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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, March 26, 2013

आओ चलें गाँवों में बसें !


गढ़वाली हास्य-व्यंग्य 
सौज सौजम मजाक-मसखरी  
हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
 
                       चला गांवुं मा बसणो नलटण- नखरा (ढोंग ) करे  जावो 
 
                                 चबोड़्या - चखन्यौर्याभीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )
 
 - भाइओ और बहिनों ! यो आपको सौभाग्य च बल जो आप एक ऐतिहासिक घड़ी का गवाह बणना छंवा अर वूंको दुर्भाग्य च जू आज  हमारो समारोह मा नि ऐन। आज हमारी  उत्तराखंड प्रवासी हितैसणी संस्था एक ऐतिहासिक समारोह करणी च । भाइओ और बहिनों आज हमारी संस्था का रत्न आप तै बथाला  कि आप लोगुं तैं गढ़वाल का वास्ता क्या क्या करण चयेंद ।  अब मि बड़बोला जी से  हथजुडै करदो बल वो आप तैं अड़ाणो कुछ शब्द ब्वालन।

-ये इना कंदूड़ लादि। अब ये बड़बोलान ऐड़ाण अर येन हम  दर्शकों कंदूड़ फुड़ण।
- मि कथगा इ प्रवासी संस्थाओंम बड़ा बड़ा पदों पर बिराजमान रौं त मि तैं अपण परिचय दीणै जरूरत नी च। आज हम एक नई अभिनव योजनाक खुलासा करण वाळ छंवा ज्वा  योजना पहाड़ी गावुं दशा अर दिशा ही बदल देलि। मेरि आप लोगुं तैं कड़ी चेतावनी च कि आप लोग अपणि संस्कृति बिसरणा छंवां अर एक दिन तुमारि संस्कृति अवहेलना प्रवृति से हमारि संस्कृति रसातल जिना चलि गे। खासकर इख प्रवासम हमर पहाड़ी बिठलर याने नौनि अर जनानी  पश्चिमी सभ्यता तै अपनाणा छन अर हमारि हजारों साल पुराणि पहाड़ी सभ्यता -संस्कृति को छ्त्यानाश करणा छन। मेरि कड़क सलाह च कि आप अपण बिठलरों कपड़ा पर ध्यान द्यावो कि वो पहाड़ी संस्कृति हिसाब से कपड़ा पैरन।
-ले सि दिखणि छे बड़बोला हम तैं अड़ाणु च अर अफु! सि पैलक मैना बमरोला जी  अपण नौनु लेकि बड़बोला कि ब्यौथा नौनि दिखणो गे छया तो पता च क्या हाल छन  बड़बोला जीक ड्यारम?
-क्या?

- अरे बेटि  स्लीवलेस टी शर्ट अर शॉर्ट लोवर गारमेंट पैरिक नौनाक समणी आयि अर ब्वै  मिसेज बड़बोला का तो नि पूछो की कथगा अधनंगी छे ।  
-अच्छा चुप अब सुणदा बड़बोला जी अग्वाड़ी क्या बुलणा छन धौं!
-हाँ तो मि बडबोला तुम तैं फिर से चेतावनी दींदो कि तुम लोगुं लापरवाही से हमारि पहाड़ी संस्कृति रसातल चलि गे। खासकर बिठलरूं तैं  अपणी पारम्परिक संस्कृति पर ध्यान दीणै जरीरत च। अब मि उत्तराखंड में उद्योग लगाओं  का घनघोर आन्दोलनकारी श्री सटोरियाल जी से प्रार्थना करदो कि वो कुछ शब्दों मा उत्तराखंडम उद्योगों [पर अपणि राय द्यावन।
-मि  सटोरियाल छौं अर मि परिचय को मुहताज नि छौं किलैकि मि हरेक साल हरेक प्रवास्युं संस्था तैं चंदा दीणु इ रौंदु अर अब ...
-  हां सट्टा बजारम सट्टा खेलिक फैदा होलु तो   संस्थाउं  तैं कुत्ता जन रुटि दीणम तैको क्या जांदो।                                             
 -अबे चुप क्वी सुणल त ...सूण कि सटोरियाल क्या बुल्दो।
-दिख्युं आंख  क्या दिखण अर तप्युं घाम क्या तपण।
-मतबल?
-मतबल या च सटोरियालन यो हि बुलण कि हम तैं उत्तराखंड मा जैक  उद्योग लगाण  या ब्यापार करण चयेंद।
- सटोरियाल जीको  बि उत्तराखंडम ब्यापार छ कि ना ?  
-हाँ किलै ना! पौड़ी , गोपेश्वर ,  उत्तरकाशी अल्मोड़ा , पिथौरागढ़म  जु सट्टा चलांदन वो सटोरियाल जीक ही त एजेंट छन।
-जरा ठैर सुणदां कि स्यु सटोरियाल क्या बुल्दो धौं!

- हाँ तो मि सटोरियाल तुम तै धमकी दींदो कि तुम उख उत्तराखंडम ब्यापार खोलो। मि तैं खुसी च हम एक क्रांतिकारी योजना का आरम्भ करण वाळ छंवा पण योजना बथाण से  पैल  मि भाषा बचावो मूवमेंट का श्री भरमवाळ जी तैं हुकुम दींदो कि वो भाषा मुतालिक अपण विचार बथावन।
-यार तै  भरमवाळन भौत बोर करण।
-हां यार तैन अब रूण बल गढ़वाल अर कुमाऊं मा भाषा खतम ह्वे ग्याइ। अर तै भरमवाळक घौरम भाषा का क्या हाल छन?
-क्या?
- जरा तैक फ्लैटम जैलि तो तैक परिवार वाळ गढ़वाळी तो छोड़ हिंदी मा बि नि बचऴयांदन। सौब अंग्रेजीम ही बचऴयांदन।ले तै तैं आधा घंटा ह्वे गेन भाषण दीनद  अर  अबि बि तैक  रूण बंद नि ह्वाइ कि उख गढ़वाळ -कुमाऊं मा गढ़वाली अर कुमाउनी भाषा निबटणि च। अरे स्यु भरमवाळ को भाषण खतम हुण वाळ च।
-हां तो मि गढ़वाली -कुमाउंनी भाषा प्रेमी भरमवाळ  आप लोगुं तैं उत्तराखंड माँ की सौं दींदो कि तुम केवल अपणि बोलि मा हि बातचीत करील्या। अब मि संस्था को अध्यक्ष श्री फुन्द्यानाथ  जी से रिक्वैस्ट करदो कि वो हमारि इन्नोवेटिव प्लानिंग का बारा मा आप तैं इंट्रोड्यूस करावन।

- धन्यवाद भरमवाळ जी ! मैं फुन्द्यानाथ   तैं तुम सबी लोग जाणदा इ छंवा। मीन दसियों संस्था खड़ी करिन अर हरेक मा मि अध्यक्ष ही रौं। हमारो ग्रामीण उत्तराखंड को दुर्भाग्य च बल उख से पलायन होणु च अर हम प्रवास्युं को  परम कर्तव्य च बल हम पहाड़ों से  पलायन रोकणो बान कुछ करवां। इलै हमारि उत्तराखंड प्रवासी हितैसणी संस्था पहाड़ी  गाँवो से पलायन  रोको अभियान चलाण वाळ च। हमारि संस्था का पदाधिकारी  बीस दिनों की पहाड़ों में  भ्रमण यात्रा पर जाणा छंवां। उख हम  लोगों   मध्य चेतना फैलौला कि वो गांव मा हि रावन अर हमारी आपसे बि गुजारिस च कि  आप  बि रिटायरमेंट का पश्चात  गांवों मा बसों। यीं गांवों में बसों चेतना यात्रा पर करीब दस लाख खर्च आलो अर हमारि संस्था ये खर्चा उठालि। आवो आप  प्रण  करें कि आप रिटायरमेंट का बाद गाँव में बसें।
-जी मि एक दर्शक छौं अर ग्रेजुएसन करिक अबि गौं से इख औं। मि गाँवो से पलायन  रोको अभियान मुतालिक एक द्वी सवाल पुछण चाणो छौं।

-हां   हाँ पूछो !
-जी बड़बोला जीन कुछ साल पैलि अपणि गौं जमीन बेचि आल छे। भरमवाळ जी , फुन्द्यानाथ जी अर सटोरियाल जीका गौंका   कूड़ खंद्वार हुयां छन। तुम सब्युं नौन्याळ विदेशों मा नौकरि करणा छन। तुम चार्युं मादे क्वी अपण गां नि जांदा तो  फिर तुम कै मुखान गाँवो से पलायन  रोको अभियान चलाणा छंवां?
-बस इन पहाड़ियों में यही जंगलीपन और नासमझी है कि ये भले काम की प्रशंसा  कर ही नही सकते। मुझे सूचित करते प्रसन्नता हो रही है कि पांच दिन बाद  हमारा दल गाँवो से पलायन  रोको व गाँव में ही बसों अभियान की शुरुवात देहरादून से करेगा। हमारा दल देहरादून , ऋषिकेश, नैनीताल , अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ में इस अभियान को चलाएंगे। चूँकि कुछ लोग व्यवधान की मनशा से ही यहाँ आये हैं तो   मै संस्था का अध्यक्ष अब  गाँवो से पलायन  रोको अभियान समारोह के समापन की घोषणा करता हूँ। .     
 
      
      
  
Copyright @ Bhishma Kukreti   26  /3/2013 

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