Uttarakhand Tourism Product Development in Vaidyanath Katyuri Period
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( वैजनाथ कत्यूरी काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -37
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 37
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--142 ) उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 142
इतिहासकारों का मानना है कि जोशीमठ (कार्तिकेयपुर ) के उत्तरी छोर में तिब्बती आक्रांताओं के बार बार आक्रमण , लूट व जोशीमठ में भयंकर हिमस्खलन के कारण कत्यूरी राजा नरसिंह देव को राजधानी बदलनी पड़ी। नर सिंह देव ने राजधानी करवीपुर में स्थापित की जो डोटी व गढ़वाल क्षेत्र दोनों के मध्य था व जुड़ने हेतु मार्ग थे। शिलालेखों व अन्य प्रमाण अनुसार बीच में अशोक चल्ल परिवार का भी शासन रहा। कत्यूरियों की कई शाखाओं ने अलग अलग क्षेत्रों पर राज किया। पर्यटन इतिहास की दृष्टि से इस अध्याय में कत्यूऋ राजाओं के कार्यों हेतु सन 1000 -1400 की विवेचना किया जाएगा ।
इस काल में पर्यटन दृष्टि से निम्न कार्य महत्वपूर्ण हैं
कटारमल मंदिर -कटारमल मंदिर याने बूटधारी सूर्य मंदिर की स्थापना 1080 -1090 मध्य हुयी जहां विष्णु , शिव , गणेश की भी मूर्तियां हैं . मंदिर भव्य था। वास्तुकला , धातुकला , काष्टकला का सुंदर नमूना।
द्वारहाट की कालिका मंदिर मूर्ति - 1143 में गुलण नामक व्यक्ति ने कालिका मंदिर निर्माण किया।
राजा सुधार देव कत्यूरी ने द्वारहाट में सन 1316 में मंदिर निर्माण करवाया।
राजा मानदेव कत्यूरी ने 1337 में द्वारहाट में मंदिर बनाया।
राजा सोमदेव कत्यूरी ने द्वारहाट में 1348 व 1354 में मंदिर निर्मित कराये।
राजा निरमपाल कत्यूरी ने 1348 में स्यूनरा में मंदिर निर्माण करवाया।
दोरा पट्टी में गूजर देवल ,रतन देवल , कचेरी , मृत्युंजय , बद्रीनाथ , कुटुमबुड़ी , बण देवल , मनियान आदि मंदिर बारहवीं -चौदवीं सदी के माने जाते हैं। यहां कई प्राचीन नौले इसी काल के माने गए हैं।
त्रिभुवन पाल देव ने बागेश्वर मंदिर व्यवस्था हेतु भूमि प्रदान की थी।
इंद्रपाल देव की पत्नी दमयंती ने चौघाड़ापाटा में एक बाग़ लगवाया था।
लक्ष्मण पाल देव ने 998 में बैद्यनाथ मंदिर में लक्ष्मी नारायण की मूर्ति स्थापित की।
इसी तरह कटीरी काल में जागेश्वर , आदि बदरी , सोमेश्वर , केदारनाथ , नालचट्टी आदि स्थानों में मंदिरों की स्थापना हुयी
मूर्ति कलाकारों को शरण
मध्य भारत में राजनैतिक अस्थिरता के चलते कलाकार उत्तराखंड मँहुचने लगे और उन्हें उत्तराखंड शासकों ने सम्मान दिया। इन मूर्ति कलाकारों ने उत्तराखंड मूर्ति कला को प्रसिद्धि दिलाई।
प्रतिहार मूर्ति कला का पूर्ण विकास
इसी काल में प्रतिहार मूर्ति कला का पूर्ण विकास उत्तराखंड में ही हुआ।
मूर्ति निर्यात
इस काल में उत्तराखंड मूर्ति कला प्रसिद्ध थीं और मैदान के धनी वर्ग , राजा उत्तराखंड निर्मित मूर्तियों को मंदिरों में स्थापित करने में गर्व अनुभव करते थे। यशोवर्मन चंदेल ने गर्व से घोषणा की थी कि मैंने हिमालय समान महोच्च मंदिर में मूर्ति कैलास (केदारखंड निकट मूर्ति निर्माण शाला ) में निर्मित है।
कत्यूरी काल में निर्मित मूर्तियां तिब्बत , कांगड़ा , कन्नौज , मध्यदेश , बुंदेलखंड , सौराष्ट्र , महाराष्ट्र व सदूर दक्षिण तक पंहुचती थीं। वैष्णव धर्म के आचार्य माधवानंद अपने साथ मूर्तियां ले गए थे।
नारद कृत संगीत मकरंद व नृत्य , संगीत प्रसार
इस काल में मंदिरों में व्यवसायिक तौर पर नृत्य व संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते थे। कत्यूरी काल में नृत्य -संगीत में आसातीत विकास हुआ। केदारखंड अध्याय 66 -77 से लगता है कि रुद्रप्रयाग नृत्य -संगीत प्रशिक्षण केंद्र था। अनुमान है कि नारद का ग्रंथ संगीत मकरंद की रचना रुद्रप्रयाग में हुयी थी। दो भागों में बनता नृत्य व संगीत संगीत मकरंद में रोग निवारण हेतु संगीत की आवश्यकता पर बल दिया गया है (संगीताध्याय) -
आयुधर्मयशोवृद्धि: धन धान्य फलम लभेत।
रागाभिवृद्धि:सन्तानं पूर्णभगा: प्रगीयते।।
आयुधर्मयशोवृद्धि: धन धान्य फलम लभेत।
रागाभिवृद्धि:सन्तानं पूर्णभगा: प्रगीयते।।
सालर जंग म्यूजियम जॉर्नल जिल्द 27 -28 पृष्ठ 7 में उल्लेख किया गया है कि नारद कृत संगीत मकरंद का प्रकाशन गढ़वाल में मिली हैदराबाद म्यूजियम में रखी गयी एकमात्र पांडुलिपि के आधार पर गायकवाड़ ओरियंटल सीरीज ने 1900 से पहले प्रकाशित किया। संगीत मकरंद के अतिरिक्त किसी पुस्तक में वीणा वादन के इतने प्रकार नहीं हैं जितने मकरंद में हैं।
रुद्रप्रायग में नारद शिला लोककथाओं /जनश्रुतियों के होने से भी प्रमाणित होता है कि नारद ने संगीत मकरंद की रचना रुद्रप्रयाग में की।
संस्कृत पठन पाठन याने चिकित्सा शास्त्र का महत्व
यद्यपि कत्यूरी काल का संस्कृत साहित्य लुप्त हो गया है किन्तु क्राचल्लदेव के ताम्रशासन से विदित होता है कि ज्योतिष , तंत्र मंत्र , कृत्यानुष्ठान, शकुन शास्त्र , आरोग्य शास्त्र , न्याय के पंडित राज्य में निवास करते थे।
संस्कृत पठन पाठन में आरोग्य शास्त्र अवश्य ही समाहित होता है।
माधवाचार्य का आगमन
वैष्णव धर्म के माधव सम्प्रदाय के प्रवर्त्तक माधवाचार्य (1118 -1197 ) लगभग 1153 में बद्रीनाथ पंहुचे थे। माधवाचार्य अपने साथ भेंट मिली शालिग्राम निर्मित तीन देव मूर्तियां ले गए जिनका उन्होंने सुब्रमणियम , उदीपि , मध्यतल मंदिरों में स्थापना की। इसके साथ माधवाचार्य बद्रिकाश्रम से दिग्विजयी राम व व्यास की मूर्ति बी ले गए थे भंडारकर , वैष्णविज्म , शैविज्म .. पृष्ठ 58 व रामदास गौड़ , हिंदुत्व पृष्ठ 633 -634 )।
माधवाचार्य ही नहीं अपितु अन्य आचार्यों ने भी उत्तराखंड में पर्यटन किया।
धार्मिक पर्यटन विकास
इस काल में मंदिर बनने व मूर्ति कला प्रसिद्धि से कई नए प्रकार के पर्यटक भी आने लगे थे। मूर्ति निर्यात से उत्तराखंड की छवि को एक न्य आयाम भी मिला।
भारत पर बाह्य आक्रमण से शरणार्थियों का आगमन
इसी काल में मुहमद गौरी आदि के आक्रमण शुरू हुए और उत्तराखंड में भारत के सभी स्थानों से पलायित प्रवाशी बसने लगे जिनमे विद्वान् , युद्ध कला निपुण , कलाकार , चिकित्स्क आदि भी थे। प्रवासियों ने आगे उत्तराखंड के पूर्व समाज को ही परिवर्तित कर दिया।
यात्राएं
उत्तराखंड यात्राओं के दो मुख्य मार्ग थे पूर्व में बैजनाथ , अल्मोड़ा के तरफ से जोशीमठ पथ व पश्चिम में चंडीघाट कनखल से आज के पौड़ी गढ़वाल में गंगा तट पर बद्रिकाश्रम पथ। मानसरोवर की भी यात्रा महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा मानी जाती थी।
डा शिव प्रसाद डबराल कृत कुमाऊं का इतिहास 1000 -1790 पृष्ठ 1 से 53 आधारित
Copyright @ Bhishma Kukreti 10/3 //2018
Tourism and Hospitality Marketing Management History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास ( कुमाऊं का इतिहास 1000 -1790 )
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