Poem By Dr Narendra Gauniyal
हमारा पदान जी
बुना छन
तुम फिकर नि कारा
तुमर नौं कि बांठी
तुमतै द्यून्ला
पण
दगड़या पञ्च-परवान
जिद्द कना छन
कैकु खट्टा पर सी सोर
सर्या बोक्ट्या पर
क्वी बुना छन सिरी
क्वी बुनू फट्टी
क्वी मुन्डली
अरे निर्भग्यो
इनि लड़ना रैला
इनि झगड़ना रैला
खींचा-खींच करना रैला
त फिर
कख रै तुम्हारो
मान-सम्मान
तुम केका पञ्च-परवाण
इनि बि क्याच या
छित्यकी पदनचरी ..
Copyright@ डॉ नरेन्द्र गौनियाल
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