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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, December 22, 2014

हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में आर्यपूर्व सिंधु -हिन्दू सभ्यता

  Pre- Aryan and Indus Culture in Haridwar , Bijnor , Saharanpur History context 

                              
   हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में आर्यपूर्व सिंधु -हिन्दू सभ्यता 
                       
                              हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -32    
                                                      History of Haridwar Part  --32   
                              
                           
                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती   

   ऋग्वेद में  घटनाओं को  विद्वान 1200 BC से पहले  बताते और आर्य 1500 BC पहले ही पंजाब में बस चुके थे। आर्य जनो से पहले भारत में ताम्र उपकरण संस्कृति जन्म ले चुकी थी (3000 BC )। आर्य अपने साथ लौह उपकरण लाये थे।
मुंहजोदडो या सिंधु घाटी अथवा सिंधु -सरस्वती सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान की सिंधु घाटी , बलूचिस्तान ,  पंजाब, हरियाणा , राजस्थान , गुजरात ,  और पश्चमी उत्तरप्रदेश में पाये  गए हैं। 
सहारनपुर , हरिद्वार और बिजनौर के ताम्र उपकरण संस्कृति के उपकरणों और सिंधु -हिंदु संस्कृति के उपकरणों में बहुत अधिक साम्यता पाई गयी है। 
                              सिंधु घाटी या हिंदु सभ्यता के लक्षण 
 हिन्दू धर्म के कई मान्यताओं में वैदिक धर्म से अधिक सिंधु घाटी /हिन्दू घाटी सभ्यता का हाथ रहा है। 
                              नगरों के अवशेष 
हरिद्वार , बिजनौर और सहारनपुर,  आदि में भी उसी तरह नगर बसे होंगे जैसे मोहनजोदाड़ो में रहे होंगे। 
नगरों का निर्माण योजना वद्ध तरीके से होता था। सड़कों के दोनों और मकान बने होते थे और खिड़कियां सड़क की और खुलतीं थी। सड़कें मुख्य राजमार्ग से जुड़ीं थीं।  स्नानागार व गोल जगत वाले भी मकानों के अंदर बने होते थे। मकान ईंटों की बने होते थे। व्यक्तिगत स्नानागारों के अतिरिक्त सामूहिक स्नानागारों की भी व्यवस्था थी।
      
मकानो में ड्रेनेज का पूरा प्रबंध था और मकानों के नालियां नगर की मुख्य नालियों से मिलतीं थीं। 
                               भोजन 
भोजन में गेहूं , जौ , साग सब्जी , दूध , मांश , मछली, फल , भांग , गन्ने का प्रयोग होता था।
 
                                  वस्त्र 
वस्त्रों में कपास  उपयोग शुरू हो चुका था।  उन , चमड़े , छालों का प्रयोग भी वस्त्रों के लिए होता था।
                              पालतू जानवर 
पालतू जानवरों में गाय , बैल , भेड़ , बकरियां , भैस , हाथी और कुत्ते पाले जाते थे। संभवतया चिड़ियाएँ भी पाली जाती थीं।
                              उपकरण 
अधिकाँश उपकरण मिट्टी , लकड़ी व ताम्बे के बनते थे।  लोहा का प्रयोग शुरू नही हुआ था हुआ था। कांसे के उपकरण भी बनते थे। मिट्टी के बर्तन चाक से बनाये जाते थे।  मिट्टी के उपकरणों को भट्टी में पकाने की विधि उपयोग होती थीं।
                             परिहवन 
बैलगाड़ी का उपयोग शुरू हो चुका था। पशुओं और मनुष्यों द्वारा भार बहन होता था। जलमार्ग व समुद्री मार्ग भी प्रयोग होते थे।
                 नाप तौल और विनियम 
नाप तौल के लिए बाटों का उपयोग होता था।  विनियम के लिए कौड़ी व सोने की आहत मुद्राएं प्रयोग की जाती थीं।
                     सामजिक विन्यास 
समाज में चार वर्ण थे -
 १-शिक्षित समाज उच्च समाज 
२-सैनिक 
३- शिल्पी व व्यापारी 
४- दास या सेवक 
दास सभ्यता मुख्य सभ्यता बन चुकी होगी। 
              मूर्ति और लिपि 
कांसा और ताम्बे व मिट्टी की मूर्तियां रचना का कार्य आरम्भ हो चुका था।  मुहरों का भी प्रयोग होता था।  मिट्टी के खिलौने भी अवशेषों में मिले हैं। लिपि के बारे में इतिहासकारों के मध्य बहुत अधिक मत मतांतर हैं। 
कुछ द्रविड़ भाषा को सिंधु -हिंदु सभ्यता भाषा के साथ जोड़ते हैं तो कुछ अन्य भाषाओं के साथ जोड़ते हैं।
                    निवासी 
उत्तर भारत के ताम्र उपकरण अवशेषों से मानव कंकाल नही मिले हैं। मोहनजोदाड़ो समाधियों से  नरकंकालों से निम्न मान के लक्षण मिले हैं -
१- कॉल मुंड 
२- रोमसागरीय या द्रविड़ 
 ३-किरात 
४- खस 
अनुमान किया जाता है कि अधिसंख्य जनसंख्या का संबंध द्रविड़ मानव से था और चारों जातियां आपस में विवाह सबंध स्थापित करते थे।  किसी एक जाति को सिंधु -हिंदु सभ्यता विकास का श्रेय नही दिया जा सकता है।
                 शव संस्कार विधियां 
सिंधु -हिंदु सभ्यता में शवदाह की तीन विधियां प्रयोग में रही होंगी -
१- समाधि देना और समाधि के साथ बकरे  मांश रखने की प्रथा भी थी। मोहनजोदाड़ो में शवों के सर उत्तर की और रखे गए हैं और मिट्टी के बर्तन भी रखे मिले हैं। शवों के पास आभूषण व सौंदर्य प्रसाधन सामग्री भी रखी मिली है। शायद शव पर  लेप लगाने का भी रिवाज भी था।
२- अर्ध समाधि - अर्ध समाधि में  शव को चिड़ियों से नुचवाया जाता था।  
३- शव जलाना 
                          उपासनालय 
सिंधु -हिंदु सभ्यता में शायद मंदिर या उपासनालय  शुरू हो चुकी थी। यद्यपि उपासनालय नही मिले हैं। 
                वृक्ष पूजा 

सिंधु -हिंदु सभ्यता में वृक्ष पूजा शुरू हो चुकी थी।
                   पशुपति ताबीज 
    शिव का प्रारम्भिक रूप की पूजा शुरू हो चुकी थी।  नाग विभूषित शिव उपासना के लक्षण भी प्राप्त हैं। 
लिंग पूजा सामन्य प्रथा बन हो चुकी थी.
पशु शायद देव रूप में भी पूजे जाते थे। 
ताबीज प्रथा प्रारम्भ हो चुकी थी।
            पुनीत पशु 
  पशुओं में बाघ , हाथी बैल और भैंसो को पुनीत स्थान प्राप्त।  था. नाग पूजा  प्रसार हो चुका था।  
घड़ियाल , घोंघा , कछुआ को भी पूजा जाता था। 
जल को देवता श्रेणी प्राप्त हो चुका था। 
देवी -देवताओं को पशु बलि से प्रसन्न करने की प्रथा  थी. 
उस समय की अधिसंख्य विश्वास आज भी प्रचलित हैं।
मातृ देवी पूजन भी प्रचलित थी।   

 
Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India 20 /12/2014 


Contact--- bckukreti@gmail.com 
History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 33           

(The History of  Haridwar, Bijnor , Saharanpur write up is aimed for general readers) 

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