(गढ़वाली कुमाउनी फिल्म विकास पर विचार विमर्श )
भीष्म कुकरेती
कुमाउंनी-गढ़वाली फिल्मों की समया यह रही है कि इस उद्यम पर वैचारिक, सामजिक , राजकीय, स्तर पर गंभीरता पूर्वक और दिशा निर्देशन हेतु कभी खुली बहसें हुयी ही नही। यही कारण है कि जब मैंने विश्व सिनेमा की बात रखी तो कुछ मित्रों ने पूछा
कि कहाँ गढवाली -कुमाउंनी फ़िल्में और कहाँ विश्व सिनेमा ? जब कि विश्व साहित्य के अनुपात में बंगाली साहित्य छोटा ही था किन्तु रवीन्द्र नाथ टैगोर व सत्यजीत रे ने बंगाली भाषा को विश्व पटल पर रख दिया था। मेरा मानना है कि यद्यपि कुमाउंनी-गढ़वाली फिल्मकार विश्व स्तर की फ़िल्में ना भी बना सकें किन्तु उन्हें विश्व सिनेमा पर विचार विमर्श करते रहना चाहिए।
स्लोवेकिया और कुमाउंनी -गढ़वाली फिल्मों की तुलना आसानी से नही की जा सकती क्योंकि कुमाऊं और गढ़वाल एवं स्लोवेकिया के सामाजिक , , राजनैतिक आर्थिक परिवेश में जमीन आसमान का अंतर है किन्तु भासा के बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से दोनों भाषाई फिल्मों की तुलना की जा सकती है।
चेक रिपब्लिक का पुराना भूभाग की स्लोवाकिया भाषा के बोलने वाले केवल पचास लाख तक हैं किन्तु स्लोवाकिया फिल्मों का एक विशेष स्थान विश्व सिनेमा में है। यूरोपीय शैली में होने के बावजूद स्लोवाकियी फिल्मों में अपना सामाजिक , भौगोलिक प्रकृति, ग्रामीण परिवेश, लोक संस्कृति और लोक मेलों की पूरी झलक मिलती है जो स्लोवेकियायि फिल्मों को अन्य यूरोपीय फिल्मों से अलग करती हैं। समानांतर फिल्मों भी स्लोवाकिया की भौगोलिक प्रकृति, परम्पराएं, लोक धर्म मिलता है जैसे -ओबरेजी स्तारेहो स्वेता ( 1972) तो पॉपुलर या हिट फिल्म जैसे त्रिसिक्रोकना विसेला (1983 ). अब तक करीब तीन सौ पचास फीचर फ़िल्में बन चुकी हैं और इतिहास, सामजिक सामयिक विन्यास अधिक मिलता है किन्तु हास्य , बाल , वैज्ञानिक, साहसिक विषयी फ़िल्में भी बनी हैं। कम्युनिस्ट प्रोपेगेंडा भी फिल्मों में रहा है।
स्लोवाकिया राजनैतिक उथल पुथल से भरा भूभाग रहा है और फिल्मों में शासकीय प्रभाव अवश्य रहा है और कई अच्छी फ़िल्में भी बनी हैं। स्लोवाकियायी भाषाई फिल्म जानोसिल्क (1921) दुनिया के दसवीं फीचर फिल्म है। इस फिल्म के बाद स्लोवाकियायी फिल्मों को सिनेमा हाल ना मिलने की समस्या से जूझना पड़ा। विश्व सिनेमा ने स्लोवाकियायी फिल्मों को सन 1933 से पहचानना किया जब इस साल वेनिस फिल्म फेस्टिवल में कारोल पलिका की 'जेम स्पीवा' फिल्म प्रदर्शित हुयी। इसी तरह सन 1935 में मार्टिन फ्रिक की 'जानोसिल्क' के नाम से ही फिल्म अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित हुयी।
अमेरिकी या नया बाहरी सहयोग से जब भी कोई कम्पनी फिल्म बनाने के लिए उतरी वह फिल्म प्रदर्शन के बाद व्यापारिक नुक्सान के कारण बंद होती गयीं हाँ डौक्युमेंट्री फ़िल्में बनती गयीं।
स्लोवाकिया फिल्मों के निर्माण में शासकीय संसाधनो का योगदान रहा है
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान व बाद में जब स्लोवाकिया कम्युनिस्ट शासन के तहत हुआ तो सन 1950 तक स्लोवाकियायी फ़िल्में ना के बराबर निर्मित हुईं। सन 1945 से सन 1989 तक स्लोवाकिया चेक या रूस की कम्युनिस्ट पार्टियों शासन तहत ही रहा । ईदस दौरान फिल्म कर्मी पूरी तरह सरकारी कर्मचारी ही रहे।
कुछ फिल्मों का विवरण देना वश्यक है जैसे-
सन साथ से शतर तक स्लोवाकिया भाषा में अधिक फिल्मों का निर्माण हुआ
सन 1962 की स्टेफान निर्देशित फिल्म सन इन नेस्ट एक ,प्रयोगधर्मी असलियत के नजदीक और कई परम्पराओं को तोड़ने वाली फिल्म थी .
जान कादर और इल्मार क्रोस की सन 1965 में प्रदर्शित द्वितीय विश्व युद्ध की राजनीति को दर्शाती फिल्म 'द शौप ओन में स्ट्रीट ' को ओस्कार पुरुष्कार मिला।
जुराज जाकुविसको की फिल्म डिजर्टर्स एंड पिल्ग्रिम्स सन 1968 में प्रदर्शित हुयी।
बर्ड्स औरफ्न्स ऐंड फूल (1969)एक पॉपुलर फिल्म थी किन्तु सोवियत अतिकर्मण के कारण यह फिल्म दर्शकों तक नही पंहुच पायी।
अलियान रॉब ग्रिलियत की फिल्म ईडन ऐंड आफ्टर (1970 ) प्रदर्शित हुयी
दुसान हानक निर्देशित 'पिक्चर ऑफ ओल्ड वर्ल्ड' (1972) फिल्म की यूरोपीय समीक्षकों ने प्रशंसा की।
दुसान हानक निर्देशित रोजी ड्रीम (1977) एक काव्यात्मक फिल्म मानी जाती है।
दुसान हानक की 'आई लव यु लव '(1980) मजदूरों की परेशानियों व गरमा गरम सीनों के लिए याद की जाती है इस फिल्म पर कम्युनिस्ट शासन की गाज भी पड़ी।
मार्टिन होली की 'नाईट राइडर्स' (1981) में प्रदर्शित हुयी।
स्टेफेन उहार निर्देशित 'शी ग्रेज्ड हॉर्सेज ओन कंक्रीट' (1982) एक औरत के संघर्ष कथा है।
जुराज जाकुबिस्को निर्देशित 'अ थौजेंड यियर ओल्ड बी' (1983) फिल्म सन 1800 से 1900 एक किसान परिवारकी तीन पीढ़ियों की कहानी कहती है और शहर व ग्रामीण परिवेश अंतर बताने में भी कामयाब हुयी । इस फिल्मको वेनिस फिल्म फेस्टिवल में पुरुष्कार भी मिला।
जुराज जाकुबिस्को निर्देशित ' आई एम सिटिंग ओन अ ब्रांच ऐंड आई एम फाइन (1989) प्रदर्शित हुयी
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स्वतन्त्रता की बाद दुसान हानक की 'पेपर हेड्स' (1995 ); मार्टिन सुलिक की द गार्डन ( 1995); जुराज जाकुबिस्को की 'बाथोरी '( 2008); जुराज लिहोत्स्की की 'ब्लाइंड लव्स ( 2008); ब्लादिमोर बालकोकी ओल एट पीस (2009) ; रिवर्स ऑफ बेबिलोन आदि फिल्मों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया।
कई राजनैतिक उथल पुथल व कम संख्या के दर्शकों के बाद भी तीन सौ से अधिक स्लोवाकियायी फ़िल्में बनीऔर कई कामयाब फ़िल्में भी बनी . यह बात सत्य है कि सरकारी अनुदान से ही फिल्मों का निर्माण सम्भवहुआ। स्लोवाकियायी फिल्मों के विषय बहुआयामी व इस क्षेत्र की विशेस्ताएं व सामयिकता दर्शाने में भी सफलरही हैं।
सन्दर्भ -मार्टिन वोत्रुबा , 2005 हिस्टोरिकल एंड नेशनल बैक ग्राउंड ऑफ स्लोवैक फिल्ममेकिंग
Copyright@ Bhishma Kukreti 20 /3/2013
सन्दर्भ -मार्टिन वोत्रुबा , 2005 हिस्टोरिकल एंड नेशनल बैक ग्राउंड ऑफ स्लोवैक फिल्ममेकिंग
Copyright@ Bhishma Kukreti 19 /3/2013
thanks
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