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Tuesday, December 30, 2014

हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में आर्यों का मूलस्थान

Native  Place of Aryan in context of History of Haridwar, Bijnor , Saharanpur

                          हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में आर्यों का मूलस्थान 

                                        History of Haridwar Part  --34  

                                            हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -34                                                                                                                 
                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

 
कुछ इतिहासकारों /विद्वानो के आर्यों के मूलस्थान पर निम्न विचार   हैं -
इतिहासकार -------------------------------------------------------------आर्यों का मूलस्थान

मैक्स मूलर ---------------------------------------------------------------मध्य एशिया 
बाल गंगाधर तिलक ----------------------------------------------------आर्कटिक क्षेत्र 
ए सी दास ---------------------------------------------------------------सप्त सिंधु (पंजाब )
नहरिंग ------------------------------------------------------------------दक्षिण रूस 
पोकोमी ------------------------------------------------------------------ रूस का विस्तुला और वेजर के मध्य क्षेत्र 
ब्रैण्डस्टेन ---------------------------------------------------------------किर्गीज
जर्मन नाजी विद्वान -------------------------------------------------जर्मनी 
मॉर्गन ------------------------------------------------------------------पश्चिमी साइबेरिया 
मैक्डोनल ---------------------------------------------------------------पूर्वी यूरोप 
डा गिल्स --------------------------------------------------------------ऑस्ट्रिया -हंगरी 
 
अनेक भारतीय और अन्य इतिहासकार मानते हैं कि आर्यों का मूलस्थान यूरेशिया के स्टेप प्रदेश को मानते हैं। स्टेप प्रदेश को आर्यों की मूलभूमि मानने के पीछे तर्क भाषा वैज्ञानिक तर्क है। 
यूरोपीय और संस्कृत भाषा में समानता के कारण माना जाता है कि आर्यों का मूलस्थानयूरेशिया के स्टेप प्रदेशहै। इतिहासकारों ने यूरोपवासियों और भारतीय आर्यों को एक नृशंस परिवार का माना है जिसकी पुष्टि पुरात्व और नृशस विज्ञान भी करते हैं (मजूमदार और पुसलकर , वैदिक एज )। 
आर्यों का गौरवर्ण , लम्बी तीखी नाक , भूरे केश व भूरी आँखें आर्यों  प्रतीकात्मक अंग हैं जो भारत में आज भी कम ही मिलते हैं। 
भारत में आर्य जाति ने यूरेशिया से पूर्व की और बढ़कर भारत के उत्तर पश्चिम की पहाड़ियों से भारत में प्रवेश किया। उस समय ईरान में भी कोल जाति का वास था। सप्त सिंधु (पंजाब ) तक आ बसने के बाद भी आर्यों ने राजनीतिक उलटफ़ेरों का जिक्र ऋग्वेद में नही किया। राजनीतिक उल्ट फेर में व्यस्त होने के कारण आर्यों ने अपनी  देवस्तुतियों का संग्रह भारत प्रवेश के तुरंत बाद तुरंत नही किया अपितु तीन चार सौ साल बाद ही किया । 
 ऋग्वेद ऋचाओं की रचना जिन ऋषियों ने की उनमे प्राचीन नाम अंगिरा , रहूगण , कुशिक है।  इनका जीवन काल 1300 BC माना जाता है। 
ऋग्वेद के ऋषियों जैसे भारद्वाज , कश्यप , गौतम , अत्रि , विश्वामित्र , जमदग्नि और वशिष्ठ का काल 1350 BC माना जाता है। विद्वानो का अनुमान है कि ऋग्वेद की रचना सप्तसिंधु (पंजाब ) में हुयी होगी। 



Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India 24 /12/2014 

Contact--- bckukreti@gmail.com 
History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 34           
 
(The History of  Haridwar, Bijnor , Saharanpur write up is aimed for general readers) 

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