गढ़वाली हास्य -व्यंग्य
सौज सौज मा मजाक मसखरी
हौंस ,चबोड़ , चखन्यौ
दि बर्निंग इस्यूज ऑफ माइ विलेज याने म्यार गौंकी जळणवाळ समस्या
(s = आधी अ )
हेड मास्टर जी कुणि मथि बिटेन अंग्रेजी मा आदेस आयि बल स्कूल्यों से दि बर्निंग इस्यूज ऑफ माइ विलेज पर स्थानीय भाषा मा निबन्ध लिखवावो। हेड मास्टर जीन दि बर्निंग इस्यूज ऑफ माइ विलेज को अनुवाद (गां की जळणवाळ समस्या ) करिक स्कूल्यों तैं निबन्ध लिखणो ब्वाल। म्यार स्कूलम जै नौनु तैं पैलो नम्बर मील वैक निबन्ध इन छौ।
मेरि ददी बुल्दि बल ददी क ददि समौ पर आग रंगुड़ तौळ दबाये जांदी छे अर गां वळ एक हैंकाक ड्यारन छिलों से आग बाळि लांदा छा या आग मांगि लांदा छा तो कथगा बि झड़ी-बरखा ह्वावो आग जळाणो समस्या कबि नि आन्दि छे। फिर हमन प्रवासी भाईओं मंगन जाण कि रंगुड़ तौळ आग बचाण असभ्य लोगुं काम च तो हम अब सभ्य ह्वे गेवां अर अब हम रंगुड़ से परेज करदां। चूंकि प्रवासियोंन ही बथाई बल अग्य्लु कबासलो से आग जगाण आदि वास्युं या जाहिलों काम होंद त कुज्याण कथगा साल पैलि हमन अज्ञल माटो तौळ खड्यार ऐ छौ। फिर हम तैं प्रवास्युंन सिखाइ कि दियासळाइ से ही आग जळाण चयेंद तो हम दियासळाइ से आग जळाण मिसे गेवां। फिर हमन खेती पाती बंद करी तो भ्युंळ निबटेन, दगड़म रौउ पाणि सुखण से हमर इख क्याड़/छिलों निर्माण ही बंद ह्वे ग्याइ। मि तो जणदो बि नि छौं बल क्याड़। छिल्लों या तुर्क्यड़ो से एक हैंकाक इखन आग जळाये जान्दि छे। मि दियासळाइ युग को छौं। कुछ साल पैलि हम सहकारी/सहयोग की भावना से एक हैंक तै दियासळाइ दीन्दा छा। पण फिर हमर गौंका प्रवास्युंन बथाइ बल सहकारिता या कोपरेसन गरीबी की निसाणि च। हम तैं बेइमान, भ्रष्ट, बलात्कारी ब्वालो तो भी हम तैं बुरु नि लगुद पण जरा क्वी गरीब बोलि द्यावो तो हमर जिकुड़िम अग्यौ, जळन्त, ह्वे जांदो अर मन मा बणाङ्क लगी जांद। हमन गरीबी मिठाणो कुछ नि कार पण गरीबी की सबि निसाणि मिटै देन। सहकारिता, सहयोग गरीबी की सबसे बड़ी निसाणि/पछ्याणक च तो हमन एक हैंक से सहयोग , सहकारिता इ गाँव से भगै दे अर जथगा बि ह्वावो हम एक हैंक से असहयोग करण मा शहरी लोगुं से बि अग्वाडि ह्वे गेंवा। कथगा बि आवश्यकता ह्वावो, कथगा बि जरूरी ह्वावो अब हम एक हैंक तैं दियासळाइ नि दींदा ना ही कैमांगन दियासळाइ मंगदा। यां से मेरो गां मा ज्वलंत समस्या पैदा ह्वे गे। अब जब हमम दियासळाइ तिल्ली खतम ह्वे जावन या दियासळाइ बरसात मा या पाणि मा सिल्ली ह्वे जावो तो हम अपण ब्वाडा -काका-भाई -भतीजों से दियासळाइ नि मांग सकदा। जु क्वी कैमा दियासळाइ मांगो तो वै तैं सुणण पडुद -अच्छा इथगा गरीबी ऐ गे जो दियासळाइ मंगण पड़नो च। अर इन मा कथगा दें हम बगैर आग जळयां खाजा-भुज्यां बुख़ण बुकैक रात कटदां। यो दूसरों दियासळाइ से आग नि जळाणै समस्या बड़ी भंयकर ज्वलंत समस्या ह्वे गे अर सरकारी अधिकारी, नेता लोग , मंत्री लोग गांवों मा यीं आग जळाणै समस्या को क्वी समाधान नि खुजयाणा छन । ग्राम प्रधानन सांस्कृतिक मंत्री जी कुणि चिट्ठी भि भ्याज पण संस्कृति मंत्री जीन ब्वाल कि या समस्या सामजिक समानता मंत्री जिक च तो सामजिक समानता मंत्री न ल्याख कि चूंकि इखमा दियासळाइ शब्द च तो या समस्या वन मंत्री क च; वन मंत्री को लिखण छौ कि दियासळाइ बंटणो काम सार्वजानिक वितरण विभागों क च तो सार्वजनिक वितरण विभागों चिट्ठी आई कि हम राशन बंटदा दियासळाइ नि बंटदा। सो अबि बि हमर गां मा आग जळाणै समस्या जन्या कि तनी च अर सरकार कुछ नि करणी च।
फिर चूंकि अब अपण डाळ बूट कटणो बि वन विभाग से स्वीकृति लीण पड़दि अर हम तैं गैस सिलेंडरों मा ही खाणों बणान पोड़दो पण गैस को बुरा हाल छन।इलै हम तै रात अपण डाळ कटण पोड़दन। फिर जब हम चुलू जगांदा तो आग की धुंवा देखिक ग्राम प्रधान ऐ जांदो कि तुम लखड कखन लयां। फिर हर रोज ग्राम प्रधानो कफनो कुणि कुछ ना कुछ भिजण पड़द। अपण डाऴ ह्वैक बि हम अपण लखड़ नि जळै सकदा यां बड़ी ज्वलंत समस्या क्या ह्वे सकदी?
पैल जब हम तै गरीबी से शरम नि छे तो हम सहकारिता का हिसाबंन जब बणाङ्क लगदि छे तो सरा गां का लोग संजैत बौणक बणाङ्क बुझाणो जांदा छा पण अब संजैत काम करण हमन बंद करि देन तो बणाक हमर मकान का न्याड़ -ध्वार तलक ऐ जान्दि अर या सरकार च कि कुछ नि करदी। बणांक गांकी बड़ी ज्वलंत या फौरेस्ट फाइर इज बर्निंग इ।
अत: मथि लिख्यां से साबित होंद कि एक हैंक से जळण, कै हैंक मांगन आग जळाणो दियासळाइ नि मांगण, आग जळाणो बान अफुम लखड़ ह्वैक बि जळाणो बान प्रयोग नि करे सकण अर बणांक हमारो गौन्की ज्वलंत समस्या छन।
Copyright @ Bhishma Kukreti 28 /3/2013
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments