डा . बलबीर सिंह रावत
[ उत्तराखंड में कृषि पर्यटन; गढ़वाल में में कृषि पर्यटन; कुमाऊं में कृषि पर्यटन; पौड़ी गढ़वाल में कृषि पर्यटन; रुद्रप्रयाग गढ़वाल में कृषि पर्यटन; चमोली गढ़वाल में कृषि पर्यटन; टिहरी गढ़वाल में कृषि पर्यटन; उत्तरकाशी गढ़वाल में कृषि पर्यटन; देहरादून गढ़वाल में कृषि पर्यटन; हरिद्वार में कृषि पर्यटन; उधम सिंह नगर कुमाऊं में कृषि पर्यटन; रानीखेत कुमाऊं में कृषि पर्यटन; हल्द्वानी कुमाऊं में कृषि पर्यटन; नैनताल कुमाऊं में कृषि पर्यटन; अल्मोड़ा कुमाऊं में कृषि पर्यटन; चम्पावत कुमाऊं में कृषि पर्यटन; द्वारहाट कुमाऊं में कृषि पर्यटन; बागेश्वर कुमाऊं में कृषि पर्यटन;पिथौरागढ़ कुमाऊं में कृषि पर्यटन लेखमाला]
हमारे देश में अब शहरों में ही पैदा हुई तीसरी चौथी पीढी के लोगों की संख्या बहुलता में है और वे जानना चाहते हैं की जो भोजन वे खाते हैं जिस दूध को पीते हैं, वह कहाँ और कैसे पैदा होता है? इस लिए वे गाँव में जाने, रहने और फ़सलों की कटाई, फलों की तुडाई, बिनाई में शामिल होने की इच्छा भी रखने लगे हैं .इसी इच्छा की पूर्ति के लिए कृषि पर्यटन का आयोजन किया जाता है. जहां विदेशों में ऐसा पर्यटन अंगूरों के लम्बे चौड़े फैले बागानों में अन्गूर्रों की बिनाई, रस निकलवाई और वाइन बनाने की प्रक्रिया में शामिल होने के' और बियर महोत्सवो के आयोजनों के अवसरों पर होता है, हमारे देश में हमें अपनी विशिष्टताओं के अनुरूप ही इस दिलचस्प और नए तरह के पर्यटन को प्रचलित करना पडेगा .
उत्तराखंड में ऐसे पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, और इसके प्रचालन के लिए दो प्रकार के व्यवसायों, कृषि उत्पादन और टूरिज्म,को मिला कर तिगुना लाभ लिया जा सकता है.
1. कृषि में ऐसी फसलें उगाना जो बाहर से आने वालों को आकर्षित करती हैं, जैसे, स्ट्रोबेरी के लम्बे दूर तक फैले खेत, सेव, खुमानी, नाशपाती, आडू , आलूबुखारा, चेरी, शहतूत के पूरे के पूरे गावोँ में फैले बागान, नई फसलों में हिन्सालू (केसरिया उर जामुनी रंग के) किन्गोड़े, करोंदे , ब्लू बेरी, हेजल नट, जैतून, अंगूर इत्यादि की खेती। इन फलों को तोड़ने, साफ़ करने, इनके रस निकालने/जेम बनाने और पेकिंग की सुविधा एक ही स्थान पर हो तो पर्यटक स्वयम, किसी जानकार विशेषग्य की देखरेख में , सारे काम करके, उपज, सामान और सारे अन्य खर्चे दे कर, अपने बनाए पदार्थ अपने साथ घर ले जा सकेंगे ।
2. कृषि पर्यटन अति पलायन के अभिशाप को वरदान में बदल सकता है, अगर प्रवासियों के खेत किराए, लीज या ठेके पर ले कर पर्यटन-आकर्षक कृषि को व्यवसायिक स्तर पर स्थापित किया जा सकता है.
इस के लिए सरकार का ही मुंह ताकने से काम नहीं चलेगा. इच्छुक, साहसी यवाओं को आगे आ कर अपनी, संस्था/ इकाई बना कर वैज्ञानिक रूप से ऐसी कृषि को जन्म देने से ही काम बनेगा .
3. इन्ही प्रवासियों के ऐसे मकान भी किराए पर ले कर पर्यटकों के रहने का अच्छा प्रबंध भी किया जा सकता है. जहां यह संभव न हो वहाँ, बांस के टूरिस्ट हट्स या लॉज बना कर इन बगीचों के बीचो बीच टूरिस्ट कोलोनी बनाई जा सकती है. अगर ऐसे स्थान किसी रमणीक क्षेत्रों में होंगे तो वहाँ पर घुमने, पिकनिक के , संगीत, लोक नृत्य और धार्मिक कार्यक्रम भी किये जा सकते हैं। समीप कोई नदी, झील हो तो सोने में सुहागा.
4. उगाई फसलों के अलावा वनों से बुरांस के फूलों को तोड़कर लाने, रस निकाल कर संरक्षित करके बोतलों, कैनो में पैक करके ले जाने की सुविधा से युक्त केद्रों में पर्यटकों को लुभाया जा सकता है.
5. इस कृषि पर्यटन को अगर ग्रामीण, साहसिक क्रीडा और हनी मून पर्यटन से जोड़ दिया जाय तो नए प्रयटन के इस अवतार से स्वरोजगार के हजारों व्यवसाय कुछ ही सालों में स्वपोषित हो कर नए प्र्वेषियों के लिए प्रशिक्षण केन्द्र बन सकते हैं .
इस समय यह भले ही एक सकारात्मक कल्पना की उड़ान लगता रहा हो , लेकिन यह सम्भव है और किसी कर्मठ सृजनशील और कल्पनाशील व्यक्ति/संस्था की बाट जोह रहा है. इस से पाहिले की कोइ निजी उद्यमी बाहर से आ कर यह सब कर डाले , उताराखंड के ही नवयुवा आगे आयेंगे तो अनेको संस्थाए/ सरकारी विभाग उनकी साहयता, मार्गदर्शन, और प्रशिक्षण और स्थापन के लिए आगे आ सकते हैं, सरकार को भी मनाया जा सकता है, कोइ पहल तो करे.
6 . कालान्तर में इस में भेड़ों की उन कटाई, उन की धुलाई, रंगाई, मधुमक्खी के छत्तों से शहद निक्लाई, सफाई इत्यादि के और अनेकों अन्य तरह के मेले भी इस से जोड़े जा सकते हैन. आवश्यकता है खुले मन से, आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने की . और यह नेक काम युवा आसानी से कर सकते हैं .
Copyright@ डा . बलबीर सिंह रावत
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