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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, March 3, 2013

उत्तराखंड फिल्म उद्द्योग से पर्यटन को बढ़ावा


 डा बलबीर सिंह रावत

 
 सत्य जीत राय की फिल्मों ने बंगाल नाम के क्षेत्र को  दर्शकों से रूबरू कराया 
 ज्वैल थीप फिल्म ने हमें भूटान की लुभावनी वादियों से परिचय कराया 
यश चोपड़ा की कई फिल्मों ने जागृति पैदा की कि स्विट्जर लैंड कितना खुबसूरत  देस है और वंहा ट्यूलिप के फूल किस तरह मन्त्र मुग्ध करने में सक्षम हैं।

फिल्मों ने दार्जलिंग और कश्मीर की सुन्दरता को लोगों के मन में एक चित्र बनाया  
कान्स में जब फिल्म फेस्टिवल होता है तो फ़्रांस पर्यटन उद्यम को एक सम्बल मिलता है 
हौलीवुड से अमेरिका के प्रसिधी में चार चाँद लगते हैं।

जब इडियन फिल्म अवार्ड मकाओ में होता है तो मकाओ के पर्यटन को नया आयाम मिलता है।

                फीचर फ़िल्में अपनी लोकप्रियता के कारण समाज के हर वर्ग द्वारा पसंद की जाती हैं। इन में काम कर रहे मुख्य कलाकारों को तो लोग इतना अधिक चाहते हैं कि उन्हें सेलेब्रिटी मान कर उनके दर्शनों को उतावले रहते हैं. उनकी एक झलक पाने के लिए क्या कुछ नहीं कर गुजरते हैं। उनको छूना चाहते हैं, उनसे दो शब्द सुनना चाहते हैं, उनके औटोग्राफ लेने का और उनके साथ फोटो अगर खिंचवाने का अवसर मिल जाता है तो समझते हैं की उन पर साक्षात भगवान की कृपा हो गयी है। और फ़िल्मी कलाकार भी अपना फैन दायरा बढाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं। फिल्मी भाषा में कहें तो "दोनों तरफ आग बराबर है लगी हुई ".

                               फ़िल्मी कलाकारों की यह लोकप्रियता जनसंपर्क का एक सशक्त माध्यम है। जब भी समाचार मिलता है कि कोई वर्तमान या पुराना फ़िल्मी कलाकार इलाके में आ रहा है, तो लोग, विशेष कर युवा वर्ग, सारे काम छोड़ कर उनके दर्शनों को निकल पड़ता है। और जब कहीँ फिल्म महोत्सव हो रहा हो तो क्या कहने। कई कई फिल्मों के दसियों हीरो, हीरोइने , निदेशक , कहानी लेखक, सब एक ही समय में एक ही स्थान पर उपस्थित. दर्शकों को तो मन माँगी मुराद मिल जाती है. और अगर कुछ विदेशी फ़िल्में भी प्रदर्शित हो रही होती हैं और उनके भी कलाकार शोभा बढ़ा रहे हैं तो लगता है कि सोने में सुगंध आ गयी है. यही जन समुदाय एक आकर्षक पर्यटक बन सकता है अगर इसे सारी पर्यटन सुविधाएं भी मिल जां तो।

भारत में तो मनोरंजन कराने वालों को पूजा जाता है, इसलिए फिल्म फेस्टीवल कहीं भी आयोजित हों , दर्शकों की, फैन्स की भीड़ जुटेगी ही। इसी भीड़, यानी मानव दल, को रहने, खाने,आराम, अन्य खाली समय में घूमने फिरने के लिए दर्शनीय स्थलों, यादगार स्थानों में अपनी फोटो विडियो बनाने की, आकर्षक वस्तुओं की खरीद दारी की, तथा अन्य प्रकार के मनोरंजनों की भी सुविधाएँ होंगी तो ही ऐसे फिल्म फेस्टिवल इतनी भीड़ जुटा पायेंगे जो पर्यटन की सुगढ़ व्यवस्था को लाभकारी बना सकेगॆ. फिल हाल मसूरी और नैनी ताल के अलावा ऐसा कोइ स्थान उत्तराखंड में नहीं है जहाँ सारी सुविधाओं का पेकेज मौजूद हो. यह काम सरकार, अपने और केंद्र के सांस्कृतिक मंत्रालय , फिल्म उद्द्योग से मिल कर करा सकते हैं। इसके लिए उत्तराखंड के फिल्म उद्द्योग को सक्रिय और जुझारू होना पडेगा। केवल भावना से काम नहीं चलने वाला है, यह शुद्ध व्यवसायिक मामला है, निर्णय लाभ हानि के बेलेंस शीट से ही होता है। प्रारम्भ के लिए क्षेत्रीय फिल्म फेस्टिवलों का सफल, आकर्षक और जनसमुदाय उमड़ने देने वाला आयोजन हो, उसमे देश के फिल्म उद्द्योग से जुड़े नामी प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और कलाकार, छायाकार आमंत्रित किये जांय तो कालान्तर में यह क्षेत्रीय फेस्टिवल ही राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय बनाए जा सकते हैं।

                    पारम्परिक फेस्टिवलों के अतिरक्त और भी जरिये हैं, फिल्मों द्वारा उत्तराखंड के पर्यटन को बढ़ावा देने के जैसे :-
१ . पूरे उत्तराखंड में जितने भी फिल्म शूटिंग के लिए आकर्षक स्थल हैं उनकी विडेओग्राफी करवा के , पूरे विवरण के साथ, कि सम्बंधित स्थानों में यूनिटों के रहने, खाने, के यातायात के, बैंकिंग , संचार और आमोद प्रमोद के कैसे प्रबंध हैं, इस प्रकार दर्शाए जायं की देखते ही उन्हें स्वीकृति मिले सके।

२. इन्ही स्थलों पर अगर क्षेत्रीय फीचर फिल्मो की भी शूटिंग होगी और उनका पूरा विवरण, कि यह स्थल कहाँ हैं , कैसे हैं , फिल्मों के टायटलों में होगा तो बड़े फिल्म उद्द्यों आकर्षित होंगे।

३. ऐसे स्थल अगर वर्तमान किसी पर्यटन केंद्र के आस पास हैं तो इन केन्द्रों में वे अन्य सुविधाएं स्थापित करने से दोहरा लाभ हो सकता है कि वहाँ पर पर्यटक अधिक संख्या में आयेंगे, अधिक दिनों तक टिकेंगे और अधिक खरीददारी करके उत्तराखंड के कुटीर और लघु उद्द्योगों को बढ़ावा देंगे।

४. उत्तराखंड के रीजनल फिल्म उद्द्योग की इस प्रयास में अहम भूमिका है . एक तो वह अपनी फिल्मों में ऐसे स्थानों को चर्चित करे, बाहर से आने वाले
यूनिटों को, उनकी आअश्य्क्ता और गुणवता वाला सारा साजो सामान किराए पर उपलब्ध करा सके, ताकि वे आराम से बिना किसी अतिरिक्त भार के,
यहाँ आकर अपना कार्य सम्पन्न कर पांय।

५ . आगंतुक यूनिटों के मार्ग दर्शन के लिए, सहायता के लिए, और आवश्यकता पड़ने पर विशिष्टता वाले अनुभवी आर्टिस्टों, जैसे, कैमरामेन, मेकअप असिस्टेंट, जूनियर आर्टिस्ट, स्थानीय भेष भूषा के कपडे , आभूषण इत्यादि वस्तुओं, की सेवा उपलब्ध कराने का प्रबंध भी हो तो और भी आकर्षण होगा

६ . इस प्रयास में हौस्पिटेलिटी उद्द्योग तथा सांस्कृतिक संस्थाएं भी जोड़ी जा सकें तो ऐसे स्थल अपने आप में एक परिपूर्ण फिल्म शूटिंग स्थल के साथ साथ समर्द्ध पर्यटन डेस्टिनेशन भी बन सकते हैं .

आवश्यकता है, दूरदृष्टि की, दृढ निश्चय की, जुझारूपन की और एक सम्पूर्ण टीम को चिन्हित कर के उसके गठन और संचालन की। जिस दिन यह हो जायगा उसी दिन से उत्तराखंड के फिल्म उद्दुओग के दिन राष्ट्रीय स्थल पर चमकने शुरू हो जांयगे। तो? देऱी किस बात की? .      

डा बलबीर सिंह रावत
 Balbir Singh Rawat

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