Uttarakhand Medical Tourism in Shah Period
( फतेशाह काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -52
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 52
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--159 ) उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 159
अधिकतर गढ़वाल शासक फतेशाह का काल (1684 -1749 ) व उपेंद्र शाह का काल 1749 -1750 माना जाता है। इस काल में कई घटनायें उत्तराखंड पर्यटन को आज तक प्रभावित कर रही हैं।
जटाधर मिश्र कृत -फतेशाहप्रकाश '- जटाधर मिश्र ने फ्तशाहप्रकाश नामक ज्योतिष ग्रंथ रचा।
गुरु राम राय को भूमि दान - फतेशाह ने गुरु राम राय को खुड़बुड़ा , राजपुर , चामासारी गांव प्रदान किये और उसके पौत्र प्रदीपशाह ने धामावाला , धुरत वाला , मिंया वाला व पंडितवाड़ी ने ग्रामदान दिए। धामावाला से ही देहरादून शहर बसने की प्रक्रिया शुरू हुयी।
श्रीनगर में गुरु मंदिर -गुरु राम राय प्रायः श्रीनगर में निवास करते थे। फतेशाह ने श्रीनगर में गुरुमंदिर निर्माण किया था जो संभवतया बिहंगनी बाढ़ में बह गया था।
गुरु दरबार निर्माण -गुरु राम राय की विधवा माता पंजाब कौर ने गुरु शिष्य अवध दास व हरसेवक दास की सहायता से गुरु दरबार निर्माण किया। गुरु दरबार जहांगीर मकबरे की नकल पर आधारित है। उत्तराखंड में मुगल शैली का पहला भव्य वास्तु उदाहरण है गुरु राम राय दरबार। वर्तमान में गुरु राम दरबार देहरादून का प्रमुख पर्यटन केंद्र है।
गुरु गोबिंद सिंह के चेलों का आतंक - गुरु गोबिंद सिंह बिलासपुर में निवास करते थे। पश्चिम गढ़वाल पर गुरु गोबिंद सिंह के चेले हमेशा आतंकी हमला कर गढ़वाल की जनता को लूटा करते थे जो अग्रेजों के आगमन तक होता रहा।
फतेशाह पांवटा में - गुरु गोबिंद सिंह की मध्यस्ता में फतेशाह व सिरमौर नरेश
फतेशाह की पुत्री विवाह में गुरु गोबिंद सिंह के अड़ंगे ने आगे युद्ध की तयारी करवाई।
पर्वतीय राजाओं का गुरु गोबिंद सिंह के बिरुद्ध तीन युद्ध हुए जिसमे फतेशाह ने भी भाग लिया। गुरु गोबिंद सिंह ने विचित्र नाटक में फतेशाह की मृत्यु का सरासर झूठा वर्णन किया है।
फतेशाह कई सीमाओं से उलझा रहा और पड़ोसियों से युद्ध हुए।
गुरु गोबिंद सिंह के कथन कि उसने हेमकूट सप्तश्रृंग ,गढ़वाल में पिछले जन्म में तपस्या की थी तो उसके मरणोपरांत सिखों गुरुद्वारा की नींव रखी। जो आज गढ़वाल का एक प्रसिद्ध पर्यटन क्षेत्र में बदल गया है।
लोककथाओं में गढ़ मंत्री पुरिया नैथाणी दिल्ली दरबार में हाजिर हुआ था। किन्तु कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं।
भूषण कवि का आगमन -भूषण कवि गढ़वाल राजधानी आया था और सीरी नगर राजा की प्रशसा में कवित्व किया था। (शिवराज भूषण चंद 249 )
कवि मतिराम का आगमन -
कवि मतिराम ने अपने वृत्तकौमदी में फतेप्रकाश की प्रशंसा की है मतिराम ने यह ग्रंथ मौलराम के पिता मंगतराम को समर्पित किया था।
रतन कवि क्षेमराज का आगमन - रतन कवि क्षेमराज ने फतेप्रकाश की रचना श्रीनगर में की।
गोकुलनाथ जगन्नाथ मिश्र आगमन - संस्कृत विद्वान् कुछ दिन श्रीनगर में रहे। उनके रचे ग्रंथ सेंट पीटरस्बर्ग पुस्तकालय में सुरक्षित हैं।
राजसभा में नवरत्न - फतेशः की राजसभा में सुरेशा नंद बड़थ्वाल , रेवतराम धस्माना , रुद्रिदत्त किमोठी , हरी दत्त नौटियाल , बास्बा नंद बहुगुणा , शशिधर डंगवाल ,सहदेव चंदोला , कीर्तिराम कैंथोला तथा हरिदत्त थपलियाल विद्वान् थे।
फतेशाहयशोवर्णन - फतेशाह के राजकवि विद्वान् रामचंद्र कंडियाल ने 1665 में इस काव्य ग्रंथ की रचना की थी।
चित्रकारों को प्रश्रय - फतेशाह ने कई चित्रकारों जैसे ंगतराम को राज प्रश्रय दिया था। मौलारम मंगतराम का पुत्र था।
संगीतप्रेमी -फतेशाह संगीत प्रेमी था अतः अवश्य ही मुस्लिम संगीतकारों का श्रीनगर आना जाना रहा होगा।
गढ़वाल की छवि वृद्धि
उपरोक्त तथ्यों के विश्लेषण से सिद्ध है कि फतेशाह काल में गढ़वाल की छवि प्रसारण दूर दूर तक हुआ व दो प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थलों -गुरु राम राय दरबार और हेमकुंड साहिब (बाद में ही सही ) की स्थपना हई। ये दोनों स्थल गढ़वाल को आज भी अंतर्राष्ट्रीय छवि दिलाते हैं।
मुगल काल में आयुर्वेद शिक्षा
औरंगजेब काल में फ़्रांस का फ्रांकोइस बर्नियर भारत आया था। बर्नियर दारा शिकोह का व्यक्तिगत चिकित्स्क रहा फिर औरंगजेब की सभा में चिकित्स्क रहा। बर्नियर ने अपने संस्मरण लिखे थे -जैसे न्यू डिवीजन ऑफ अर्थ व ट्रैवेल्स इन द मुगल ऐम्पायर।
बर्नियर ने मुगल काल में भारत में हिन्दुओं द्वारा शिक्षा पर भी प्रकाश डाला है। बर्नियर अनुसार हिन्दू विद्यालय मंदिरों में ही थे। शिक्षा हेतु कोई आधारभूत नियम न थे। कोई प्रकाशित पुस्तकें न थीं। पंडित पुराण आदि की शिक्षा देते थे।
उच्च शिक्षा के विश्वविद्यालय सारे भारत में बिखरे थे। मुख्य शिक्षा केंद्र -बनारस , मथुरा ,नादिया , मिथिला , तिरहुत , पैठण , कराड , ठट्टे , मुल्तान थे।
बनारस व नादिया की अधिक प्रसिद्धि थी।
इन उच्च शिक्षा केंद्रों में भी औपचारिक शिक्षा व्यवस्था तो नहीं थी किन्तु व्यक्तिगत अध्यापक शिक्षा देते थे।
इन शिक्षा केंद्रों में व्याकरण , दर्शन ,इतिहास , काव्य , खगोल विज्ञान , ज्योतिष , गणित , मानव आयुर्विज्ञान , जंतु आयुर्विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी।
चूँकि आयुर्विज्ञान हेतु कोई औपचारिक विशेष शिक्षा (Specialized ) व्यवस्था न थी उपनिषद व्यवस्था के तहत जिस विद्यार्थी को आयुर्विज्ञान रुचिकर था वह विद्यार्थी अपना आयुर्वेद का गुरु खोजकर उससे आयुर्वेद अध्ययन कर लेता था। वैसे विद्यार्थी सभी विषयों की शिक्षा ग्रहण करते थे जिसमे मानव व जंतु आयुर्विज्ञान भी सम्मलित थे। यही कारण है कि भारत में सन 1970 तक सर्वत्र कर्मकांडी ब्राह्मण ही आयुर्वेद चिकित्सक भी होता था। कुछ कर्मकांडी ब्राह्मण आयुर्वेद में अधिक रूचि लेते थे तो वे आयुर्वेद औषधि शोधन को मुख्य व्यवसाय बना लेते थे और वैद के नाम से प्रसिद्ध हो जाते थे। ग्रामीण व्यवस्था में कर्मकांडी ब्राह्मण अपने बालकों को घर में ही उपरोक्त सभी विद्याओं का ज्ञान कराते थे व इस तरह परम्परागत रूप से आयुर्वेद जीवित रहा व सदियों तक चलता रहा।
मुगल शासन का प्रभाव अधिकतर शहरों में रहा। हिन्दू ग्रामीण समाज तक यूनानी औषधियों का प्रचार प्रसार न होने से समाज ने अपनी व्यवस्था स्थापित थी जिसमे समाज ब्राह्मणों और आयुर्वेद संबंधी शिल्पकारों के जीवन यापन का स्वतः प्रबंध कर लेता था जिससे आयुर्वेद बिना शासकीय संरक्षण के भी सैकड़ों साल तक जीवित रहा।
गढ़वाल कुमाऊं में आयुर्वेद
मुगल काल में गढ़वाल कुमाऊं में ब्राह्मणों के बसने का सिलसिला चलता रहा तो ब्राह्मण के द्वारा आयुर्वेद गढ़वाल व कुमाऊं में ज़िंदा रहा।
गढ़वाल -कुमाऊं में बाहर से कई संस्कृत विद्वान् राजसभाओं में व बद्रीनाथ व अन्य धार्मिक स्थल यात्रा पर आते जाते रहते थे जो स्थानीय विद्वानों को आयरूवेद की नई सूचना भी देते थे जिससे नए ज्ञान का भी आदान प्रदान होता था। संभवतया इन विद्वानों द्वारा हिमालय की जड़ी बूटियों का ज्ञान मैदानों में प्रसारित होता था।
जड़ी बूटियों का ज्ञान आयात -निर्यात व्यापारियों से भी प्रसारित होता था।
Copyright @ Bhishma Kukreti 25 /3 //2018
ourism and Hospitality Marketing Management History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास part -4
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