समाधि व् मंदिर चम्पावत में होना स्पष्ट प्रमाण है।
चम्पावत से अल्मोड़ा राजधानी स्थानांतर - बाली कल्याण चंद द्वारा चम्पावत से अल्मोड़ा राजधानी स्थानांतर किया। अल्मोड़ा में नया प्रासाद का निर्माण हुआ। ब्राह्मण मंत्रियों , राजपूत सेनाधिकारी -सैनिकों व मंत्रियों, खस राजपूतों हेतु भवन निर्माण हुए व अन्य कर्मिकों हेतु भी भवन आदि निर्माण हुए। राजधानी स्थानांतर ने पर्यटन के कई नए आयाम खोले। विभिन्न तकनीत विशेषज्ञ ओड , सल्ली , कर्मी अल्मोड़ा आये होंगे व कई पर्यटनोगामी कार्य हुए होंगे।
बालेश्वर मंदिर निर्माण - रामदत्त साधु के परामर्श अनुसार रूद्र चंद ने खुदाई से प्राप्त बड़ी महादेव की मूर्ति बालेश्वर मंदिर में प्रतिष्ठ की। राम दत्त को मंदिर का पुजारी बनवाया। आस पास के गाँवों के प्रत्येक किसान से मंदिर प्रशासन -पूजा प्रशासन हेतु प्रति वर्ष एक एक नाळी देने का आदेश दिया गया। रामदत्त की समाधि बालेश्वर मंदिर में बताई जाती है। पर्यटन दृष्टि से मंदिर प्रशासन प्रबंध कार्य स्तुतिय है।
राजपूतों की बसाहत -रुद्रचंद ने कत्यूरी या खस शासित क्षेत्रों में कभी बाहर से आये राजपूतों -ब्राह्मणों को बसाया। राजपूतों व ब्राह्मणों को खस बाहुल्य क्षेत्रों में बसाने से एक नए पर्यटन के द्वार खुले। जब कभी इस तरह की बसाहत शुरू होती है तो प्रवासी बहुत समय तक अपने मूल क्षेत्र में शादी ब्याह व अन्य रिस्तेदारी निर्वाहन हेतु पर्यटन अवश्य करता है और पर्यटन के नए अवसर खुलते जाते हैं।
बादशाह से रुद्रचंद मिलन - तारीख -ए -बदाउनी (भाग -5 , पृ . 541 ) व जहांगीर नामा (पृ 288 ) से आकलन होता है कि भाभर तराई में शांति व अपने अधिकार हेतु रूद्र चंद बादशाह अकबर से लाहौर में मिला था। साथ में कई वस्तुएं भेंट में ले गया था। रूद्र चंद ने बीरबल को अपना पुरोहित बनाया।
बीरबल के वंशज चंद वंश समाप्ति तक राजाओं के पास दक्षिणा लेने आते थे। बीरबल वंशजों के अल्मोड़ा आने से स्पस्ट है कि बीरबल वंशज कुमाऊं छवि वृद्धि ही करते रहे थे।
कूटनीतिज्ञ संबंध का स्थान छवि विकास में महत्वपूर्ण स्थान
किसी भी स्थान का दूसरे देस या स्थान से कूटनैतिक संबंध या रिस्तेदारी संबंध स्थान छवि हेतु महत्वपूर्ण कारक होता है। आज भी पधानों या थोकदारों के गाँवों से संबंध स्थापित करने की इच्छा द्योतक है कि स्थान छवि हेतु कूटनीतिज्ञ संबंध युद्ध से अधिक प्रभावशाली होते हैं। रुद्रचंद काल से कुमाऊं अकबर काल से मुगल जागीर में शामिल हुआ ।
अल्मोड़ा में नया प्रासाद - रुद्रचंद ने मुगलों के कई महल देखे। उन्ही की तर्ज पर रुद्रचंद ने अल्मोड़ा में नया महल निर्माण किया। स्पस्ट है कि कुछ तकनीक व संस्कृति मुगल विशेषज्ञों से भी प्राप्त हुआ होगा। रुद्रचंद द्वारा लाहौर भ्रमण से कुमाऊं को कई नई तकनीक, फैशन व रचनात्मक विचार भी मिले होंगे। पर्यटन विपणन के निर्णय कर्ताओं को अवश्य ही विदेश भ्रमण करना चाहिए।
अल्मोड़ा में मंदिर निर्माण -रुद्रचंद ने अपने पिता के राजभवन के स्थान पर देवी व भैरव मंदिर निर्माण किया। रुद्रचंद ने जागेश्वर व केदारेश्वर मंदिरों का जीर्णोद्धार भी किया।
संस्कृत प्रोत्साहन याने आयुर्वेद प्रोत्साहन - रुद्रचंद को 'स्मृति कौस्तुभ ' में संस्कृत का आश्रयदाता बताया गया है। कुमाऊं के पंडित बनारस व कश्मीर के पंडितों से टक्क्र लेते थे। स्वयं रुद्रचंद ने चार पुस्तकों की रचना की। पंडितों का कुमाऊं में आना जाना शिक्षा , चिकित्सा शास्त्र विनियम व चिकित्सा पर्यटन विकास के संकेत देता है।
ब्राह्मणों के पूरे कुमाऊं में स्थानांतर से आयुर्वेद प्रसार
राजनैतिक दृष्टि से चंद राजा विशेषतः रूद्र चंद ने जब भी कोई कत्यूरी या खस राज जीता वहां राजपूत व ब्राह्मणों (जो कभी पलायन कर कुमाऊं आये थे ) को बसाया। ब्राह्मणों के बसने से चरक श्रुसुता आयुर्वेद हर क्षेत्र में प्रसारित हुआ। इन घटनाओं ने चिकित्सा पर्यटन विकास किया।
गढ़वाल कुमाऊं की ख्याति
सोलहवीं सदी के उत्तरार्ध व सत्रहवीं सदी के पूर्वार्ध में गढ़वाल -कुमाऊं की छवि एक समृद्ध भूभाग की थी। यूरोपियन व्यापारी विलियम फिच का यात्रा संस्मरण व फरिश्ता द्वारा अपने इतिहास (समाप्ति 1633 ) दोनों में इस भूभाग को समृद्ध भूभाग माना गया है। पर्यटन दृष्टि से दोनों साहित्य महत्वपूर्ण साहित्य माने जाएंगे।
Copyright @ Bhishma Kukreti 14 /3 //2018
Tourism and Hospitality Marketing Management History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास (कुमाऊं का इतिहास ) -part -10
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