Uttarakhand Medical Tourism in Shah Dynasty
( शाह वंश काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -53
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 53
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--160) उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 160
किसी भी शाह वंशी राजा ने इतने साल राज नहीं किया जितना प्रदीप शाह ने। उसके काल को इतिहासकार दो भागों में बांटते है राणी राज और प्रदीप शाह राज।
राणीराज
बालक प्रदीप को राज सिंहासन पर बैठाकर उसकी माँ ने राज किया।
दलबंदी - कुमाऊं की ही तरह जहां विभिन्न सभसद दलों मध्य दलबंदी थी गढ़वाल में भी मेदनीशाह काल से ही राजपूत दल (बाहर से ए राजपूत ) और खस दलों (आदि काल के सैनिक ) में भयंकर दलबंदी चलने लग गयी थी जिसने आगे जाकर गढ़वाल व कुमाऊं को दासता के गर्त में धकेला। आज भारत में भी भारत को छोड़ स्वार्थ दलबंदी का युग दीख ही रहा है।
कटोचगर्दी - राणी के शासन में मेदनीशाह के समय हिमाचल से आये कटोचों की संतानों ने शासन अपने हाथ में ले रखा था और कई अत्त्याचार किये अन्य दल वालों की जघन्य हत्त्या करवाई। इन्हे बाद में हत्त्या कर मार डाला गया था।
कठैत गर्दी -कटोचों के उत्पाटन के बाद कठैत शासन में दखलंदाजी करने लगे। कठैतों के अत्त्याचार काल को कठैतगर्दी कहा जाता है
इस काल में कई नए कर लगे और कई करों में बृद्धि हुयी।
सदाव्रत - यात्रियों हेतु मंत्री शंकर डोभाल ने सदाव्रत खोले किन्तु बाद में मंत्री खंडूड़ी ने सदाव्रत बंद करवा दिए।
प्रदीप शाह शासन
प्रदीप शाह द्वारा शासन में शासन में चुस्ती आयी , स्थिरता आयी।
कुमाऊं की सहायता - कुमाऊं पर रोहिला आक्रमण हुआ तो प्रदीप शाह ने कुमाऊं की भरपूर सहायता की और मैत्री संबंध सुदृढ़ किये किन्तु किन्तु कुमाऊं मंत्री शिव दत्त जोशी आदि के कारण दोनों देशों मध्य युद्ध हुआ फिर मैत्री हुयी। गढ़वाली मंत्रियों ने घूस खाकर राजा के साथ विश्वासघात किया।
दून प्रदेश - 1757 के लगभग दून प्रदेश पर नजीबुददौला ने दून पर अधिकार कर लिया और पुनः 1770 में दून पर गढ़ववली शाशक ने अधिकार किया। नजीब्बुदौला के शासन में दून ने प्रगति की और दून में व्यापारिक मंडी खुली जो व्यापारिक पर्यटन हितकारी सिद्ध हुआ।
इस दौरान दक्षिण गढ़वाल पर रोहिलाओं के छापे निरंतर पड़ते रहे।
मराठों के आक्रमण - मराठे हरिद्वार , सहारनपुर तक पंहुच चुके थे और चंडीघाट -भाभर से होते हुए नजीबाबाद पर उन्होंने आक्रमण किया साथ ही साथ प्रजा को लूटा। लूटने में किसी भी आक्रमणकारी ने कभी कमी नहीं की।
स्वचलित। समाज चलित व शासन चलित पर्यटन प्रबंध
इस दौरान व भूतकाल में भी गढ़वाल में धार्मिक पर्यटन स्वचलित , समाजचलित व शासन चलित प्रबंध से चलता था। चूँकि तब भारत में व्यापार को निम्न श्रेणी का कार्य समझा जाता था तो शासन का ध्यान यात्राओं से कमाई पर कम जाता था तो शासक जो भी कार्य यात्रियों की सुविधा हेतु करते थे वे धार्मिक व धर्म से फल पाने की इच्छा से करते थे। मंदिरों की आर्थिक व्यवस्था भूमि दान से व दक्षिणाओं से चलती थी। यात्रा पथ पर निकटवर्ती ग्रामीण वैद्यों से यात्रियों की चिकत्सा चलती थी। किन्तु यदि हम सर्यूळ ब्राह्मणों के इतिहास जो संभवतया आयुर्वेद में अधिक सम्पन थे तो है कि ब्रिटिश शासन काल से पहले पौड़ी गढ़वाल के हजारों वर्षों से चलते पुराने ऋषिकेश - बद्रीनाथ मार्ग पर व्यासचट्टी या देवप्रयाग तक कोई तथाकथित उच्च वर्गीय ब्राह्मणों का कोई गाँव ही नहीं था। झैड़ के मैठाणी , व खंड के बड़थ्वाल भी ब्रिटिश काल के बाद ही या कुछ समय पहले बसे होंगे।
ऋषिकेश -देव प्रयाग मार्ग में भट्ट या अन्य ब्राह्मण चिकित्स्क
ऋषिकेश से देवप्रयाग मार्ग पर या आस पास कई गाँवों में ग्राम नाम से उपजी ब्राह्मण जातियां बसी हैं। जिन्हे उच्च ब्राह्मणों का दर्जा हासिल नहीं था। क्या ये ब्राह्मण यात्रा मार्ग पर यात्रियों की चिकित्सा करते थे ? ऋषिकेश से देवप्रयाग के मध्य अधिकतर गांव राजपूतों के गाँव हैं और यह भी एक कटु सत्य है कि इन गाँवों में अधिकतर कोई भी राजपूत जाति तथाकथित उच्च राजपूत जाति में नहीं गिनी जाती थी। ब्रिटिश काल से पहले से ही यात्रा मार्ग पर चट्टी व्यवस्था थी। यह भी एक अन्य कटु सत्य है कि चट्टी में दुकानदार ब्राह्मण कम ही होते थे अपितु राजपूत अधिक थे। हाँ श्रीनगर से आगे काला जाति वाले चट्टियों में व्यापार करते थे।
अब प्रश्न उठता है कि तथाकथित निम्न वर्गीय ब्राह्मण यदि आयुर्वेद जानते थे तो कैसे इन्हे ब्रह्मणों में उच्च पद नहीं मिला ? ब्रिटिश काल में एक प्रथा और चली कि जिस ब्राह्मण जाति के गुरु ब्राह्मण सर्यूळ वह बड़ा ब्राह्मण तो ब्रिटिश काल में सलाण में सर्यूळ बसाये गए जैसे जसपुर ढांगू में बहुगुणा व झैड़ में मैठाणी ,अमाल्डू डबरालस्यूं में उनियाल , उदयपुर में रतूड़ी , थपलियाल आदि। मल्ला ढांगू में नैल -रैंस में बिंजोला भी ब्रिटिश काल में ही बसे होंगे। यह आश्चर्य है कि ना तो बहुगुणा ना ही उनियाल या ना ही रतूड़ियों ने वैदगिरी की। डबरालस्यूं में डबराल वैदगिरी करते थे। बडोला, कंडवाल, कुकरेती, भट्ट ब्राह्मण उदयपुर में वैदकी करते थे।
यात्रा मार्ग के निकटवर्ती क्षेत्र में ब्रिटिश काल में मल्ला ढांगू में आयुर्वेद चिकित्सा पर किमसार से कुकरेतियों द्वारा ठंठोली में बसाये गए कण्डवालों का एकछत्र राज रहा। कंडवाल तल्ला ढांगू व उदयपुर तक चिकित्सा हेतु भ्रमण करते थे। व दूसरे भाग मल्ला ढांगू में बलूणियों का एक छत्र राज था । कठूड़ के कुकरेती भी तल्ला ढांगू में चिकत्सा करते थे। तल्ला ढांगू में व पूर्व बिछला ढांगू में झैड़ के मैठाणी वैदगिरी संभालते थे तो पश्चिम बिछला ढांगू में खंड गडमोला के बड़थ्वाल वैदकी संभालते थे। ऋषिकेश से शिवपुरी तक शायद भट्ट जाति (सभी जाति सम्मिलित ) वैद चिकित्सा संभालते थे।
ब्रिटिश काल व बाद में भी व्यासचट्टी से देवप्रययग तक कंडवाल स्यूं पट्टी के बागी गाँव के भट्ट व खोळा गाँव के भटकोटि जाति वैदगिरी संभालते थे। मैंने झैड़ के मैठाणी व खंड के बड़थ्वाल साथियों से सुना है कि चिकित्सा या अन्य सुविधा देने पर यात्री सुई -तागा या अन्य वह वस्तु देते थे जो गढ़वाल में अप्राप्य थी। वैसे ब्रिटिश काल में तैड़ी बिछला ढांगू ) के रियाल भी वैदकी करते थे तो उन्होंने भी यात्रियों को चिकित्सा सहायता दी ही होगी। हो सकता है बड़ेथ से खंड में बड़थ्वालों के बसने से पहले तैड़ी के रियाल ही बिछला ढांगू में चिकत्सा संभालते रहे होंगे। चूँकि गोरखा राज में बहुत उथल पुथल हुयी व ब्रिटिश राज में कई नए ग्रामों की बसाहट हुयी तो ऋषिकेश से देवप्रयाग तक चिकित्सा प्रबंध का क्रमगत इतिहास मिलना कठिन ही है। इस लेखक ने कुछ को पूछा भी तो कोई सही तर्कसंगत उत्तर इस क्षेत्र के ब्राह्मणों से नहीं मिला।
ब्रिटिश काल में तो कांडी (बिछला ढांगू ) अस्पताल खुलने से कई बदलाव आये।
Copyright @ Bhishma Kukreti 26/3 //2018
ourism and Hospitality Marketing Management History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास part -4
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