भीष्म कुकरेती
सभी भाषाओं में लोक कथा श्रुति माध्यम से समाज में विद्यमान रहती हैं . किन्तु समय के साथ कई अनमोल कथाएँ लुप्त हो जाती हैं - कुछ परिहार्य नही होती हैं, कुछ अपणा महत्व खो बैठती हैं, कहीं नये शाशन आने से या नए सामाजिक समीकरण बनने से भी लुप्त हो जाती हैं . आज के संदर्भ में देखें तो शासकीय खलल से कई कथाओं को सबल अंचल से निर्मूल किया जाता है . जैसे भारत में साम्यवादी इतिहास लेखकों ने कई लोक कथाओं को ऐतिहासिक धरातल से निर्मूल करने का अथक प्रयत्न ही किया है इसी तरह धर्म पूरक इतिहासकार व सामाजिक कार्यकर्ता भी कई लोक कथाओं का निर्मुलीकरण अवश्य करते हैं
योरोपीय विद्वानों ने लोक कथाओं को ज़िंदा रखने की शुरुवात की और वहां के विद्वानों ने लोक कथा संरक्ष्ण हेतु लोक कथाओं के प्रकाशन की शुरुवात की यद्यपि चीन में यह कार्य कागज की खोज के साथ चल ही रहा था
पंडित गैरोला : गढवाली लोक कथाओं के संकलन प्रकाशित करने का श्रेय पंडित तारा दत्त गैरोला और ओकले को जाता है जिन्होंने बीसवीं सदी के परर्म्भ में थे हिमालयन फोक लोरे के नाम से गढ़वाली लोक कथाओं का संकलन कर उसे पुस्तक रूप में प्रकाशित किया . डा शिव प्रसाद डबराल ने आपने इतिहास संबंधी ग्रन्थ में इस ग्रन्थ के अधार पर की टिप्पणियाँ लिखी हैं .
पंडित हरी राम धश्माना एवम केशवा नन्द नैथानी
पंडित हरी राम धश्माना एवम केशवा नन्द नैथाणी ने कोई लोक कथा संकलन प्रकाशित नही किया अपितु गढवाली लोक कथाओं को अधार बनाकर कई नई धारणाओं को पोषित किया. पंडित हरिराम धश्माना ने लोक कथाओं को सन्दर्भ बनाकर वैदिक भाषा को गढवाली भाषा की मां एव गढवाल को वेद रचना स्थल सिद्ध करने कई असफल कोशिश क़ी
इसी तरह 'सात माताओं का एक पुत्र' व फ्वुन्ली जैसी लोक कथाओं के उदहारण दे कर केशवा नन्द नैथाणी ने सिद्ध करने की असफल कोशिश की क़ि गढवाली जातियां वैदक लोक जातियां थीं
हरी कृष्ण रतूड़ी
हरी कृष्ण रतूड़ी ने गढवाल का इतिहास में कई लोक कथाओं का जिक्र किया है
डा शिव प्रसाद डबराल :
डा शिव प्रसाद डबराल ने उत्तराखंड का इतिहास (भाग १-८ ) में कई लोक कथाओं का उल्लेख किया है
भक्त दर्शन :
भक्त दर्शन ने गढवाल क़ि दिवंगत बिभुतियों में कई लोक कथाओं का जिक्र किया है
डा गोविन्द चातक :
अबोध बंधु बहुगुणा के अनुसार डा गोविन्द चातक ने १९७० में गढ़वाली लोक कथाओं का लघु संकलन प्रकाशित किया
डा हरी दत्त भट्ट शैलेश क़ि ' हरी दूब "
अबोध बंधु बहुगुणा ने इस पुस्तक का जिक्र लंगड़ी बकरी एवम गाड मटयेकी गंगा में किया और इस संकलन क़ि भूरि भूरि प्रसंशा क़ी है
दांत निपोडू
दांत निपोड़ू ने शकुन्त जोशी सम्पादित रैबार में कई हास्य लोक कथाएं प्रकाशित की हैं . दांत निपोड़ू कौन थे इस बारे में कोई नही जानता
अबोध बंधु बहुगुणा रचित लंगड़ी बकरी
लंगड़ी बकरी (1९६१) में गढवाली लोक कथाएं हिंदी में हैं और इस संकलन में उन्नीस लोक कथाएं संकलित हैं
अबोध बंधु बहुगुणा ने इस संकलन में गढवाली लोक कथाओं का वर्गीकरण भी किया है
गाड मटयेकी गंगा
अबोध बंधु बहुगुणा संपादित गाड मटयेकी गंगा (१९७५) में अबोध बंधु बहुगुणा द्वारा संकलित गढवाली लोक कथाएं भी हैं
चक्रधर बहुगुणा व वीणा पाणी जोशी संकलित दन्त कथाएं
१९८१ में चक्रधर बहुगुणा व वीणा पाणी जोशी द्वय ने पांच गढवाली लोक कथाओं का दन्त कथाओं के नाम से प्रकाशित कीं
भीष्म कुकरेती की गढवाली लोक कथाएं
भीष्म कुकरेती ने १९८४ में गढवाली लोक कथाएं नाम से २४ गढवाली लोक कथाओं का प्रकाशन किया
भीष्म कुकरेती की सलाण बटें लोक कथाएं
समय साक्ष्य प्रकाशन में प्रकाशाधीन संकलन में २२ लोक कथाएं गढवाली भाषा में हैं . इसके अतिरिक्त इस संकलन में लोक कथाओं पर भीष्म कुकरेती लम्बी व विचारोतेज्जक भूमिका भी लिखी है .रन्त रैबार साप्ताहिक में सभी कथाएँ छप चुकी हैं
चिट्ठी पतरी का लोक कथाएं विशेषांक
मदन डुक्लाण सम्पादित गढ़वाली पत्रिका चिट्ठी पत्री ने २००७ में गढवाली लोक कथा विशेषांक प्रकाशित किया . इस महत्वपूर्ण विशेषांक में भगवती प्रसाद नौटियाल लिखित गढवाली लोक साहित्य अर वैको अध्यन , डा नन्द किशोर ढौंडियाल का गढ़वाली लोक कथों पर एक नजर, हिमांशु शर्मा का अंतर्राष्ट्रीय लोक कथा वर्गीकरण ,अबोध बंधु बहुगुणा का गढवाली लोक कथों वर्गीकरण , रोहित गंगासलाणी का गढवाली लोक कथाओं का संकलन , उमा शर्मा का गढवाली लोक कथाओं का सर्व भौमिक गुण , भीष्म कुकरेती द्वारा गढवाली लोक कथाओं में प्रबंध शाश्त्र की सूचना व जानवरों सम्बन्धित लोक कथाओं संकलन , डा राकेश गैरोला का लोक कथाओं को सामजिक विन्यास पर प्रभाव , सुरेन्द्र पुंडीर का गढ़वाली लोक कथा : जौनसारी परिपेक्ष मा लेख गढवाली लोक कथाओं के चरित्र समझने हेतु अत्यंत महत्व पूर्ण हैं
इसी विशेषांक में आठ लोक कथाएं भी प्रकाशित हुए हैं
डा . अनिल डबराल -
डा डबराल ने अपनी खोजी पुस्तक ' गढ़वाली की गद्य परम्परा में १७ लोक कथाएँ प्रकाशित कीं हैं।
सम्पति नेगी का पक्षियों सम्बन्धी लोक कथाएं
डा नन्द किशोर ढौंडियाल ने चिट्ठी पत्री विशेषांक में सूचना दी कि सम्पति नेगी ने पक्षियों स्म्न्धी लोक कथाएं प्रकाशित कि हैं
इसके अतिरिक्त डा मोहन बाबुलकर ने भी अपनी चर्चित पुस्तक लोक साहित्य समीक्षा में कई गढवाली लोक कथाओं का संक्सिप्तिकरण किया है
गढवाल कि दसियों पत्र पत्रिकाओं में भी गढवाली लोक कथाएं प्रकाशित हए हैं , मनोज पाकेट ने भी कुछ लोक कथाएं प्रकाशित कीं हैं
इन्टरनेट माध्यम से भी भीष्म कुकरेती ने गढवाली लोक कथा प्रकाशित कीं हैं
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