Improvement in Tourist Facilities in British Uttarakhand
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म-4 )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -59
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 59
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--165) उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 16 5
गढ़वाली राजाओं व गोरखा शासन में मंदिरों को कर मुक्त मुवाफ़ी गाँव दिए गए थे। गूंठ भूमि राजस्व से मंदिरों में पूजा व कर्मचारियों का वेतन प्रबंध होता था। इसके अतिरिक्त सदाव्रत गाँव भी थे जिनकी आय से श्रीनगर , जोशीमठ में यात्रियों हेतु मुफ्त भोजन व्यवस्था भी होती थी। 1816 में गढ़वाल के सहायक कमिश्नर ने सलाह दी थी कि गूंठ या मंदिर गाँवों की आय का कुछ भाग यात्रियों की सुविधाओं हेतु प्रयोग होना चाहिए।
केदारनाथ के रावल द्वारा अमानत में खयानत से अधिकारियों ने रावलों या पुजारियों से सदाव्रत गाँवों से आय व उपयोग का अधिकार छीनकर स्वंतंत्र कमेटी 'लोकल एजेंसी 'बना दी। सदाव्रत गाँवों की आय से हरिद्वार -बद्रीनाथ यात्रा मार्ग चौड़ा किया गया। सदाव्रत गाँवों के राजस्व से यात्रिओं को मुफ्त भोजन व्यवस्था , यात्री चिकित्सा, मरोम्मत कार्य में तेजी लायी गयी। मार्ग मरमत कार्य अब नियमित व सुचारु रूप से होने लगा था.
ट्रेल के उत्तराधिकारियों द्वारा सदाव्रत पट्टियों की आय से निम्न मार्ग निर्मित हुए या उनका पुनर्निर्माण हुआ
जोशीमठ -नीती
अल्मोड़ा से लाभा -गढ़वाल
श्रीनगर से नजीबाबाद मार्ग
1927 -28 में ट्रेल ने गाँव वालों से बेगार लेकर (मुफ्त मजदूरी ) हरिद्वार -बद्रीनाथ मार्ग निर्माण कार्य करवाया। वह स्वयं भी मार्ग निर्माण निरीक्षण करता था। 1855 तक निम्न यात्रा मार्ग भी निर्मित हो चुके थे -
रुद्रप्रयाग से -केदारनाथ
उखीमठ से चमोली
कर्णप्रयाग से चांदपुर
बेकेटभूव्यवस्था में गूंठ व सदाव्रत भूमि की विधिवत व्यवस्था की गयी थी। डा डबराल ने लिखा है कि मंदिरों के साथ अन्याय भी हुआ। कुछ मंदिरों की भूमि भी छीन ली गयी थी।
सदाव्रत गाँवों से बेकेट भूव्यवस्था में वार्षिक राजस्व 100013 रुपयाथा। सदाव्रत व गूंठ गाँव की संख्या 535 थी व 1863 में इन गाँवों का क्षेत्रफल 8074 बीसी नाली थ
स्ट्रेचों की रिपोर्ट सलाह मानते हुए ब्रिटिश शासन ने सदाव्रती पट्टियों के सदाव्रत भूमि राजस्व का उपयोग तीर्थयात्री मार्ग निर्माण , पुनर्णिर्माण , तीर्थ यात्रियों हेतु औषधालय निर्माण , औषधि वितरण , पर होने लगा। इन तीर्थ यात्री सुविधाओं से भारत के अन्य भागों में अपने आप उत्तराखंड छवि वृद्धि हुयी और तीर्थ यात्रियों की संख्या में वृद्धि होने लगी।
गाँवों में श्रमदान से मार्ग निर्माण में तेजी
तीर्थ यात्रा मार्गों में सुधार से प्रेरित हो गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में श्रमदान से ग्रामवासी मार्ग निर्माण करने लगे। ग्रामवासी अपने गाँव को लघु मार्गों द्वारा मुख्य यात्रा मार्ग से स्वयं जोड़ने लगे।
पौड़ी गढ़वाल पर्यटन में पिछड़ा जनपद है
पौड़ी गढ़वाल में स्वर्गाश्रम , लक्ष्मण झूला व श्रीनगर को छोड़ दें तो पौड़ी में धार्मिक पर्यटन नगण्य हैं। यदि उत्तराखंड पर्यटन वृशि करनी है तो पिथौरागढ़ व पौड़ी जनपदों को को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटन जनपद विकसित करने ही होंगे। इसके लिए श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग को प्रसिद्धि आवश्यक है।
श्रीनगर -कोटद्वार रुट हेतु प्रवासियों का योगदान ही विकल्प है
यदि श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग को राट्रीय स्तर का पर्यटन मार्ग बनाना है तो श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग के गाँवों को विशिष्ठ पर्यटक क्षेत्र निर्मित करना होगा जिसमे प्रवासियों की भूमिका के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। प्रवासी निम्न स्तर पर अपना योगदान दे सकते हैं
१- वैचारिक स्तर पर अपने गाँव में विशिष्ठ पर्यटन आकर्षी प्रोडक्ट निर्माण
२- ग्रामवासियों को तैयार करना - आजकल एक बीमारी फैली है कि हर भारतीय शासन से सब कुछ चाहता है किन्तु अपने योगदान के बारे मबौग सार देता है। प्रवासी यह जड़ता तोड़ सकते हैं
3 -पर्यटन प्रोडक्ट निर्माण में निवेश कर प्रवासी अपनी भूमिका निर्धारित कर सके हैं। प्रवासी श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग पर रिजॉर्ट , म्यूजियम , बाल क्रीड़ा केंद्र , हनी मून हाऊसेज , हॉस्पिटल आदि खोल सकते हैं।
Copyright @ Bhishma Kukreti 3/4 //2018
ourism and Hospitality Marketing Management History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास part -4
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