भीष्म कुकरेती
[उत्तराखंड फिल्म विकास विचार विमर्श; हिलिवुड फिल्म विकास विचार विमर्श; गढ़वाली फिल्म विकास विचार विमर्श; कुमाउंनी फिल्म विकास विचार विमर्श; मध्य हिमालयी फिल्म विकास विचार विमर्श; हिमालयी फिल्म विकास विचार विमर्श; उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषाई फिल्म विकास विचार विमर्श; भारतीय क्षेत्रीय भाषाई फिल्म विकास विचार विमर्श; दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय भाषाई फिल्म विकास विचार विमर्श; एशियाई क्षेत्रीय भाषाई फिल्म विकास विचार विमर्श; पूर्वी महाद्वीपीयक्षेत्रीय भाषाई फिल्म विकास विचार विमर्श लेखमाला -21वां भाग ]
प्रसिद्ध डौक्युमेंट्री रचनाधर्मी पॉल रोथा का सन 1930 में खा कथां आज भी तर्कसंगत है कि सिनेमा कला और व्यापार के मध्य एक अनिर्णय भरा समीकरण है।सिनेमा कला विषयी कमाऊ व्यापार है जिसने विश्व की प्रत्येक संस्कृति और समाज को प्रभावित किया है। गढवाली -कुमांउनी फिल्मो का दुर्भाग्य है कि इन भाषाओं की फिल्मों ने ना ही क्षेत्रीय कला विकास किया और ना ही धन कमवाया। विश्लेषकों का मानना है कि एक कारण यह भी है कुमाउंनी गढ़वाली फिल्मो के अधिकतर कारिंदों को विश्व सिनेमा का ज्ञान ही नही है।
कुमाउंनी -गढ़वाली फिल्मों में निर्माण , निर्देशन, छायांकन, संगीत , सम्पादन क्षेत्र में आने के लिए अधिक से अधिक अंतर्राष्ट्रीय क्लासिक फिल्मों को देखना नही भूलना नही चाहिए।
अ स्टार इज बौर्न (नि -विलियम वेलमैन 1937) फिल्म स्टारडम का अभिमान, असफलता की खीज, फिल्म उद्यम का ग्लैमर दिखाने में सफलतम फिल्मों में गिनी जाती है।
द लेडी वैनिसेज (1938 ) डेढ़ घंटे की अल्फ्रेड हिचकौक निर्देशित फिल्म अपनी कथा और फिल्म से दर्शकों को बाँधने के लिए प्रसिद्ध है।
गौन विद विंड (नि- विक्टर फ्लेमिंग 1939) फिल्म क्लासिक फिल्मो में मानी जाती है।
द विजार्ड ऑफ ओज (नि- विक्टर फ्लेमिंग 1939) पारिवारिक सम्बन्धो को दर्शाने वाली फिल्म आज भी प्रसांगिक
द ग्रेट डिक्टेटर (नि-चार्ली चेपलिन 1940 ) विषय की सर्वश्रेष्ठ व्यंग्यात्मक फिल्मों में से एक फिल्म में गिनी जाती है।
सिटिजन कान -( नि- ओर्सन वेल्स ,1941 ) फिल्म कथा बुनावट , पटकथा और अभिनय के लए आज भी समालोचकों को भाति है
कासाब्लांका (नि- विक्टर फ्लेमिंग 1942 ) सिनेमा कला और अभिनय के लिए याद की जाती है
ब्रीफ इनकाउंटर (नि-डेविड लीन, 1945) -फिल्म प्रेम, प्रेम व्याख्या, वैवाहिक सम्बन्धो की नई तरह से खोज तो करती ही साथ में दर्शकों के मध्य एक रहस्य बनाने में भी सफल है।
द सेवन यियर इच ( बिली वाइल्डर , 1955) मस्ती , हास्य, अभिनय, नाटकीयता , जीवंत रोमांस और मजे के लिए यह फिल्म याद की जाती है।
द मैन हू न्यू टू मच (नि-अल्फ्रेड हिचकौक ,1956,) फिल्म सस्पेंस और अभिनय के लिए जानी जाती है।
नाईट टु रिमेम्बर (नि-रॉय बेकर 1958) का टिटेनिक जल-जहाज की दुर्घटना का करुणात्मक काव्यात्मक फिमांकन दर्शनीय है
वर्टिगो (नि- अल्फ्रेड हिचकौक 1958) रहस्य और पटकथा के लिए प्रशंसित होती है
बेन हूर (1959)- विलियम वाइलर निर्देशित बेन हूर फिल्म अपनी भव्यता और भावनाओं को दर्शाने, पटकथा, एक्टिंग के लिए जानी जाती है।
नार्थ बाई नार्थवेस्ट (नि- अल्फ्रेड हिचकॉक, 1959 ) रहस्य, डिजाइन , अभिनय, पुष्ट सम्पादन , छायांकान , नाटकीयता के लिए फिल्म उम्दा फिल्म मानी जाती है
वेस्ट साइड स्टोरी (नि-जीरों रौबिन्स और रॉबर्ट वाइज, 1961 )-रोमांटिक संगीत से ओत प्रोत फिल्म सौ श्रेष्ठ फिल्मों में से एक श्रेष्ठ फिल मानी जाती है।
ब्रेक फास्ट ऐट टिफनीज ( नि-ब्लैक इड्वार्ड्स 1961) फिल्म रोमांटिक हास्य फिल्मो में से एक उम्दा चलचित्र माना जाता है
टु किल अ मॉकिंगबर्ड (नि-रॉबर्ट मुलिगन , 1962) नाटकीयता , रहस्य केअलावा ग्रेगरी पैक की स्टाइलिश अभिनय के लिए फिल्म आज भी देखि जाती है।
लौरेंस ऑफ अरेबिया (नि- डेविड लीन 1962)- किस तरह एक महाकाव्य को भव्यता से फिल्माया जा सकने के लिए इस फिल्म की आज भी मांग है।
क्लेओपेट्रा ( 1963 जोसेफ मानकिविज द्वारा निर्देशित ) फिल्म ऐहासिक महाकव्य के कालखंडो को केवल तीन घंटो में कुशलता पूर्वक दर्शाने में सफल रही है और पटकथा व छायांकन के लिए बहुत ही उम्दा फिल्म है।
फ्रॉम रसिया विद लव ( नि- तिरेंस यंग 1963 ) फिल्म जेम्स बौंड सीरीज में सबसे उम्दा फिल्म मानी जाती है
माई मेरी पौपिन्स (नि -रॉबर्ट स्टीवेन्सन 1964) फिल्म संगीत , प्यार के आंतरिक पहलुओं को दर्शाने के लिए आज भी प्रशंसा पात्र है
फेयर लेडी (नि जॉर्ज कुकोर 1964 ) रोमांस, चित्रांकन व संगीत को काव्य रूप में दर्शाती यह फिल्म आम निर्देशकों के लिए सपना है।
गोल्डफिंगर ( नि - जी . हेमिल्टन 1964 ) जेम्स बौंड सीरीज की श्रेष्ठ फिल्मों में से एक फिल्म
साउंड ऑफ म्यूजिक (नि -रॉबर्ट वाइज 1965) फिल्म रोमांस, संगीत, पहाड़ों के भव्य सीन फिमाकन के लिए स्मरणीय है।
2001: स्पेस ओडिसी ( स्टेनली कुब्रिक 1968) फिल्म वैज्ञानिक फैन्तासी फिल्मों में श्रेष्ठ फिल्म मानी जाती है।
गौड़ फादर (नि- फ्रांसिस फोर्ड कपोला 1972 ) माफिया कार्यशैली , क्रूरता , मानवीय पहलू , छायांकन , निर्देशन , सम्पादन , अभिनय के लिए आज भी भीड़ जुटाती है।
टैक्सी ड्राइवर (नि-मार्टिन स्कोर्सेस, 1976) फिल्म एक मनोवैज्ञानिक व थ्रिलर फिल्म है और कलात्मक फिल्म साँस्कृतिक मूल्यों, मानवीयता की खोज करने वाली फिल्म है।
डियर हंटर ( नि-माइकेल सिमेनो ,1978) युद्ध विभिसका दर्शाती फिल्म अपनी नाटकीयता के लिए जानी जाती है।
गढ़वाली -कुमाउनी फिल्मकारों को याद रखना चाहिए कि फिल्म कला , तकनीक और व्यापार का अनोखा संगम है और उन्हें कलात्मक फिल्मों का ज्ञान भी आवश्यक है।
विंग्स ऑफ डिजायर ( नि - विम वेंडर ); द क्रेन्स आर फ़्लाइंग (नि-मिखेल कालातोजोव ) , थ्री कलर्स रेड (नि-क्रेजीस्टोव केस्लोव्सकी ); इरेजर हेड (डेविड लिंच ); लघु फिल्म मेशेज ऑफ आफ्टरनून (नि- माया डेरिन, अलेक्जेंडर हामिद ); युद्ध विरोधी फिल्म हिरोशिमा मौन अमौर (नि-अलैन रेस्नाइस ); द इडियट्स ; अ डायरी फॉर ताईमाथी ; द बैटल शिप पोटमकिन , नेबर्स ; ग्लास ; वाइल्ड स्त्राबेरिज ; लेस कैरिबिनियर्स ; मेट्रोपोलिस (फ्रित्ज लैंग ); द पैसन ऑफ जून औफ़ आर्क ; मदर एंड सन (नि-अलेक्जेंडर सोकुरोव ); मौथलाईट (नि- स्टैन ब्रखेज ); सौंग ऑफ सीलोन ; ला स्ट्रादा (फेड्रीको फेलिनी ) कलात्मक फ़िल्में बताती हैं कि किस तरह कहानी को सेलुलाइड में तराशी जाती हैं।
छायांकन मोवियों को नया आयाम देता है। गढ़वाली -कुमाउंनी फिल्मकारों को क्षेत्रीय फिल्मों को पुनर्जीवित करने के लिए फिल्माकन की गुणवत्ता बढ़ानी आवश्यक है और पाथेर पंचाली, ब्लो अप , रियर विंडो, बौर्न इन्टु ब्रदर्स , ली जेटी ; तेन स्पोटिंग,बाराका, साल्वेडौर जैसी फिल्म अवश्य देखनी चाहिए की किस तरह फोटोग्रैफी ने फिल्मों को कव्यात्मक व्याख्या प्रदान की। यदि गढ़वाली -कुमाउनी फिल्मों को एक पहचान देनी है तो फिल्मकारों को इन फिल्मों जैसी फिल्म देखना चाहिए .
विश्लेषकों का मानना है कि गढ़वाली -कुमाउनी फिल्मकार पटकथा पर उतना परिश्रम नहीं करते जितना क्षेत्रीय फिल्मो (जंहा संसाधन का सूखा है) के लिए आवश्यक है और इसका कारण है कि गढ़वाली -कुमाउनी फिल्मों के पटकथाकारों को अन्तराष्ट्रीय स्तर के फिल्मों की पटकथा लेखन का ज्ञान नही है कि किस तरह पटकथा स्तरहीन कथा को बढिया फिल्मों की सीढ़ी प्रदान कर सकती है। जे एंड साइलेंट बौब स्ट्राइक बैक; फोन बूथ; रिजरव्वाइर डॉग; फोर रूम्स ; पल्प फिक्सन ; ट्रू रोमांस किल बिल ; डेथ प्रूफ ; नेचुरल बौर्न किल्लर्स ; फ्रॉम डस्क टिल डाउन आदि फ़िल्में गढ़वाली -कुमाउनी फिल्मकारों को प्रेरणा दे सकती हैं कि पटकथा का फिल्मों में क्या स्थान है।
सम्पादन भी फिल्मों के लिये एक आवश्यक तकनीक है और कुमाउंनी -गढ़वाली फिल्म सम्पादकों को राल्फ डावसन; डेनियल मैंडल; फ्रेडरिक नुस्टोदन; गेरी हैम्ब्लिंग; माइकेल कान सरीखे ख्याति प्राप्त फिल्म सम्पादकों के काम को समझना आवश्यक हो जाता है।
क्षेत्रीय भाषाई सिनेमा की अपनी अहमियत है और क्षेत्रीय भाषाई फिल्मकारों को अपनी पहचान बनाने इ के लिए विश्व स्तरीय फिल्मों का तकनीकी स्तर पर ज्ञान आवश्यक है। तकनीक , कला और व्यापार ज्ञान प्रसिक्षण ,अनुभव,व अर्जित ज्ञान (फिल्म दर्शन )से आता है।
Copyright@ Bhishma Kukreti 16/3/2013
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