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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, December 3, 2014

आतिथ्य कला मानव सभ्यता के साथ विकसित हुइ !

 Roots of Hospitality Management 

                                          आतिथ्य कला मानव सभ्यता के साथ विकसित हुइ  !

                                              Hospitality Management  -3 

                                                  आतिथ्य प्रबंधन -3 

                                     ( Hospitality and Tourism  Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--121   
                                         उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणनप्रबंधन -भाग 121   

                                                                    लेखक ::: भीष्म कुकरेती  (विपणन  विक्रीप्रबंधन विशेषज्ञ )
 

 आतिथ्य कला या प्रबंधन मानव सभ्यता के साथ ही विकसित हो गया था. 
पत्थर युग , धातु युग के पुरात्व भी साक्ष्य हैं कि मानव आतिथ्य कला महत्व देता था और तभी तो उपकरणों व उपकरण रचनाकारों को एक समाज  से दूसरे समाज में प्रसार का अवसर मिला।  जिस समाज ने आतिथ्य को नही अपनाया वह समाज पीछे छूटता गया। 
महाभारत में आतिथ्य व अतिथि के महत्व को कुशलता पूर्वक उल्लेख हुआ है।  भीष्म , द्रोणाचार्य सरीखे मेजवानो ने अपने अतिथितियों को अपने मरने की विधि तक बताई।  
भारत में अतिथि देवो भवः की मान्यता अति प्राचीन काल से चली आ रही है। 
धर्मशालों  प्रचलन अतिथियों की सेवा को प्रदर्शित करता है। 
साधू , संतों , मंगतों को भोजन , ठहरने का स्थान व्यवस्था आतिथ्य कला का ही एक रूप है।  
पर्यटन , घूमना , घुम्मकड़ शब्द इंगित करते हैं कि आतिथ्य हर युग की एक आवश्यकता रही है। 
प्राचीन काल में आतिथ्य कला सम्मान का रिस्ता इंगित करता है। 
  आधुनिक काल में आतिथ्य ने नया रूप ले लिया है।  
अरामबेर्री  (2004 ,The Host Get Lost ) ने ग्लोबलाइजेसन आदि को आधार बनाकर आतिथ्य प्रबंधन में आथित्य को नए कोण से विश्लेषित किया है  . अरामबर्री कहता है की आधुनिक शुरुवाती मेहमानबाजी के निम्न कोण थे -
१- आतिथ्य में अतिथि को रक्षा देना आवश्यक है 
२- मेहमान को मेजवान को मेजवानी की कीमत चुकानी आवश्यक है। 
३- अतिथि मेजवान का पारिवारिक सदस्य बन जाता है और मेहमान व मेजवान  व्यवहार उसी तरह जाते हैं। 
अरामबेर्री  (2004 ,The Host Get Lost )कहते हैं कि अब मेहमान को सेवा डिलवरी होनी आवश्यक है और मेजवान केवल सेवा दाता रह गया है व सेवा के बदले मेजवान मेहमान से कीमत पाता है। अरामबेर्री  (2004 ,The Host Get Lost )के अनुसार अब अतिथि केवल एक ग्राहक है और मेजवान केवल एक सप्लायर !
वी स्मिथ (2001 ) में ट्राइबल /एथनिक टूरिज्म में चार H के सिद्धांत को प्रतिपादित किया 
Habitat -रहने का तरीका 
History -इतिहास 
Heritage -संस्कृति 
Handicraft -हस्तकला 
याने की अब आतिथ्य कला के अवयव बदल गए हैं और शायद भविष्य  आतिथ्य अवयव नए रूप में सामने आएँगी ही। 

अब पर्यटक की चाहत , आकांक्षा आतिथ्य प्रबंधन को प्रभावित करती है ना कि मेजवान की इच्छा ! 
अब निम्न अन्य अवयव जुड़ गए हैं -
Habitat -रहने का तरीका 
History -इतिहास 
Heritage -संस्कृति 
Handicraft -हस्तकला
आतिथ्य सेवा 
अतिथि व मेजवान का संवाद या सूचनाओं का आदान प्रदान व कॉन्ट्रैक्ट 


Copyright @ Bhishma Kukreti  2/12//2014  

Contact ID bckukreti@gmail.com
Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी 
                                   
 References

1 -
भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकोंमें ) कोटद्वार गढ़वाल

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