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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, April 2, 2018

हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर में कुषाण व कुणिंद राज्य अवसान

(कुषाण युग में हरिद्वार , बिजनौर, सहारनपुर, Haridwar ,Bijnor , Saharanpur in  Kushan  Era
   )

    History of Kunind Era in Haridwar , Saharanpur  and  Bijnor 
          Ending of , Kushan &  Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  192                     
                                                हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 192                 

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
               कुषाण  अवसान 
        मुद्राओं से सिद्ध होता है कि कुषाण  अवसान पश्चात पर्वतीय उत्तराखंड , हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर के कुणिंद राजा स्वतंत्र हो गए।  गोविषाण मुद्रा से सिद्ध होता है कि कुषाण नरेश वासुदेव की मृत्यु के बाद किसी कुषाण क्षत्रप एधुराया अधुजा  का दक्षिण उत्तराखंड के मैदानी भाग पर सत्ता थी।
      
   अनुमान लगाया जाता है कि 250  ईश्वी तक (जायसवाल , गुप्त एज ) कि सतलज पपूर्व , उत्तराखंड की दक्षिण सीमा भाग व मध्य देस में कुषाण साम्राज्य समाप्त हो चुका थ।  कुषाण साम्राज्य अवसान पर इतिहासकारों मध्य एकमत नहीं है।
यौधेय मुद्राओं की विशेषताएं 
यौयेध गण मुद्राओं के लेख निम्न प्रकार हैं  (डबराल - व कके दी बाजपाई ,इंडियन न्यूमिस्मैटिक स्टडीज पृ  26, कनिंघम क्वाइनेज ऑफ ऐन्शिएंट इण्डिया पृ 77 )
१- यौधेयना , यौधेयनि या यधे यनि 
२- यौधेय गणस्य जय (जय:) , वि , त्रि 
३- भागवत स्वामिन ब्राह्मण यौधेय 
३- भागवत स्वामिन ब्राह्मण देवस्य 
 ४- ब्रह्मण देवस्य भागवत 
५- स्वामी भागवत 
६- भागवत: यधेयन:
७- कुमारस  (कुमारस्य )
८- महाराजस 
९- बहुधानेक 
१०-भागवत स्वामीनो ब्राह्मण्य देवस्य कुमारस्य यौधेय गणस्य जयः 
११- यौधेयाना बहुधानेक 
 इतिहासकार जैसे अल्लन मानते हैं कि कुमार कोई नाम न होकर कार्तिकेय का नाम है और बहुधानेक यौधेय गणों का मूल स्थान है। 
 पूर्वोक्त  यौयेध  मुद्राओं में निम्न चिकतराकंन मिलते हैं -
१- वेष्ठनीयुक्त बोधिबृक्ष की ओर जाता हुआ नंदी 
२- बांये हाथ से कमर पकड़े , दाहिने हाथ में शूल लिए खड़ा वीर व मध्य में मयूर 
३- बांये हाथ से कमर पकड़े , दाहिने हाथ  आगे की ओर बढ़ाता खड़ा वीर 
४- दाहिने हाथ में शूल लिए खड़ा षडानन कार्तिकेय व कंधे के ऊपर रिक्त स्थान में एक छोटा पक्षी (संभवतः मयूर )
५- दाहिने हाथ में शूल युक्त षडानन कार्तिकेय 
६- हस्ती व नणदीपाद 
७- अग्रभाग में हाथ में शूल लिए षडानन कार्तिकेय ,   बाम भाग मयूर , पृष्ठ भाग में कुणिंद सम्राटों की मुद्राओं में अंकित मिहिर सामान देवमूर्ति 
 ८- ८-उपरोक्त गणराज्य की मुद्राएं हैं 
योयेध  वीर नाम से प्रसिद्ध था 
वीर मुद्रा में किसी शासक का नाम नहीं है 


                   यौधेयगण उत्थान 
     एक मतानुसार  (वकाटका , 2006 गुप्त एज ) कुषाण साम्राज्य पर सर्व प्रथम यौधेयगण ने आक्रमण किया। किन्तु बहुत से इतिहासकार इस मत को नहीं मानते हैं। वास्तव में कुषाण अवसान के कई कारण थे।
                 कुणिंद व यौधेय सहयोग 
        इन दिनों जो भी मुद्राएं मिलीं है वे इस युग पर रोचक प्रकाश डालती हैं। मुद्राएं यौधेय -कुणिंद की सहयोग कथा कहतीं हैं।  महाभारत में भी कुणिंद व यौधेयों के आपस में सहयोगी संबंध उल्लेख हैं। 
          मुद्राएं 
 कुणिंद -यौधेय सहयोग मुद्राएं 250 ईश्वी याने कुषाण अवसान से लेकर 457 ई गुप्त काल अभ्युदय की हैं वकाटका )।  ये मुद्राएं सुनेत लुधियाना , बेहट सहारनपुर ,स्रुघ्न , बिजनौर देहरादून , भाभर के निकट भैड़ गाँव गढ़वाल , अल्मोड़ा में मिली हैं (डबराल पृष्ठ 252 ) । लगता है यौधेय -कुणिंद संघ था और उनका राज्य पूर्वी हिमाचल से लेकर स्रुघ्न , सहरानपुर , हरिद्वार , भाभर की संकरी पट्टी से होते हुए काशीपुर अल्मोड़ा तक था। 
        यौधेय -कुणिंद मुद्राओं की विशेषताएं 
   यौधेय -कुणिंद सहयोग की मुद्राएं कुषाण अवसान से गुप्त काल उद्भव तक प्रसारित की गयीं। अल्लन अनुसार कुणिंद मुद्राएं दो प्रकार की मुद्राएं हैं प्रथम पहली सदी से पहले की व दूसरी सदी के बाद की मुद्राएं रजत मुद्राएं हैं अपने समय की सुंदर मुद्राओं में गिनी जाती हैं
         
यौधेय मुद्राओं की विशेषताएं 
यौयेध गण मुद्राओं के लेख निम्न प्रकार हैं  (डबराल - व कके दी बाजपाई ,इंडियन न्यूमिस्मैटिक स्टडीज पृ  26, कनिंघम क्वाइनेज ऑफ ऐन्शिएंट इण्डिया पृ 77 )
१- यौधेयना , यौधेयनि या यधे यनि 
२- यौधेय गणस्य जय (जय:) , वि , त्रि 
३- भागवत स्वामिन ब्राह्मण यौधेय 
३- भागवत स्वामिन ब्राह्मण देवस्य 
 ४- ब्रह्मण देवस्य भागवत 
५- स्वामी भागवत 
६- भागवत: यधेयन:
७- कुमारस  (कुमारस्य )
८- महाराजस 
९- बहुधानेक 
१०-भागवत स्वामीनो ब्राह्मण्य देवस्य कुमारस्य यौधेय गणस्य जयः 
११- यौधेयाना बहुधानेक 
 इतिहासकार जैसे अल्लन मानते हैं कि कुमार कोई नाम न होकर कार्तिकेय का नाम है और बहुधानेक यौधेय गणों का मूल स्थान है। 
 पूर्वोक्त  यौयेध  मुद्राओं में निम्न चिकतराकंन मिलते हैं -
१- वेष्ठनीयुक्त बोधिबृक्ष की ओर जाता हुआ नंदी 
२- बांये हाथ से कमर पकड़े , दाहिने हाथ में शूल लिए खड़ा वीर व मध्य में मयूर 
३- बांये हाथ से कमर पकड़े , दाहिने हाथ  आगे की ओर बढ़ाता खड़ा वीर 
४- दाहिने हाथ में शूल लिए खड़ा षडानन कार्तिकेय व कंधे के ऊपर रिक्त स्थान में एक छोटा पक्षी (संभवतः मयूर )
५- दाहिने हाथ में शूल युक्त षडानन कार्तिकेय 
६- हस्ती व नणदीपाद 
७- अग्रभाग में हाथ में शूल लिए षडानन कार्तिकेय ,   बाम भाग मयूर , पृष्ठ भाग में कुणिंद सम्राटों की मुद्राओं में अंकित मिहिर सामान देवमूर्ति 
 ८- ८-उपरोक्त गणराज्य की मुद्राएं हैं 
योयेध  वीर नाम से प्रसिद्ध था 
वीर मुद्रा में किसी शासक का नाम नहीं है
 प्राचीन मुद्राओं  (43-57 इश्वी में यौधेय गणकी आर्थिक दरिद्रता झलकती है.
158से 257इश्वी में भी यौधेय दरिद्रता झलकती है
ताम्र मुद्राएँ जिन पर कुषाण प्रभाव है उनकी भाषा प्राकृत संस्कृत से प्रभावित है।
257 से 457 तक की मुद्राओं में यौधेय गणस्य जय: अंकित है। कुनिंद मुद्राएँ 250ई के पश्चात नही मिलते हैं। 
कुणिंद   मुद्राओं में निम्न लेख मिलते हैं  (डबराल पृ -248 )
१- कदास (कादस्य )
२- कुणिंद
अगरजस (अग्रराजस्य )
२-राज्ञ बलभुतिस 
३- राज्ञ कुणिंदस अमोघभूतिस  (अमोघभूति स्य )
४- शिवदतस 
५-हरी द तस 
६- शिवपलितस 
७- मगभतस 
८- भगवतो छत्रेश्वर महात्मन 
९- भानवर्मन 
१०- रावण -रावणस्य , वणस्य
     कुणिंद मुद्राओं में चित्रांकन 
कुणिंद  मुद्राएं भारतीय  प्राचीन मुद्राओं में चित्रांकन में श्रेष्ठ मानी जाती हैं मुद्राओं में निम्न चित्रांकन मिलते हैं - 

कुणिंद मुद्राओं में   चित्रांकन  अगले भाग में 
   

( कुछ संदर्भ परमानंद गुप्ता , जियोग्राफी फ्रॉम एन्सिएंट इण्डिया पृ 32 से लिए गए हैं )
१- अग्रभाग में बौद्ध वेष्ठनी युक्त
 
        




Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India  2018 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -



        Ending of Kunind /Kulind era , Yauyedh -Kuninda  Coinage : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;     Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;     Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Yauyedh -Kuninda  Coinage Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;  Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;   Yauyedh -Kuninda  Coinage ,    Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;  Yauyedh -Kuninda  Coinage    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;      Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Bijnor;      Ending of Kunind /Kulind era : Yauyedh -Kuninda  Coinage ,  Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;     Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and     Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Saharanpur;    Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ending of Kunind /Kulind era Yauyedh -Kuninda  Coinage ,  : Ending of Kuninda /Kulinda Era and    Ancient  History of Badhsharbaugh ,   Ending of Kunind /Kulid era : Yauyedh -Kuninda  Coinage ,  Ending of Kuninda /Kulinda Era and Saharanpur; Yauyedh -Kuninda  Coinage    Ancient Saharanpur History,       Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient Bijnor History;
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