Alpanoid Race in Context History of Haridwar, Bijnor and Saharanpur
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में खश जाति
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर की नृशस शाखाएं -एक ऐतिहासिक विवेचन -14
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -23
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India , 7/122014
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में खश जाति
Racial Elements in Haridwar, Bijnor, Saharanpur Population of Prehistoric Period-14
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -23
History of Haridwar Part --23
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
खश /खस जाति (Alpanoid Race) पश्चमी -स्थूलकपाल नृशाखा )Bra -Chychephals ) के तहत एक नृशाखा है।
खश जाति का आगमन भारत में मोहनजोदाड़ो या आर्य संस्कृति से पहले हो चुका। याने खश /कस्सी जाति जाग्रौस पहाड़ियों से निकलकर ईसा पूर्व तीन हजार साल पहले भारत आ चुके थे।
खश जाति का आगमन भारत में मोहनजोदाड़ो या आर्य संस्कृति से पहले हो चुका। याने खश /कस्सी जाति जाग्रौस पहाड़ियों से निकलकर ईसा पूर्व तीन हजार साल पहले भारत आ चुके थे।
खश जाति की दो शाखाएं
ईरान अफ़ग़ानिस्तान पठार से खश जाति की एक शाखा पूर्व की ओर बढ़कर हिमालय की ढालों पर छ गयी। यह शाखा कश्मीर से हिमाचल , उत्तराखंड से होकर नेपाल तक फ़ैल गयी।
दूसरी शाखा पंजाब के रास्ते गंगा के मैदान से होकर गंगा डेल्टा तक पंहुच गयी।
खश जाति का शारीरिक विन्यास
अपेक्षाकृत ऊंचा आकार , सीधी -लम्बी नाक , चौड़ी छाती , गेहूंवा -गोरा रंग , मूछों व दाढ़ी में प्रचुर बाल , हृष्ट -पुष्ट शरीर खश जाति की विशेषता थी। आर्य जाति के समक्ष होने से खश जाति की पहचान मुश्किल हो जाती है।
प्राचीन इतिहास में खश जाति
प्राचीन साहित्य में दोनों मैदानी व पर्वतीय खश जाति को एक ही जाति माना गया है इस जाति का नाम काशि या कुश भी माना गया है और यह जाती उत्तरप्रदेश , बिहार , मध्य प्रदेश गुजरात तक फैली थी।
महाभारत में काशी व अपर काशी दो जनपदों का उल्लेख हुआ है (भीष्म पर्व ९/४२ ). काशी/कुश नाम से जुड़े कई स्थानो के नाम महाभारत में मिलते हैं। द्रोणपर्व व उद्योगपर्व से विदित होता है कि कुरुक्षेत्र युद्ध में दुर्योधन की ओर से अनेक दिशाओं से आकर कई खश राजा व खश सेना लड़े थे । महाभारत अध्ययन से पता चलता है कि धृतराष्ट्र , पाण्डु व विदुर खश संस्कृति से प्रभावित थे।
उत्तराखंड , हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर में खश जाति आगमन
यह निश्चय पूर्वक नही कहा जा सकता कि उत्तराखंड की पहाड़ियों , भाभर , बिजनौर , हरिद्वार व सहारनपुर में खश जाति ने कब व कैसे प्रवेश किया। यह बतलाना भी कठिन है कि क्या पहाड़ी खश व मैदानी खश एकी समय में आये। जो भी हो किन्तु यह तय है कि खश बिजनौर , हरिद्वार , सहारनपुर में इसाकल से दो ढाई हजार साल पहले और हड़प्पा संस्कृति से हजार साल पहले आ पंहुचे थे।
खश जाती के शब्द उत्तराखंड , नेपाल , हिमाचल भाषाओं में मिलने से संकेत मिलते हैं कि खश जाति ने बिजनौर , हरिद्वार और सहारनपुर में अपने पैर पसारे थे।
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India , 7/122014
History of Haridwar to be continued in हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग 24
(The History of Haridwar, Bijnor , Saharanpur write up is aimed for general readers)
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