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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, April 1, 2012

म्यारू गौं********एक हर्चदु चित्र *****रचयिता डॉ नरेन्द्र गौनियाल

********म्यारू गौं********एक हर्चदु चित्र *****
My Village Loosing Charm
 
रचयिता डॉ नरेन्द्र गौनियाल

 

म्यारू गौं
गौं कु बाज़ार ,मुख्य द्वार
सब बदली गे
दूध दही घ्यू कखि ना
दुकन्युं माँ सिर्फ
बीडी-सिगरेट, पान मसाला
चरि तरफ दरोल्यों कु शोर
बाज़ार का बीचों-बीच
सरकारि दुकान गल्ला की बि च 
पण दूर एक कुणा माँ सिर्फ नामै
राशन मैना माँ मुश्किल से एकदा एक द्वी मुट
मगर शराब रोज छक्वे 
म्यारू गौं कु कोलिन
यकुडू बल्द बेची दे
क्वलड़ू निकाली कै एक तरफ धैरियल
ठुलू नौनु पुरानी दिल्ली माँ
एक सरदार जी की दुकानी माँ चिपगी गे

चैत का मैना औजी लोग 
जागरण अर प्रतिष्ठा गीत गैकी चैत मंगदा छाया
ब्वै ऊंते गयुं-धन.शक -सब्जी ,लूण-गुड़
पैसा-ध्यल्ला-तम्बाकू दीन्दी छै
वो  लिक्य की सौभाग्यवती नौणी का घर
दुःख-सुख द्य्खनो जान्द छा
अब न औजी रैगेनी अर न लिक्या
न रिवाज

म्यार गौं माँ
अब नि आंदी वो फुल-संक्रांद
जब रुडिया कि बनयीं बांस-रिंगाल कि
छवटी -छवटी फुल्कंडीयों माँ 
खेलदा छा फूल
आन्दु छौ रंगीलो बसंत

अब नि दिखेंदा
दादी का कंदुड़ों मुर्ख्ला-मुंदडा
गौलुन्द हंसुला-करेला
ब्वै का गौलुन्द गुलोबंद

अब नि लगदी
कै बि तिबारी माँ कछ्डी
हर्ची गे दादा जी कि फर्सी
ह्युंद का दिनों
सब्युं कु एक घेरा माँ बैठी कै आग तापणु
बीरा भैणी अर सात भयों कि कथा
सब हर्ची गे
काला भट भूजी कै बुकाणा
लाल पानी अर गुड़ कि कटाग
अखाणा-पखाणा बज्जी लगाणा
तू चल मी आन्दु छौं क्या ?....

म्यार गौं का घराट का द्वीइ पाट 
अर छत कि पटाल
सब बिकी गैनी
सिर्फ बचीं छन उजड़ी पाळी  
घौर मा जंदरा को हथनाड़ो निकाली याली
ब्वे कि वैम अब लालटेन टकीं रेंद
गंजेली बि संभाली कै
टांड मा धैरी याली
उर्ख्यला मा अब हमारू भोटू पाणि पींद

सुबेर रतबियान्य मा अब नि सुणेदी
जन्दरों कि घर्र-घर्र  उर्खेलों मा घम्म-घम्म
सिप्पा सी-सी सिप्पा सी-सी
सुबेर पुंगडा  मा बल्दों कि जोड़ी तै हकान्दा
हल्या कि आवाज ले-ले, या-या, दू-दू ,बू-बू
कम ह्वैगे
अब वो दिन सिर्फ याद बणी गैनी
जब पुंगडा मा 
हल्या अर डलफोड़ा ननद-भौजी खुण
रिगाल कि कंडी मा
आंदी छै कल्यो कि रोटी
प्याज-दै कु रैतु
सोंधी-सोंधी खुशबु वलु छीमी-मूला को साग

अब नि रैगे चौमास मा
हर रोज हैंकि पुण्डी मा सरकणि वाळी गोठ
कख हर्ची गैनी
बांस-मालू अर छैड़ी का फडिका
हर्ची गे वो गोठ बंदी का दिन पकण वलि खीर

अब नी दिखेंदा-सुणेंदा
लोकगीत थड्या-चौंफुला
''ओ दरी हिमाले दरी, ता छुम-ताछुमा दरी
नचद दा  एकी दा खुटा उन्द अर उब
धम्म-धम्म,धम्मा-धम्म
एक जनि आवाज
एक जीवन शैली 
निर्विकार मनोरंजन

अब नी रैगे
जेठ-आषाढ़ मा सेरों मा सट्टी कु रोप्णु
तिमला अर कंदार का पत्तों मा खएंदी रोटी
बिष्ट बूबाजी कु बणायो
आलू-प्याज अर काला चनों कु चटपटो साग
कैना डाली मूड लूण राली कै
पत्बेडा पर पकयाँ गड्याल
मंडुवा का टिक्कड़ दगड़ नौणी कु गुन्द्को

अब त लोग 
बिसरी गैनी छ्वै लगाणु
हर्ची गैनी शहद कि कमोली
मौनों कि कुड़ी अब भरीं रेंद
दारू कि खाली बोतलों से

गौं मा अब नी हूंदा कौथिग 
जख मिलदी छै
मौसी कि लयीं मास कि ब्यडा रोटी
क्याला का पत पर मुंडयेडा लपेटी कि धरीं
बूढी नानी का हाथों बणी खीर
मेला अब झमेला ह्वैगेनी

हमर गौं का पंडजी कु नौनु
पढे-लिखै मा बेकार ह्वैगे
कुछ दिनों बीटी ब्रास बैंड दगड़ी गितार ह्वैगे

अब नी सुनेंदी
चौमास का दिनों जंगल मा
सफ़ेद घैणी कुयेड़ी का बीच
बिंदुली गौड़ी का गौलुन्द बंधी घांडी
बंसुली कि धुन
''कैल बजे मुरूली ओ बैणा ऊँची -निसी डांडीयों मा''

 गौं मा पैली
घुघूती घुर्दी छै त खुद लगदी छै
कोयल कुकदी छै त गीत बणदा छा
काणों का काँव-काँव पर
क्वी औण लग्यां इन समझदा छा
आज यू कुछ नि रैगे

अब म्यार गौं का नौना नि जणदा
क्य हूंद तमोली ,कमोली,नवला अग्यार,गुठ्रयार 
जन्दरी,घरात,गंजेला,उर्खेला
ढांकर-ढांकरी ,मंडुवा कु टिक्कड़ ,कंडली कु साग
भ्यूंल-गालण छवे,पिट्ठू,गुलीडंडा

सब हर्च्युं-हर्च्युं,बदल्युं-बदल्युं ,बिखर्यों -बिखर्यों सी
पतानी कख गै
वो जीवन ,वो लोग
कख गै म्यारू गौं .............

सर्वाधिकार : डॉ नरेन्द्र गौनियाल

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