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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, March 5, 2013

बहुपति वाद की आवश्यकता क्यो ?


गढ़वाली हास्य-व्यंग्य
सौज सौजम मजाक-मसखरी
हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
                   बहुपति वाद की आवश्यकता क्यो ? 
                         चबोड़्या-चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ )
अचकाल जखि जावो तखि आर्थिक मंदी, रिसेसन की इ छ्वीं लगणा छन। वैदिन वैको नौनु गुणछ लग अर भौत देर तलक रूणु रयो। मीन नौनो बुबा तै पूछ भै ये नौनु तै चुप करावो। नौनो बुबाक जबाब छौ बल यीं मंदी की भंयकर मारम कनै चुप करौं। यू विदेशी चौकलेटs बान रुणु च जब आर्थिक स्तिथि उच्छाला पर छे त हमन ये तै विदेशी चौकलेट पर ढबै दे अर अब मंदी की मारमा मि विदेशी चौकलेट मुल्याण (खरीदण) लैक नि छौं।

आर्थिक मंदी की मार का कुछ चिन्ह छन जन कि द्रोणाचार्य अपण नौनु अश्वथामा तै दूधो जगा चूनो पाणि पिलान्दो छौ तो वांको अर्थ च महाभारत का वै ख़ास समौ पर आर्थिक मंदी को जोर छौ। मनमोहन सिंह जी अर पी चिदम्बर जी तै महाभारत पड़ण चयेंद बल कनै वै काल मा आर्थिक मंदी खतम ह्वे।उन त भाजापा वळुन त बुलण बल जब पांडु की जगा धृतराष्ट्र हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठ तबी उख आर्थिक मंदी खतम ह्वे।
जब क्वी पैल कुत्ता पळण शान समझदो ह्वावो अर अब कुत्ता इलै बिचणु ह्वावो बल कुत्तों से मनिखों पर कथगा इ बीमारी ह्वे जांदन तो समझि ल्यावो आर्थिक मंदी चलणि च।

जब क्वी पैल हर दिन अलग अलग ब्रैंड की कारमा ऑफिस जावो अर अब मुहल्ला मा संजैत/सामुहिक कार पूल की बात कारो तो समजी ल्यावो आर्थिक मंदी मातबर लोगुं तै बि सताणि च।
जब क्वी दाड़ि बणाणो रोज हेयर कटिंग सलून जांदो ह्वावो अर अब अफिक दाड़ी बणावो अर अपण काम अफिक करणों भाषण दीणु रावो त समजी ल्यावो जिलामा आर्थिक मंदी को हज्या फैल्युं च।
जब कैं कंपनी को मालिक या डाइरेक्टर हवाई जाज छोड़िक अपण मुलाजिमो दगड़ रेल से यात्रा कारो त समजी ल्यावो प्रदेसम आर्थिक मंदी को मैस्वाग लग्युं च।

जब गां मा पैल क्वी खाणा खाणों बाद दस दें जोर की डन्कार मारदो ह्वावो अर अचकाल खाणा खाणों बाद मुख चुर्याणु ह्वावो तो समजी ल्यावो देसम ग्रामीण आर्थिक मंदी को बथौं चलणु च।
जब गां मा पैल क्वी कुत्ता तै खाणों खाणों बान भट्यान्द दै जोर से धै लगांदो ह्वावो ," ये टौमी आ भात खाणों आ" अर अचकाल चुपकैक कुत्ता तै बासि तिबासि खाणक खलावो त इखमा समजण चयेंद कि ग्रामीण आर्थिक मंदी की मार चलणी च।
पैल जब क्वी ऑफिसम ऐक कोंटीनेंटल ब्रेक फास्ट का फायदा बथांद नि अघावो अर अब भारतीय नास्ता की भरपूर प्रशंसा करदो दिख्यावो तो इखम द्वी राय नि ह्वे सकदन कि मंदी को चक्रवात चलणु च।
जब क्वी बीड़ी सुट्टा लगांद दें बीड़ी बांटी पीणों बात करदो दिख्यावो तो समजि ल्यावो देसम आर्थिक मंदी को प्रवेश ह्वे गे।
जब क्वी अपण नौनी-नौनु तै कोचिंग क्लास भिजणो जगा अफु पढ़ाण बिसे जावो त समजि ल्यावो शिक्षा व्यापार मा बि मंदी को ब्लैक बोर्ड ऐ गे।
जब जादातर लोग अखबार बंचणो पुस्तकालय जावन तो समजी ल्यावो आर्थिक मंदी को बुखार उतरणम देर च।
जब नौनि या जनानि कृतिरिम सुन्दरता की ना प्राकृतिक सुन्दरता की प्रशंसा करण बिसे जावन तो शर्तिया आर्थिक मंदी को प्रकोप देस पर फैल्युं च।
जब देसम सांझा चुल्हा का इतिहास पर बहस हूण लगि जावो तो समजि ल्यावो आर्थिक मंदी की तैंची असहनीय ह्वे गे।
जब भारत जन देसम विचारक , पत्रकार , नेता एक पतिवाद की बुराई अर बहुपति वाद का फायदा खुज्याण बिसे जावन तो समजि ल्यावो अमेरिका अर यूरोपमा आर्थिक मंदी अवश्य ही खतरनाक स्तिथि मा च।

Copyright@ Bhishma Kukreti 6 /3/2013

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