Uttarakhand Tourism in Kalidas Literature
( कालिदास साहित्य में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) 30
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 30
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--135 ) उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 135
कालिदास साहित्य गुप्त काल (275 -495 ई . ) में रचा गया। शिव प्रसाद डबराल अनुसार उत्तराखंड में तब कर्तृपुर के खसाधिपति वंशजों का राज (350 -380 ) था व फिर उत्तराखंड गुप्तों के अधीन रहा (380 -470 ) इसके उपरांत सर्वनाग वंश (465 -485 ) व फिर नागवंशी नरेशों (485 -576 ) का राज रहा।
कालिदास व उसके जन्म स्थल पर विद्वानों में एक राय नहीं है। नेपाल , कुमाऊं , गढ़वाल , हिमाचल प्रदेश व कश्मीर विद्वान् कालिदास को अपने क्षेत्र का प्रवासी सिद्ध करते रहते हैं। कई अन्य गैर पहाड़ी क्षेत्र वाले भी कालिदास को अपने क्षेत्र का जनमवासी सिद्ध करते हैं। इस लेखक ने भी सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि कालिदास उत्तराखंडी प्रवासी था।
कालिदास गढ़वाल का था या नहीं किन्तु कालिदास साहित्य में उत्तराखंड ही मिलता है। महाभारत , पुराणों के बाद कालिदास साहित्य में उत्तराखंड का सर्वाधिक वर्णन मिलता है। शायद उसके बाद आज तक किसी अन्य साहित्य में उत्तराखंड वर्णन इतना अधिक नहीं मिलता है।
कालिदास रचित रघुवंश में उत्तराखंड वर्णन
उत्तराखंड में वशिष्ठ आश्रम - रघुवंश के प्रथम सर्ग में महारज दिलीप अपने कुलगुरु वशिष्ठ के आश्रम में पुत्र प्राप्ति आशीर्वाद हेतु उत्तराखंड जाता हैं। वशिष्ठ आश्रम गंगा तट पर गौरीगुरु (पार्वती के पिता ) पर था। आश्रम के निकट वन में देवदारु वृक्ष थे जहां दिलीप नंदनी चराता है। (रघुवंश , 1 /48 )
वशिष्ठ आश्रम की घटनाएं - कालिदास कृत रघुवंश के प्रथम सर्ग के अंतिम 48 श्लोकों व द्वितीय सर्ग के प्राथमिक 71 श्लोकों में सभी घटनाएं वशिष्ठ आश्रम में हुईं और उत्तराखंड संबंधी कई सूचनाएं देने में समर्थ हैं। ( रव 2 )
दिलीप का उत्तराखंड पर आक्रमण - कालिदास रचित रघुवंश के चतुर्थ सर्ग में दिग्विजय हेतु महाराज दिलीप काम्बोज जीतकर 'गौरीगुरु पर्वत पर आक्रमण करता है। दिलीप की सेना पर्वतीय गणों के नाराचों से जूझती है। पर्वतीय वीर शिलाखंड फेंक कर दिलीप के सेना का सामना करते हैं (रघुवंश 4 /71 व 4 /77 )
पर्वतीय गणों द्वारा भेंट - रघुवंश के 4 सर्ग के 71 -7 9 श्लोकों में घोर युद्ध वर्णन है और किसी की भी जीत या हार नहीं हुयी। रघु को विदा करते समय पर्वतीय गण दिलीप को भेंट देते हैं। इन भेंटों में उत्तराखंड की कई वस्तुओं का वर्णन है। हिमालय वासियों को मैदानी सेना चातुर्य व दिलीप को पाख पख्यड़ में पारम्परिक रणनीति से लड़ने की युद्ध समस्या का ज्ञान होता है।
Copyright Bhishma Kukreti 3/3 //2018
Tourism and Hospitality Marketing Management History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास -part -3
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