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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, April 2, 2018

शाह शासन काल (1600-1700 में उत्तराखंड पर्यटन -2

शाह शासन  काल (1600-1700 में उत्तराखंड पर्यटन -2
Medical Tourism from 1600-1700
(  1600-1700 मध्य  उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -47
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )     -  47                  
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--15      उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 152  

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ ) 
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मान शाह (1591 -1611 ) के पश्चात श्याम शाह (1611 -1631  ) ने गढ़वाल पर शासन किया। पर्यटन संबंधी मुख्य घटनाएं इस प्रकार हैं -
   

     पंजाब में महामारी 
    जहांगीर काल में 1616 में पंजाब में महामारी /प्लेग शुरू हुआ।  महामारी में हजारों मनुष्य मरे।  उत्तरी भारत में दोआब व दिल्ली समेत महामारी फैली और आठ साल तक महामारी का प्रकोप बना रहा  (मुतामद खान , जहांगीर नामा )।  हिन्दू अधिक मरे।  कश्मीर में इस बीमारी से भीषण प्रकोप हुआ। फजल अनुसार गौड़ देस में भी 1575  में प्लेग फैला था।
      गढ़वाल कुमाऊं में महामारी की सूचना नहीं मिलतीं हैं  किन्तु संभवतया उत्तराखंड इस महामारी से नहीं बच सका होगा।  ब्रिटिश काल तक महामारी , हैजा आदि छूत की बीमारियां यात्रियों द्वारा उत्तराखंड आती रही हैं और बिनाश करती रही हैं। 
        
श्यामशाह का जहांगीर राज्यसभा  में उपस्थिति 
   श्याम शाह और राजकवि भरत के मुगल बादशाह जहांगीर ( 1605 -1627 ) से अच्छे सबंध थे।  सन 1621 में श्यामशाह आगरा में जहांगीर की राज्यसभा में उपस्थित हुआ था। जहांगीरनामा (पृष्ठ 713 ) में उल्लेख है कि  बादशाह ने श्रीनगर के जमींदार राजा श्याम सिंह को एक घोड़ा व हाथी उपहार स्वरूप दिया।  श्याम शाह क्या उपहार ले गए थे का विवरण खिन नहीं मिलता है।  बहुगुणा वंशावली में भरत  बहुगुणा द्वारा 'शाह' पदवी लाना वाला कथन वस्तव में जहांगीरनामा के इस उल्लेख से गलत ही साबित होती ही।
     
          जहांगीर का हरिद्वार आगमन 
   जहांगीर ग्रीष्म ऋतू में हरिद्वार में ग्रीष्म निवास गृह बनवाने की इच्छा से 1621 में हरिद्वार आया।  वहां जहांगीर ने साधू संतों को भेंट आदि दीं। और सही जलवायु न पाने से जहांगीर कांगड़ा ओर चला गया।
    पादरियों का उत्तराखंड पर्यटन 
    पुर्तगाली जेसुइट पादरी अंतोनियो तिबत जाने के लिए 1600 ई में गोवा भारत आया था।  उन्हें गुमान था कि तिब्बत में ईसाई धर्मी बिधर्मी हो गए हैं उन्हें सुधारने हेतु 1624 में अंतोनियो , फादर मैनुअल  मार्क्स व अन्य साथी आगरा के लिए चल पड़े।  आगरा से 30 मार्च 1624 उत्तराखंड के लिए धार्मिक यात्रियों के साथ चल पड़े।  हरिद्वार में मुगल सुरक्षा कर्मी भगोड़ा समझ उन्हें हरिद्वार से बाहर नहीं  जाने दे रहे थे तो गढ़वाली सैनिक मुगल जासूस समझ गढ़वाल सीमा में प्रवेश से रोक रहे थे।  जब आगरा से स्वीकृति मिली तो वे 1624 में श्रीनगर पंहुचे व श्रीनगर में कई प्रश्नों के उत्तर के बाद माणा जाने की स्वीकृति मिली।  वहां बर्फ न पिघलने से माणा  में रुकना पड़ा।  गढ़वाल सेना उन्हें तिब्बत नहीं जाने दे रहे थे। अंतोनियो अपने साथियों को छोड़ चुपके से किसी भोटिया पथप्रदर्शक के साथ तिब्बत की और चल पड़ा। अगस्त में अंतोनियो व कुछ अन्य ईसाई भक्तों के साथ दाबा मंडी तिब्बत पंहुच जहां बाद में मार्क्स भी मिल गया। 
       रास्ते में सत्तू पीकर व रात में गुफाओं , खले अकास में कंबल बिछाकर दो कंबल ओढ़कर उन्होंने कष्टकारी यात्रा पूरी की। एक महीने बाद अंतोनियो श्रीनगर  होते हुए सरहिंद पंहुचा। श्याम शाह तब्ब्त युद्ध में व्यस्त था। 
  अगले वर्ष 1625 में राज आज्ञा पत्र लेकर हरिद्वार , श्रीनगर , माणा होते पादरी अंतोनियो , मार्क्स व अन्य  के साथ छपराङ्ग मंडी, तिब्बत  पंहुचा।  वहां उसने चर्च स्थापित किया। 
      आते समय श्याम शाह अंतोनियो से मित्रता पूर्वक मिला व उसे अपने महल में ठहराया।  
      सन 1631 /30 में अंतोनियो ने मार्क्स व अन्य पादियों को फिर से छपराङ्ग भेजा।  मार्क्स जब श्रीनगर पंहुचा तो श्याम शाह क अंतिम संस्कार हो रहा था।  इस दौरान व बाद में भी ईसाई मिसनरी कार्यकर्ता कई बार छपराङ्ग हरिद्वार , श्रीनगर , माणा होते छपराङ्ग पंहुचे।  लक्ष्मण झूला से बद्रीनाथ का प्राचीन पथ ही उनका पथ था।
        हरिद्वार कुम्भ मेला 1928 
एसियाटिक रिसर्च खंड 16 अनुसार 1630 मेंहरिद्वार  कुम्भ मेले के बाद 8000 नागा अस्त्र शस्त्र लेकर बद्रीनाथ यात्रा हेतु हरिद्वार से श्रीनगर पंहुचे थे जब कि मोहसिन फनी के दाबेस्तान -ए -मजहब अनुसार 1640 में कुम्भ मेला लगा था।  2010 में हरिद्वार में कुम्भ मेला लगा था।  विश्लेषण से स्पस्ट है कि 1628 व 1640 में कुम्भ मेले लगे होंगे। 
     एसियाटिक रिसर्च अनुसार कुम्भ मेले के बाद नागा साधू अस्त्र शस्त्र सहित बद्रीनाथ यात्रा हेतु हरिद्वार से श्रीनगर पंहुचे।  राजा श्याम शाह  को पाखंड से अति चिढ थी।  राजा श्यामशाह ने  संदेश भेजा कि यदि बद्रीनाथ यात्रा प् जाना है तो अस्त्र शस्त्र छोड़कर ही जाना पड़ेगा।  राजा ने धमकी दी अन्यथा नागाओं से उसकी सेना निपटेगी।  नागाओं ने अस्त्र शस्त्र श्रीनगर  में छोड़े और बद्रीनाथ यात्रा की।  यदि 8000  नागाओं ने उस वर्ष यात्रा की होगी तो अन्य यात्रियों की संख्या बहुत अधिक रही होगी।
         
     मुसलमान वैश्याओं का आगमन 
  श्याम शाह की सबसे बड़ी कमजोरी स्त्री थी।  उसके अंतःपुर  में सुंदर स्त्रियां थीं। अंतःपुर के बाहर बहुत सी रखैलन थीं , साथ ही वह वैश्याग्रहों में गणिकाओं से भी आमोद प्रमोद करता था।  इनसे भी जी न भरे तो उसने  बजारी वैश्या तुर्कानिन तेलिन से संबंध गाँठ लिए।  दिन में वह तेलिन के यहां कबाब के साथ मदिरा पान  कर संगीत सुनता था। श्याम शाह को कई राग रागनियों का ज्ञान था।
     कबाब का आगमन 
 यद्यपि महाभारत में भुने  मांश का संदर्भ आता है और उत्तराखंड में तो इसे कछबोळी बोलते हैं किन्तु कबाब शब्द इस लेखक ने देहरादून में 1974  में भी कम ही सुना था जब कि मौलराम ने गढ़ काव्य वंश (पर्ण 10 अ ) में कबाब प्रयोग किया है।  क्या 1600 सन  तक कबाब के साथ अन्य मुगल भोज्य पदार्थों ने भी गढ़वाल में प्रवेश कर लिया था पर खोज की आवश्यकता है।
     फरिस्ता का इतिहास 
 फरिस्ता (1623 )  इतिहास में जिस जमुना -गंगा के बिच खंड का वर्णन किया गया है उसे उसने  नाम दिया है।  जबकि गंगा जमुना खंड गढ़वाल होता है।  इस इतिहास में इस प्रदेश की समृद्धि वर्णन है। 

    शाह व चंद नरेशों  द्वारा गणिकाएं , कबाब , मिरजई आयात करना  किन्तु जहांगीर से चिकित्सा प्रबंध न सीखना 

     मुगल बादशाह अकबर ने व बाद में जहांगीर ने सार्वजनिक चिकित्सा पर ध्यान दिया। जहांगीर ने 12 आदेशों में से एक आदेश दिया था जिसमे सार्वजनिक दवाखाने खोलने व उनमे हकीमों की भर्ती का।  राज्य को व्यय बहन करना था।  जहांगीर भी औषधि व बीमारियों पर प्रयोग करता था।  चूहों से प्लेग फैलता है उसे के राज में पता चला।  जहांगीर ने दवाइयों विकास हेतु कई आदेश दिए थे। 
       जहांगीर की  राजसभा में हकीम हमाम, हकीम अब्दुल फतह , हाकिम मोमिन शिराजी (जो 1622 में भारत आया ) ;हकीम सद्रा , हकीम रुकना , हकीम रूहुल्लाह ; हकीम गिलानी ; हकीम अब्दुल कासिम आदि प्रसिद्ध चिकित्सक थे।  अधिकतर ईरान से प्रशिक्षित हकीम थे। 
               गढ़वाल नरेशों व चंद नरेशों ने  कई मुगल संस्कृति का आयात किया किन्तु मुगलों से राजकीय चिकित्सा प्रबंधन कभी नहीं सीखी।  ब्रिटिश काल में जाकर चिकित्सा सार्वजनिक हिट का विचार (Concept ) बना।  मियादी बुखार , खज्जी , तपेदिक शब्द गढ़वाली में या तो मुगल काल में जुड़े या ब्रिटिश काल में खोज का विषय है।  

     मुख्य मंदिरों को भूमि 
इस काल में पूजा व्यवस्था  हेतु मंदिरों को सदाव्रत भूमि पहले की तरह ही रही। साधुओं , नागाओं व अन्य यात्रियों हेतु श्रीनगर , जोशीमठ जोशीमठ , बद्रीनाथ अदि स्थानों में सदाव्रत व्यवस्था से अन्न मिलता था। यात्रियों की चिकित्सा हेतु कोई जानकारी इस लेखक को न मिल सकी।  

        बद्रीनाथ मंदिर तर्ज पर मंदिर बनाने की संस्कृति 
राजस्थान राज्य में  गढ़बोर गाँव (राजसमंद जनपद के कुम्भलगढ़ तहसील ) में  चारभुजा  का मंदिर है जिसमे बड़ा मेला लगता है।  यह मंदिर 1444  ईश्वी में निर्मित हुआ।  मंदिर के अभिलेख में गाँव का नाम बदरी उल्लेख है (Rajasthan  (district Gazetteers: Rajsmand,2001 पृष्ट -296 ) व चतुर्भुज  को बद्रीनाथ का ही रूप माना गया  है। गढ़बोर नाम बाद में राजा बोर के बसने के बाद प्रचलित हुआ।      इस मंदिर को बद्रीनाथ ही मना जाता है।  
   1444 में राजस्थान में मंदिर निर्माण होने से प्रमाणित होता है कि बद्रीनाथ धाम यात्रा प्रचलन में थी। 


Copyright @ Bhishma Kukreti  20 /3 //2018 
ourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी 

                                   
 References

1 -
भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -4
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