गढ़वाली हास्य-व्यंग्य
सौज सौजम मजाक-मसखरी
हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
चलो गढ़वाळौ इतिहास पर किताब लिखे जावो
(s =आधी अ )
घरवळि बुलण बिस्याइ," बल ह्यां ! तुम बि एक किताब छपवावो"
" किताब छपाण क्वी मजाक च ?" मीन पूछ ना बथाइ
घरवळिन बोलि " तुम से भलो तो वी ठीक छौ"
"कु ?" मीन पूछ
"जु तुम से पैल मि पर लाइन मारदो छौ" वींन तून (ताना ) दींद बोलि
मीन बोलि," ह्यां पण किताब लिखणो बाण क्वी विषय बि त हूण चयेंद कि ना?"
वींन ब्वाल," विषय कुण ले क्या उत्तराखंड को इतिहास पर किताब छापि ल्यावो।"
" पण मि त दर्जा आठम इतिहास माँ फेल ह्वे छौ पण गणितम जादा नम्बर आण से कम्पार्टमेंटमा पास हों।" मीन बथै
" ओहो !पैल पैल फेल तो तुम मि तैं पटाण मा, लाइन मारण मा बि ह्वे छा।" घरवळिन चिरड़ाइ
मीन जबाब दे," ह्यां पैल पैल मि त्वेकुण अपण बुद्धि से प्रेम पत्र लिखुद छौ पण पैथर मीन प्रसिद्ध शायरों शेर नकल कौरिक त्वै कुण प्रेम पत्र भेजिन त तू गर्र पटी गे।"
पत्नी को जबाब थौ," त इनि गढ़वाळो इतिहासौ किताब बि नकल करिक छ्पै ल्यावो।"
मीन विरोध करण चाइ," पण ."
"पण उण कुछ ना तुम पंडित हरी कृष्ण रतूड़ी क 'गढवाल का इतिहास' किताब लावो अर शब्दों हेर फेर करिक 'उत्तराखंड का इतिहास' किताब छपवावो" पत्नीन राय दे।
मीन बोलि," पण रतूड़ी जीन तो सौ साल पैल या गढ़वाल का इतिहास की किताब लेखि छे तो तब बिटेन गढ़वाळो कथगा ही नई खोज ह्वे होलि।"
वींन बोलि," खोज ह्वे बि होलि त तुम तै क्या? तुम पंडित रतूड़ी की किताब की नकल करिक किताब छपवावो। अचकाल बगैर खोज से इतिहास पर किताब या लेख छपवाणो रिवाज चलणु च"
मीन बोल," न्है भै इतिहास पर किताब लिखण मतबल नकल करिक मि इतिहासौ दगड़ मजाक नि कौरि सकुद।"
घरवळिन सलाह दे," त तुम इन कारो 'गढ़वाल की लोक संस्कृति' पर किताब छपवावो।"
मीन जबाब मा पूछ ब्वाल," संस्कृतिमा कम से कम चौसठ कला हूंदन अर पिछ्ला चालीस साल से गढ़वाल नि ग्यों तो गढवाल की संस्कृति पर किताब कन कौरिक लिखलु ?"
पत्नी को जबाब छौ," तुमर दिमाग खराब हुयुं च लोग लोक गीतुं अर नाचुं अलावा हौर बातों तै संस्कृति का प्रतीक नि मानदन ना ही समजदन।"
मीन जाणन चाहि," पण मि तैं लोक गीत अर लोक नृत्यों क्वी ज्ञान नि च तो कन करिक लोक गीत अर लोक नृत्य पर किताब लिखलु?"
वींको उत्तर छौ," बस या तो गोविन्द चातक की किताब की नकल या डा शिवा नन्द नौटियाल की किताब की नकल कारो अर 'उत्तराखंड की लोक संस्कृति' नाम से किताब छपवावो।"
मीन शंस्य की दृष्टि से दिखद ब्वाल," पण इन कनै बगैर ज्ञान को ?"
वींन ब्वाल," दुसरो पिस्युं तै ही त दुबर पिसणों नाम आज खोज च। ह्यां लोग बाग़ बगैर खोज कर्यां चातक जी अर नौटियाल जीक किताबों नकल से पीएचडी ही ना डीलिट पाणा छन तो तुम इन नि करि सकदवां?"
मीन ना नकार करदो बोलि," नै नै में से गीतुं पर काम नि ह्वे सकुद।"
घरवळिन हैंकि सलाह दे," तो तुम इन कारो गढ़वाली साहित्य को इतिहास की किताब हिंदी मा छापो।"
मीन ब्वाल," मि तै गढ़वाली साहित्यौ अता पता नी च अर तू बुलणी छे बल गढ़वाली साहित्य को इतिहास की किताब हिंदी मा छापो।"
घरवळिन बोलि," करण कुछ नी च अबोध बंधू बहुगुणा कृत 'शैलवाणी' अर 'गाड मटे की गंगा ' की नकल हिंदी मा कौरिक अपण नाम से किताब छपवावो अर गढ़वाली साहित्य का प्रसिद्ध इतिहासकार बणी जावो ."
मीन बोल ," पण यो तो साहित्य अर इतिहास को दगड़ अन्याय च बगैर खोज का साहित्यिक इतिहास लिखण तो गुनाह ही होलु।"
घरवळिन जबाब दे," मौलिक खोज करिक इतिहास लिखण इतिहास की बात ह्वे गे अचकाल तो हूँ बहू नकल कॉरिक लिखणो खुणी इतिहास लिखण बुल्दन।"
अर सरस्वती समान घरवळि क ठेललम ठेल रूपी कृपा से मेरि 'गढ़वाली भाषा साहित्य का इतिहास' प्रकाशित ह्वे गे अर पर्स्युं मुख्यमंत्री जी क हाथों से किताबौ विमोचन होलु आप बि समारोह मा आमंत्रित छन
Copyright @ Bhishma Kukreti 17 /3/2013
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