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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, March 6, 2013

उत्तराखंड में बाइसिकल पर्यटन


डा . बलबीर सिंह रावत

[बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; गढ़वाल में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; गंगोत्री -जमनोत्री गढ़वाल क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं;रवाइं क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; जौनसार गढवाल क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; जौनपुर क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; टिहरी गढ़वाल  क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं;उत्तरकाशी , केदार घाटी गढ़वाल क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; बद्रीनाथ घाटी 
गढ़वाल क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं;पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; कोटद्वार क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; चमोली गढ़वाल क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; रुद्रप्रयाग क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; गढ़वाल क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं;नैनीताल कुमाऊं  क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; रानीखेत कुमाऊं क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; हल्द्वानी कुमाऊं क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; उधम सिंह नगर कुमाऊं क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; बागेश्वर कुमाऊं क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं;चम्पावत कुमाऊं क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; द्वारहाट कुमाऊं क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; पिथौरागढ़ कुमाऊं क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; अल्मोड़ा  कुमाऊं क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं;  कुमाऊं क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं; उत्तराखंड   क्षेत्र में बाइसाइकलिंग पर्यटन की सम्भावनाएं लेखमाला]
 
साइकिल एक ऐसी सवारी है जो हर एक को उपलब्ध है और इसको चलाने व रखरखाव में कोइ बड़ा खर्चा भी नहीं है। इसे हर उस जगह ले जाया जा सकता है, जहां मनुष्य पैदल जा सकता है, कभी साइकिल में चढ़ कर तो कभी उसे कन्धों में उठा कर। हवा भरने का पम्प और पंक्चर लगाने का सामान साथ में ही खरीदा जा सकता है। आज के युग में इस आकर्षक सवारी को कई कामों में लाया जाता है और तेज चलाने के लिए कई गियरों वाली, बोझ ढोने के लिए मोटे टायरों वाली , चढ़ाई और ऊबड़ खाबड़ रास्तों के लिए स्पेशल टायरों वाली,हर काम के लिए विशिष्ट प्रकार की साइकिलें उपलब्ध है. यानी आप अपने उपयोग के लिए उपयुक्त मॉडल की साइकिल ले सकते है। पहाड़ों में प्रयटन के लिए, मजबूत फ्रेम की, गियेर युक्त और समुचित टायरों वाली साइकिल सबसे उपयुक्त होगी। फिर भी अप अपनी पसंद और सुविधा वाला मॉडल ले कर आसानी से पहाड़ों में मोटर सड़कों के बिछे जाल से कहीं से भी कहीं पहुँच सकते हैं।

उत्तराखंड में आने के लिए चार मुख्य रेल से जुड़े द्वार हैं, पश्चिम में हरद्वार-ऋषिकेश, बीच में कोटद्वार, रामनगर और पूर्व में काठगोदाम-हल्द्वानी। मोटर सड़कों से पश्चिम में उत्तरप्रदेश से और हिमाचल पंजाब से देहरादून, हरद्वार के रास्ते, बीच में बिजनौर नजीबाबाद होते हुये, और आगे कोरबेट पार्क,मुरादाबाद-रामनगर, पंतनगर, बरेली से काठगोदाम- नानीताल के रास्ते अन्दर आने की सुविधाएं हैं। उत्तराखंड की मोटर सड़कें समुद्र तल से ३५० मीटर से ले कर २,५०० की ऊंचाइयों तक हैं, इनमे अनेकों बाल -पिन मोड़ हैं, लम्बी घुमावदार, समतल सड़कें, नदियों की घाटियों में और पर्वतों की पीठों पर भी हैं। ऐसी सड़कों पर साइकिल से चलना एक ऐसा अनुभव है जो तभी महसूस होता है जब उसे स्वयम लिया जाय. ढलानों और मोड़ों पर , बिना पैडल मारे, सरपट हवा से बाते करते हुए, नदी की घाटियों की समतल, घुमावदार सड़कों पर जितना तेज चला सको उतने चलने को जो ये सड़कें उकसाती हैं, और आप उनके उकसाव को स्वीकार करके, नदियों के बहाव के संगीत की सहायता से, अपनी क्षमता के चरम से रूबरू हो पाते हैं, यह अवसर आपको केवल पहाडी सड़कों में ही मिल सकता है. लेकिन आप इन सड़कों में अकेले नहीं होते, इन पर चलने वाली बसें, ट्रक , टेक्सियां , कारें, मोटर साइकलें , सब आपका उत्साह बढ़ाते हुए अपनेपन का एहसास दिलाते हैं . किनारे के गाँव के लोग हाथ हिला कर आप का स्वागत करते हैं, बच्चे आप के साथ साथ दौड़ कर आपसे आगे निकले के प्रयास में आप से पीछे छूट जाते हैं और आप को हंसने का अवसर देते हैं

जिन्हें शांत ,पहाड़ों की ऊचाइयों में, भीनी प्रकृति की महक के बीच शीतल समीर अकेले या समूह में , प्रकृति से बातें करने के अवसर चाहियें उनके लिए उत्तराखंड के उत्तर की सड़कें वह अकल्पनीय वातावरण देती हैं जो अन्य कही उपलब्ध नहीं है , आप को लगेगा की हिमाच्छ्दित पर्वत बस आप पहुँच में आने ही वाले हैं।

रात्रि विश्राम के लिए पर्यटन निगमों के और सरकार के बन और पी डब्ल्यू डी के डाक बंगले हैं, मोटर सडकों पर कुछ कस्बों के ढाबे हैं , गर्मियों में स्कूलों में भी रात बिता सकते हैं। सब से उचित होगा की आप गढ़वाल /कुमाऊं पर्यटन मंडलों से सूचना ले कर अग्रिम बुकिंग करा लें। अभी पिछले वर्ष ही कुमाऊं में एक दो निजी उद्द्य्मियों ने बाइसिकिल पर्यटन की सुविधा देने की संस्थाए बनाई हैं फिलहाल वे लघु स्तर पर हैं, उनके पते भी ये निगम दे सकते है. अपना , पसंद का साजो सामान, आप स्वयम ही लायेंगे तो अच्छा रहेगा। एक बार आयेंगे तो फिर बार बार आते रहेंगे।

बाइसिकिल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं :-
१. साइक्लिंग के लिए सुगम और आकर्षक स्थान और सड़कें चिन्हित की जायेगी तो उन को केंद्र मान कर वहाँ पर अन्य प्रकार के संभव पर्यटन आयाम जोड़ कर लोकल उद्दयम केन्दों की स्थापना की जा सकती है जो कालान्तर में एक ऐसे हब श्रृंखला को जन्म दे सकती है जहा एक सम्पूर्ण स्वपोषित उत्पादन केंद्र बन सकता है.

२. साइकिल पर्यटकों के रहने,खाने पीने और रहने की समुचित व्यवस्था के साथ साथ, स्थानीय दर्शनीय स्थलों की सैर कराने के लिए समोचित प्रशिक्ष्ण प्राप्त स्थानीय मार्ग दर्शकों को रोजगार दिया जा सकता है.
३. ऐसे स्थानों पर किराए में उचित मोडेलों की साइकिलें, मौसम के अनुसार, पहिनने के ऊनी वस्त्र , कम्बल, बिस्तर, कमरे , पर्वतारोहन / पैदल घूमने के सारे गियर , साइबर काफे, रात्रि को केम्प फायर , स्थानीय संगीत-नृत्य का आयोजन किया जा सकता है.

४. यह ऐसा उभरता आकर्षक प्रयटन है जो साधारण आय वाले युवाओं और घूमने के शौकीनों के लिए बहुत ही सुविधाजन है , ऐसे परवारों की संख्या देश में इतनी है की वे संख्याबल के बूते पर ही इस उद्द्योग को अति आकर्षक बना सकते हैं, इसलिए इस प्रबल संभावना के पूरे उपयोग के लिए सरकार को स्थानीय छोटे छोटे युवा उद्द्य्मियों को प्रोत्साहित कर के, पूरी ट्रेनिंग दे कर , सारे साजो सामान से लैस कराके स्थापित करना चाहिए, उनका पंजीकरण निगम के सम्बंधित विभाग के करा कर , उनके प्रचार प्रसार का उत्तरदायित्व लेना चाहिये.

५. अगर कल्पनाशील पहलू  के साथ, दूरदृष्टि से इस पर्यटन को ठोस नीव पर खडा किया जाता है तो उत्तराखंड एक आकर्षक साइक्लिंग डेस्टिनेशन चन्द सालों में ही बन सकता 


Copyright@ Dr Balbir Singh Rawat, Dehradun, 2013
 dr.bsrawat28@gmail.com

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