आवा ! जरा गढ़वाळी मा चबोड़, चखन्यौ मा , कैको ठट्टा लगैक, हौंसी लीन्द्वां
बोलिक, स्वांग कौरिक या लेखिक कै तैं हंसाण हंसणो काम नी च. हंसाण बड़ो गम्भीर काम च अर जणगरा , हुस्यार, तंत जबाब्या(प्रत्युतपमति), नि- डरख्वा,शंद्बों खिलंदेर नि -शर्माणवाळ इ कै तैं हंसे सकुद/सकदी. हंसाण गम्भीर लोगूँ काम च.
हंसी वी सकुद जु ज़िंदा दिल ह्वाओ. वी लोकुं तैं हंसी सकुद जु अफु पर बि हौंस सकदो अर अपण बि ठट्टा लगै साको . मुर्दार बाणो मनिख कबि बि नि हंसै सकदो.जब भीष्म कुकरेती मा लिखणो हिकमत ह्वाओ बल कुकरेत्युं खुणि कुकुर बि बुल्दन या बुलणो त नाम भीषम च अर अपण बात पर एक घड़ी बि नि ठैर सकदो तसमजी ल्याओ बल भीष्म कुकरेती हंसै सकुद च .
हंसांद दैञ या हंसद बगत हमारि संस्कृति का मूल्य बि बदली जान्दन.
सबसे निश्छल हंसी बच्चों की इ होंदी जु अवांछित, अप्रसांगिक, ट्याड़ो- बांगा, ध्वाका, छगटण (ठ्ग्याण), चचगण (अचाणचक खौल़ेण) जन स्तिथि मा बि निश्छलहंसी हौंस सकदन.
डा जारविस क हिसाब से व्यंग्य पुटुक फाड़दो त हंसी चित्र बणान्दी .
बैक लोक बिंडी हुस्यार होन्दन जो जगा, समौ, संस्कृति , बरग (वर्ग) , जाती देखिक इ हंसदन.
हौंस कथगा इ तरां क होंद जखमा व्यंग्य बि आंदो .
१- सिखंदेर फब्ती /ठट्टा - जब क्वी मजाकिया/चबोड्या चबोड़ इ चबोड़ मा क्वी सीख बि दे द्युंदो त वा चबोड़ सिखंदेर चबोड़ मा आली. जन कि - लोखुं तैं शराब निपीणै सल्ला-मशवरा दीण चयेंद . ना! ना ! कत्तै ना, लोक फोकट मा बितकी जान्दन .
२- उपाख्यानी या बिरतांति/व्यास शैली ठट्टा /चबोड़ - कें जणि मणि घटना या मनिख/मनिखेण को उदारण दिए जाव त वै ठट्टा लगाण तैं बिर्तान्ति चबोड़ बुलेजांद जन की 'अरे ओ साम्बा ! ड्याराडूण मा अडवाणी क जन सभा मा कथगा आदिम छया ? पाँच सौ या द्वी सौ?' या ' अरे ओ साम्भा ! बाबा रामदेव, डौरन इजन्यान्यूँ साड़ी -बिलौज पैरदन या योग सिखांद दें बि ..' या " अरे ओ साम्भा ! जैबरी बाबा राम देव भगणा छ्या त वूंन जनान्युं साड़ी-बिलोज इ पैर्युं छौ की पुटुकजनानी ब्रा वगैरा बि ?"
३- बुलण बेटी तैं सुणौण ब्वारी तैं - या कौंळ स्वांगुं मा दिखे सक्यांद जब क्वी चरित्र दिखंदेरुं तैं देखिक बोल्दो अर दगड़ो चरित्रुं से क्वी मतबल नि होंद. कें सभा माबुलंदेर बि इनी करद कैं बात पर बुल्दो अरे मि बिसरी गे छौ जन की " हाँ त मि बुलणु छौं बल
कोंग्रेस का राज मा भौत सा भ्रस्टाचारी घपला ह्वेन जन की ए.राजा, कलमाड़ी . हाँ ! हाँ ! निशंक राज की बात मि बिसरण इ चांदो , अब ओ क्या च कि ...अपण गोरोपैना सिंग ....अर निशंक जी रिश्तेदार बि छन त अपण बिराणो ख़याल रखण इ पोडद . ."
४- सवाल्या -जबाब्या चबोड़ -- इखम द्वी मनिख एक हैंकाक दगड / आपस मा चबोड़ इ चबोड़ मा जबाब दीन्दन. जन कि एक दिन मि तैं साहित्यकार चबोड्या धनेशकोठारी , पूरण पंत दगड़ी मीली गेन. मीन धनेश कोठारी तैं सुणैक ब्वाल, " हाँ ! जी कोठारी जी ! अच्काल त तुम पूरण पंत जन बड़ा व्यंग्यकार पर बि खैड़ा मारणाछंवां ( व्यंग्य कसणा छ्न्वां ) ?"
धनेश न झट से म्यार खुटुन्द झुक्दा झुक्दा ब्वाल, " ह्व़े ! गुरु जी ! मि त आपको इ च्याला छौं , मिन आप मांगन इ सीख बल अपण बुबाजी उम्रौ, सयाणोसाहित्यकार बी.पी. नौटियालौ बीच बजार मा कन बेज्जती करण ."
५- पुराण व्याख्यान से उप्ज्युं चबोड़ - जब कै नामी मनिखो/ मनिख्याणि उदारण देकी क्वी नै परिभाषा गंठे जावु. जन की , " भग्यान कवि कन्हया लाल डंडरियालसंसारौ सुखी मनिखों मा एक मनिख छया किलैकि डंडरियाल जी जूत्त नि पैरदा छया ." या " पूरन पंत : एक निहायती भलो मनिख छन , जौंक दुनया मा क्वी बिदुश्मन नी च अर एक बि दगडया इन नी च जु पूरन पंत तैं पसंद करदो ह्वाऊ !"
६- विरोधी शब्दों से हौंस या चबोड़ करण; जब द्वी या बिंडी एक हैंकाक विरोधी शब्द या आणु /मूवावरों से चबोड़ करे जावू. जन कि ' जब हम कैक बारा मा जादा इसुचदवां त हम वैका बारा मा मा कम इ सुचदवां".
बच्युं निर्भागी, मर्युं भग्यान
७- शब्दुं मिळवाक---जब द्वी शब्दों तै मिलैक नै शब्द गंठये जाओ अर वां से चबोड़ करे जाओ त चबोड़औ मजा इ कुछ हौर हुंद . जन बल -
मसूरी मा नामी साहित्यकार रस्किन बोंड सुबेर बिटेन डाक्टर मा जयां छ्या अर इख ऊंका दगड्या अंग्रेजी क साहित्यकार गणेश शैली ततलाट (डौर ) मा छ्या बलकुज्याण बुड्या तैं क्या ह्व़े धौं.
दुफरा परांत रस्किन बोंड ड़्यार आई अर गणेश शैली न पूछ, " बोंड साब ! क्या ब्वाल डाक्टर न ?"
रस्किन बोंड को जबाब छौ, " कुज्याण भै गणेश , क्वी नै बीमारी च . बिलफौर्गेट्याण.. "
गणेश शैली न डाक्टर तैं फोन मा पूछ, डाकटरो जबाब छौ, " गणेश ! डोंट वरी . रस्किन हैज स्टार्टेड हैबिट ऑफ़ फौरगेटिंग बिल्स ड्यू फॉर पेमेंट. बाई दिस वीक एंडही विल बि ओ.के . "
अब गणेशै हंसणै बारी छे . असल मा रस्किन बोंड न बिल अर फौरगेटिंग द्वी शब्दुं तैं जोडिक एक नयो गढ़वाळी शब्द गंठयाइ - बिलफौर्गेट्याण.
८- बिचकीं विषयूँ चबोड़ : जब रति , सम्भोग, , सरैल़ो क्वी अंग; या कै पर जबरदस्त आक्षेप का शब्दों से चबोड़ करे जाऊ. सभ्य कछेड्यु मा इन चबोड़ करण निचयेंद. हाँ जब जरोरी ह्वाऊ त बड़ो तजबिजन चबोड़ करण चयेंद . दुन्या का बड़ा चबोड्या कवियूँ मादे एक कवि, गढ़वाळी क नामी गिरामी साहित्यकार ललितकेशवान की एक कविता ' घूंड बि हिले' कुछ कुछ इनी च पण साफ़ सुथरी च .
एक झण .संतान प्राप्ति बान मातमा क ध्वार गे. . मातमा न पुडिया खाणो दे अर दगड मा यो बि ब्वाल
ल़े या पुडिया च
सुबेर श्याम
पाणी मा घोळी , पिलै
पर हाँ
कखी तू
याँकै भरोसां नि रै
ज़रा
अपणा घुण्ड बि हिलै
अब यीं कविता मा अपणा घुण्ड बि हिलै कति बिम्ब पैदा करदी पण हौंस अर चबोड त भौत च हैं!
जण्या मण्या चबोड्या कवि पूरण पंत की या कविता ...
अपणि ब्व़े का मैस/
होला वो/
जो,
हमारी जिकुड़ी मा
घैन्टणा रैन
घैन्टणा छन .....
जन कविता बि अलग अलग बिम्ब पैदा करदी
अर मधु सुदन थपलियाल की वीं गजल न त गढ़वाळी समालोचना मा घपरोळ इ मचै दे जैन मा मधुसुदन जी न ल्याख बल " दुद्लों कील ....."
अर हाँ ! गढ़वाळी लोक गीतुं सरताजी गीत क्या बुल्दो , जरा दिखला धौं !
मोती ढान्गु , हळस्यूं देखिक लमसट ल्म्सत ह्वेई जान्दो
अर नौली नौली कलोडि देखिक वो चम्म खड़ो ह्व़े इ जान्दो
९- अजाक्या हिसाब - कबि कबि नासमझी मा बि कुछ ह्व़े जांद अर चबोड़ -हौंस ह्व़े जांद
एक अजाण मनिख घर की गुसैणि खुण बुलद- ये दीदी में से भारी गलती ह्व़े गे. मीन चार पांच लुखों कुण बोली दे बल ये ड़्यारम क्वी डरख्वा रौंद .
वा जनानी - ऊँ ! त इखम अणमणो (बेचैन) होणे जरोरात क्या च. लोक इनी त समजल बल म्यार ह्ज्बेंड डरख्वा च.
या इन बि त ह्व़े जान्द बल -
एक मनिख कोटद्वार मा पौड़ी बस पकड़णो बान जगता- सगति मा एक बस का पैथर अटकिक बस पकड़दो, बस पकड़द दीं वैक घुण्ड फूटी जान्दन . बस मा बैठणोबाद पता चलदो बल बस त षौड़ी (ऋषिकेश ज़िना ) जाणि च अर साइन पट्टिका मा षौ असल मा पौ दिखयाणो छयो .
१०- मंद बुध्युं छ्वीं - जब क्वी सवाल कारो अर मंद बुधि का अजीब जबाब ह्वाओ त हौंस आई जांद
नौंनु - ए ब्व़े म्यार मुंड फूटी गे .
ब्व़े- ह्यां ! कनकैक फुट त्यार मुंड ?
नौनु - वो क्या च म्यार बैरी सूनु गोर उज्याड़ नि खावन का बान लोडि चुलाणो छौ.
ब्व़े- त वै निर्भागी सूनु न त्वे पर बि लोड़ी घुरै ?
नौनु - ना ना , सूनु बुबाक तागत बि च जु में फर लोडि घुरावो !
ब्व़े - त ?
नौनु - त क्या! मी चांदो छौ बल सूनु क गोर उज्याड़ खाणा इ रावन अर ऊन फर लोडि नि लग .
ब्व़े - ह्यां पर इन मा त्यार मुंड कनकैक फुटु ?
नौनु- मीन लोड़ीयूँ अर गोरुं बीच अपुण मुंड कौरी दे
११- अजीब मुंडळी/ शीर्षक - अच्काल क्या भरत मुनि क बगत पर बि अजीब अजीब शिर्श्कुं रिवाज ठौ जन से पैलि हौंस ऐ जाओ. गढवाळ मा बादी त ठाकुर तैंमिल्दा इ बुल्दा छया, ' समनैन ठकुरो ! तुमर मुंड मा बखरो "
या अच्काल मैं जन लिख्वार अपुण लेखौ मुंडळी इन बि त धौरि सकद -
आज खबर सार अख्बारौ तत्वाधान मा पौड़ी मा मुर्ग्युं अंडा दीणो प्रतियोगिता ह्व़े . पल्ली मुल्को हिजड़ा क मुर्गी न प्रतियोगिता जीत .
पौड़ी जच्चा-बच्चा हस्पतालों मा बच्चों बाढ़ अर पौड़ी मा तीन दिन बिटेन पाणी नि आई
श्रीनगरौ कन्क्लेश्वर मंदिरौ पास सुंगरूं बच्चों बाढ़ पण अलकनंदा को पाणी घटी गे
१२- स्कुल्या छ्वारों जबाब- कबि कबि स्कुल्या छ्वारा सवालूं जबाब गलत दीन्दन जु अरथौ कुनर्थ बि कौरी दीन्दन.
सवाल छोऊ- पृथ्वी किलै गोळ च ?
ठुपरी बि गोळ च
थकुल बि गोळ च
पर्र्या बि गोळ च
जंदुर बि गोळ च
इलै पृथ्वी गोळ च
मास्टर जी क जबाब छौ बल -
हाँ ! ब्य्टा .
जब सौब चीज गोळ छन त ..
त्यार नम्बर बि गोळ छन
13- छ्वटा-छ्वटा शब्द या वाक्य - कबि कबि भौत सा छ्वटा छ्वटा शब्द हंसी बि सकदन. जन कि अच्काल चुनौ टैम पर बूट पौलिस कि भारी अकाळ पोड़ी गे . हरेकछ्वटु-बडु नेता हर घड़ी अपण इमेज बूट पौलिस से चमकाण मा लग्यां छन .
१४- ढस्का लगाण वाळ वाक्य - हाँ कबि कबि जब इन लिखे जौ बल " मेरी गाणि च, स्याणि च की मी अपण दाह संकार मा शामिल ह्व़े सौकूं " " जिन्दगी मा वीमनिख सुखी च जु अबि तलक जन्मी इ नी च "..
१५- उळज्यां शब्दुं से व्यंग्य : जब कबि वकालाती भाषा मा या डॉक्टरी भाषा में रच-पच ह्व़े जाओ त कबि कबि व्यंग्य त ह्वेई सकदो
एक गैरेज मालिकौ काम करद दें अंगुळी कटि गे वो डाक्टर मा गे . डाक्टर न गैरेज मालकौ जाँच कार अर ब्वाल, " ओह ! इं अंगुळी पर एक्सटरनल प्रेसुर से जोरपोड़, हड्डी वै भार तैं नी सै सकीन अर दगड मा भैर बिटेन बैक्टेरिया, वाइरस को भौत बड़ो हमला बि ह्व़े ....." फिर डाक्टर न बडी फीस मांगि दे.
तीसर दिन डाक्टर अपण कारौ एक फटयूँ टायर लेकी गैरेज गे, गैरेजो मालिकन टायर द्याख अर ब्वाल," वो हो ! रबर का मौल्युक्युलूं पर फौरेन मैटर अर इन्टरनलमैटर से भारी बहार से टायर खराब ह्व़े दगड मा ग्लू का केमिकल बैलेंस भौति बिगड़ी गे, एक चिपकण्या ऐटम हैंक चिपकण्या कम्पौंड से दूर इ रौण इ चाणु च .."
डाक्टर बींगी गे कि गैरेज मालक वैकी नकल करणों च .
१६- बढ़याँ-चढ़याँ शब्दुं / अतिशयोक्ति से उपज्याँ हौंस- व्यंग्य- बढ़याँ-चढ़याँ शब्दुं से हंसाणो ब्यूँत /तरीका हौंस/व्यंग्य करणो आम ब्यूँत ब्युंत च .
गढ़वाळी लोक गीतुं अर आणो मा त आतिशयोक्ति की भरमार च
सबसे म्यार मोती ढाण्ग
सौ रुप्यौ क सींग अर नौ रुप्यौ मोती ढाण्ग
या अबोध बंधु की या कविता तैं इ बांची ल्याओ
छै मुखौ त एक नौनो
हैंको हाथी , पंचमुखी खुद
अन्नपूर्णा भलौ रै गे
तुमारि घरवाळी , निथर -
भीष्म कुकरेती, पूरण पंत, धनेश कोठारी जन चबोड्या गद्यकारों न अपुण चबोड्या गद्य मा बढ़याँ चढ़याँ शब्दुं से चाबोड़ कार अर हंसाई बि च
भीष्म कुकरेती क एक लेख को उदारण
ओहो ! मंत्री जी खुटो ढाल इथगा टैट ह्व़े गयो बल सरकार तैं टेंडर छपाण पोड़. ढाल खदानो ठेका मंत्री जी क स्याल़ू तैं इ मील इ छौ अर तीन सौ मजदुरूं मदद से अरगैंती , कूटी अर सब्बलूँ से ढालो पौ खतये गे, बिल्चा, फाल़ू से मवाद भैर गाडे गे...
१७- जंजीर जन वाक्य - .कबि कबि व्यंग्यकार कै लेख मा एक खास विषय का शब्दुं भरमार से अपण काम निकाल्दो . जन कि
पोलिटिकल स्टेडियम मा राजकरण्या खेलौ कमेंटरी
अररर.. अररर.... सी उत्तराखंड कोंगेस का अनुभवी बौलर हरीश रावत न भ्रस्टाचारौ भगारौ /लांछनौ बौल भाजापा का छ्का-पंजाबाज रमेश निशंक ज़िना चुलाइ.बौल इथगा घातक च कि निशंक न शर्तिया आउट होण . पण नै ... नै डा निशंक को छक्का -पंजा अनुभव काम आई अर निशंकन पी.चिदरम अर शीला दीक्षित कीआळी - जाळी, जफ्फी वळी स्टाइल मा हरीश रावत की भ्रष्टाचारी भगार से भरीं बौल तैं लीगल बौंडरि से भैर कौरी दे. हड़क सिंग , सतपाल महाराज जन पौंच्याँफील्डर दिखदा इ रै गेन. सबी लोक कोंगेस की सेलेक्सन कमेटी तैं गाळी दीण बिसे गेन..भाजापा की तिकड़मी बौलिंग का समणि अब अमृता रावत ऐ गेन जु .अमृता रावत का पैड, चेस्ट प्रोटेक्टर अर एल्बो प्रोटेक्टिंग पैड सतपाल महाराज न अफिक सिलेन अर अमृता का वास्ता कवच -कुंडल का काम करदन. (भीष्मकुकरेती क पोलिटिकल स्टेडियम मा राजकरण्या खेलौ कमेंटरी लेख से बगैर इजाजत का लियुं )
१८- कै बड़ो अदिमौ प्रसिद्ध वाक्यों की पैरोडी - भौत सा टैम पर व्यंग्यकार या हंसाण वाळ कै बड़ा अदिमौ बुल्यां क पैरोडी से व्यंग्य पैदा करदन जन कि-
अब जन कि उन त तुर्कयड्यो कठगी गुस्सैल अर भम्म भड़कदी , कुंळै पिळउ जन या ब्वालो अग्यो जन गाळी दीन्दी, तिड़कद दें इन उना चिनगारी फैलांदी अर हरघड़ी कैक बि दगड लडै करणों तैयार रौंदी. पण वै दिन जब स्यूण जन बरीक तुर्कयड्यो कठगी क बांज का ग्व़ाळ से चुल्लो रूपी कुस्ती अखाड़ा मा मुखाभेंट ह्व़े ततुर्कयड्यो कठगी न हाथ जोड़ी ब्वाल," मी त मात्मा गाँधी क भक्त्याण छौं . मेरो सिद्धांत च - अहिंसा परमो धर्मो "
हरीश जुयाल न कथगा इ संस्कृत सूत्रों की पैरोडी भौत इ बढिया दंग से करीं छन
--------विद्यार्थी --------
मैच चेष्ठा ब्वगठ्या ध्यानम, सुंगर निंद्रा तथैव च
डिग्ची हारी , किताबी त्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणम
१९- आण /भैणा जन पहेलीदाररिंगाण वाळ वाक्य - कबि कबि लछेदार /रिंगाण वाळ सवालूं जबाब बि रिंगाण वाळ, भरमाण वाळ वाक्यों से दिए जांद अर हास्य पैदाकरी लीन्दन . जन कि
बल्दों गौळउन्द घांडी किलै बंधदन ?
द, ल़े लगा बल सुंगरूं दगड मांगळ , अरे बल्दों सींग बाच नि गाडी सकदन ना !
२० जंजीरी कथा - इन कथा जादातर भौति पुराणि लोक कथों मा पाए जांद जखमा एक वाक्य हैंको वाकया से जुड्यु रौंद . जन कि
राजकुमारी क घवाड़ो नाळऔ कीलौ बान घवाड़ो नाळ हाथ से ग्याई. घवाड़ो नाल़ो बान घवाड़ो हथ से गे .घवाडा बान घुडसवार हाथ से गे. घुडसवारो बान लड़ाई हारे गे. लडै बान राजपाठ अर राजकुमारी हाथ से गे .अर यू सौब ह्व़े राजकुमारी क घ्वाड़औ
नाळऔ कीलौ बान. (एक अंग्रेजी कथा से )
२१- आपस का अनुभवुं कथा - कबि कबि कुछ वाकया इन होन्दन जु अपण इ समाज , अपणा मुन्डीत , अपणा गाँव या अपणा इ ग्रुप मा बोले जान्दन किलैकि हौरुंसमज मा वो हास्य पैदा कौरन या हौंस पैदा नि कारला की क्वी गारेंटी नि होंदी जन कि
एक दिन मी अर म्यार खास दगड्या कोलेज ज़िना आणा छ्या कि समणि बिटेन एक रूंड , कर्करो अर दाण्या प्रोफ़ेसर दिखें , मया दगड्या न हाथ जुड़दा जुड़दाब्वाल, ' क्या बै अपण ब्व़े क मैसु, क्या बै रीठै दाणि, क्या बौ रुंड -गुंड ...". प्रोफ़ेसर पुळयाणु छौ बल च्याला चांठी सिवा लगाणा छन अर हम पुळयाणा छया बल हममास्टर तैं गाळी दीणा छया.
२२- क्वी लोक कथन लोक, मुहावरा हौंस, व्यंग्य का रूप मा प्रयोग होन्दन- कबि कबि लोक मुवावारा चबोड़ पैदा करणो बान लिखे जान्दन या बुले जान्दन. जन किकन्हयालाल डंडरियालै छ्वटि कविता
बच्युं निर्भागी अर मर्युं भग्यान
या
मनिख दुन्या से सद्यानो बान जुद्ध ख़तम करणो बान रोज युद्ध करणा रौंदन
२३- मुहावरों तैं तोड़ मरोड़ण से हौंस-व्यंग्य - कबि कबि पुराणा मुवावारों तैं मरोड़ीक बि हौंस या व्यंग्य पैदा करे जांद . जन कि
रोज एक सेब डाक्टर तैं दूर रखदो अर रोज एक मुळी या प्याज सब्युं तैं दूर रखद
२४- दुसरो मुख बन्द करणो वाक्य- कबि क्या हमर जिंदगी मा लोक इन सवाल पुछ्दन जो अजीब क्या बेतुकी होन्दन अरहम ऊंका सवाल बड़ा तजबिज से दींदवांपन कबि कबि मजाक मा इन बि होंद -
अच्हा ! त तू ऐ गे ?
ना, अबि त म्यार छैलु आई , मि त थ्वडा देर मा औंलू
२५- बेढंगा तुक - अपण अपण प्रोफेसन मा कुछ वाक्य बौणि जान्दन अर वो वाक्य शब्दों हिसाब से बेढंगा होन्दन पण वै प्रोफेसन मा वो शब्द या वाकया बड़ा कामका होन्दन . जन कि
एक फिलम डाइरेक्टर कलाकार से - ज़रा मोरणे एक्टिंग मा जोर से जान डाळ या ए मुर्दा मा इथगा जान डाल़ो कि दर्शक मुर्दा तैं इ दिखणा रावन
२६- अलंकारों से हौंस- व्यंग्य- उन हरेक वाक्य मा अलंकार होंदी छन पण च्बोड्या/चखन्यो/ मजक्या व्यंग्यकार जाणि बुझिक कथगा इ अलंकार से वाक्य लिखदन. जन कि
२६ अ- पूर्णोपमा
१- मेरी घरवाळी धुंवा जनि धुपेळी , धुंवा जन आंसू लांदी
२- हौरुं समणि मेरी स्याळी मारदी माछी सी उफाट
मेरी समणि ह्व़े जांद तालौ सी सान्त सपाट
२६ब- लुप्तोपमा
वा, मेरी कज्याण ,बणांग जनि गुस्सैल
अर या मेरी सेक्रेटरी , अहा नौणि जनि चिपळी
२६स- अनुप्रास अलंकार
कज्याण क्या च , करैं जन करकसी आवाज,कुकर जन छकछ्याट,कवा जनि काळी, कुमति कि कोठड़ी, कुटुंब मा इन जन ग्युं दगड कुरफळा ..
२६द- अन्त्यानुप्रास
हरीश जुयाल की कविता -
नि थाम चोर गुंडों का नोट
सही आदिम तैं डे ल़े वोट
पास होणो मंतर सीख
मिक्सी मा ना सिल्वट मा घोट
२६ फ- वृत्यानुप्रास
हरीश जुयालै कविता -
दाळ भात त्यारु
माथ हाथ म्यारू
भूख तीस त्वे खुणि
अन्न पाणी म्यारू
२६जि - पुनरुक्तिप्रकास
हरीश जुयालौ कविता
वाइफ वन्दना
त्वमेव वाइफ लाइफ त्वमेव
फ्यूंळी बुरांस सी टाइप त्वमेव
त्वमेव मेरी नारंगी की दाणि
त्वमेव बांजा की जलड्यू क पाणी
२७- प्रतीकुं से हौंस-चबोड़ - प्रतीकुं से हौंस-चबोड़ त पुराणो जमानो से हूणो च . जानवर या कै बस्तु को मानवीकरण करण से बि हौंस या व्यंग्य रचे जांद . गढ़वाळीमा जैपाल सिंग रावतक प्रतीकुं से व्यंग्य कविता गंठयाणो बान प्रसिद्ध च. छिपडु ददा रावत को प्यट चरित्र च .
२८- मुसक्या मार - उन त जादातर व्यंग्य मुसक्या मार इ छन पण कबि कबि कैकी साफ़ सुथरा ढंग से बेज्जती करण मा ख़ास जोगध्यान दिए जांद
जन कि क्वी मनिख सभा सोसाइटी मा देर से इ आवो ता वैकी बड़ें इन बि ह्व़े सकदी
हाँ जी ! हम स्वागत करदां अपण प्रभु दयाल जी की जु टैम का पक्का पाबंद छन . हमेशा खाश सभाओं मा वो तीन घंटा देर से आन्दन अर आज बि प्रभु दयाल जी नअपण समय पाबंदी का सबूत दे अर प्रभु जी ठीक तीन घंटा लेट ऐन.
२९- भौणै नकल : मिमिक्री मा मिमिक्री आर्टिस्ट कै की भौण, स्टाइल की नकल करद अर लोगूँ तैं हंसाद. घन्ना भै मिमिक्री का बान इ प्रसिद्ध छन.
३० - राजनैतिक अर सामाजिक व्यंग्य- उन यूँ व्यंग्योंक विधान अळगो हिसाब से हुंद पण हुंद यि द्वी अलग अलग अर कबि दुई दगड़ी बि ह्व़े जान्दन. रान्ज्नैतिकव्यंग्य मा नरेंद्र सिंग एगी जी क ' अब कथगा खिल्य रे' या विमल नेगी का ' सबि मिलीक खौला' तीखा राजनैतिक व्यंग्य छन
३२ -जोक्स- जोक्स से त हौंस आँदी च .
एक मंगत्या - ठकुर्याण! कुछ खाणो बण्यु हो त दे दे .
ठकुर्याणि - अरे कख बौण खाणक . सुबेर बिटेन ग्विरमिलाक तलक दगड्याण्यु दगड फेस बुक मा छ्वीं लगैन अर अब फेस बुक का छ्वारा-दगड्या छुड़णा नी छन .अब पकौलू ..
मंगत्या- ठीक च . जब खाणा पकी जालो त मैं तैं फेस बुक मा रैबार दे दियां . फेस बुक मा म्यरो नाम जवान छ्वारा च.
३३ - आखरूं खेल- शब्दुं मेल - असला मा चबोड़, शब्दुं अर आखरूं खेल च जन कि हरीश जुयाल कि या कविता च -
दोस्त था वो मेरा बरमण्ड कच्या गया
ज़रा ज़रा लछ्या के सर्या लछ्य गया
दमल़े उपड़ रहे ठे मैं खुज्या रहा था घ्यू
वो सुरक घ्यू कि माणी में कंड़ळी कुच्या गया
३४ - व्यंग्य बाणु प्रकार - व्यंग्य बाण भौं भौं किस्मौ होन्दन जन कि -
- चमकतळया व्यंग्य
- चुनगेरी व्यंग्य
- बाळ झिंझोडु व्यंग्य
- झीस पुड़ान्दा व्यंग्य
-कांसो जन दुखदाई व्यंग्य
-बांसों कीस जन दुखदाई व्यंग्य
- तम्मखो जन खिखराणि व्यंग्य
-कंडाळी जन झमझ्याट लागौन्दा व्यंग्य
-किस्वळी लगान्दा व्यंग्य
-ब्युंछी लगौन्द्या व्यंग्य
-हिसर जन ट्याड़ा काण्ड पुड़ान्दा व्यंग्य
-किनग्वड़ो काण्ड पुड़ान्दा व्यंग्य
- खुब्ब्या जन काण्ड पुड़ान्दा व्यंग्य
- राम बांसों जन काण्ड पुड़ान्दा व्यंग्य
- किरम्वळ जन तड़काणो व्यंग्य
-सिपड़ी जन रैणी दीण वल़ा व्यंग्य
- चिमल्ठुं जन तड़का दीण वाळ व्यंग्य
-म्वार जन तड़का दीण वाळ व्यंग्य
- रिंगाळ जन तड़का दीण वाळ व्यंग्य
- बेज्जती करंदेरी व्यंग्य
-थ्वडा भौत सैण लैक व्यंग्य
-मुक नि दिखाण लैक व्यंग्य
३५- हौंस मा भाव
भारत मुनि ण नाट्य शाश्त्र मा हास्य रास का बान यि भाव (इमोसन्स) बथैन
१ हास (मुल मुल हंसण, खित-खित हंसण, जोर से हंसण )
२- ग्लानी
३- शंका
४-असूया
५- श्रम
६- आलस्य
७- चपलता
८- निद्रा
९--सुप्त
१०- विबोध/ बिजण
११- अवहित्थ
३६- हौंस कु दिवता 'प्रथम ' च
हौंस अर व्यंग्य पर जथगा बि लिखे जाव उ कम इ च
पण म्यारो मनण च जु बु लिख्युं च वो काम को होलू .
जै प्रथम दिवता की !
Copyright @ Bhishm Kukreti
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